इससे बहुत से लोग शायद सहमत न हों लेकिन अमरीकी साप्ताहिक पत्रिका 'टाइम' का नज़रिया कुछ ऐसा ही है। पत्रिका का कहना है कि वर्ष 2014 में संसदीय चुनाव में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी कांग्रेस की ओर से प्रधानमंत्री पद के संभावित उम्मीदवार राहुल गांधी के लिए चुनौती साबित हो सकते हैं।

पत्रिका ने नरेन्द्र मोदी को अपने एशिया संस्करण के कवर पर जगह दी है। शुक्रवार को ही बाजार में आए साप्ताहिक में उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनावों का जिक्र है जिसमें कांग्रेस का प्रदर्शन काफी खराब रहा।

टाइम ने कहा है, "2014 के आम चुनावों में अभी दो साल बचे हैं, जिसके बीच कांग्रेस उम्मीद कर रही है कि सोनिया के पुत्र राहुल पार्टी में नई जान फूंकेंगे, लेकिन हाल के विधानसभा चुनावों में मिली करारी हार के बाद वो कमजोर नजर आ रहे हैं."

पत्रिका के कवर पर नरेन्द्र मोदी की गंभीर मुद्रा वाली एक बड़ी सी तस्वीर छापी गई है, जिसके साथ शीर्षक है - "मोदी के इरादे पक्के हैं। लेकिन क्या वो भारत का नेतृत्व कर सकते हैं?" नरेन्द्र मोदी एक दशक से भी अधिक समय से गुजरात के मुख्यमंत्री हैं।

उपलब्धियां

टाइम की संवाददाता ज्योति थोटम के लेख में कहा गया है, "इकसठ साल के मोदी शायद एकमात्र ऐसे व्यक्ति हैं जो अपनी पिछली उपलब्धियाँ और व्यापक पहचान के बल पर राहुल को चुनौती दे सकतै हैं."

लेख के अनुसार, "इस संदर्भ में मोदी का नाम मात्र लिए जाने से, जिनका नाम अमिट तौर पर साल 2002 के गुजरात दंगो से जुड़ा है, भारत का एक वर्ग वितृष्णा से भर उठता है। उन्हें देश का नेता चुने जाने का मतलब होगा भारत का राजनीतिक क्षेत्र में धर्मनिरपेक्षता के आदर्श का त्याग करना। इससे भारत और इस्लामिक देश पाकिस्तान, जहां वो नफरत के पात्र हैं, के बीच संबंधों में कड़वाहट भी पैदा होगी."

टाइम का कहना है, "लेकिन एक वर्ग जब किसी ऐसे व्यक्ति के बारे में सोचता है जो देश को भ्रष्टाचार के दलदल और निकम्मेपन के शाप से उबार सकता है, जो दृढ़ निश्चय और काम से काम रखने वाला एक ऐसा नेता हो जो देश को विकास की उस राह पर अग्रसर कर सके जहां वो चीन की बराबरी कर सकता है - तो मोदी का नाम सामने आता है."

कवर स्टोरी में गुजरात में मोदी के प्रशासन की उपलब्धता को उजागर करते हुए कहा गया है कि उनके 10 साल के शासन में गुजरात औद्योगिक रूप से देश के सबसे विकसित राज्य के रूप में उभरा है।

दंगों पर सवाल

पत्रिका में कहा गया है कि गुजरात इस दौरान जमीन अधिग्रहण से जुड़ी झड़पों और छोटे मोटे भ्रष्टाचार के उन मामलों से पूरी तरह मुक्त रहा जिसने देश के दूसरे हिस्सों को अपनी जकड़ में ले रखा है।

पत्रिका में कहा गया है कि मोदी के विरोधी भी स्वीकार करते हैं कि गुजरात में ना तो उपजाऊ भूमि और बड़ी प्राकृतिक संपदाएं हैं, न बड़ी जनसंख्या है और न वह मुंबई और बंगलौर जैसा औद्योगिक केंद्र है लेकिन उसके बावजूद उसने बेहद प्रगति की है जो उसी बेहतर योजना की वजह से है।

हालांकि पत्रिका ने कहा है कि 2002 दंगो के पीड़ितों को आज तक न्याय नहीं मिल पाया है और राज्य शासन ने उन आरोपों का कभी जवाब नहीं दिया है कि वो हिंसा को रोकने में नाकामयाब रहा। लेख में जकिया जाफ़री मामले का भी जिक्र है जिनका मुकदमा अदालत में चल रहा है।

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