-प्रशासन ने न तो टेंट का इंतजाम किया और न ही खाने का, पीडि़त ग्रामीणों को भूखे पेट खुले आसमान के नीचे रात गुजारनी पड़ी

-आग में बर्बाद हुए ग्रामीणों की तबाही की कीमत 3,800 रुपए और कुछ किलो आनाज, अफसरों की अनदेखी ने पीडि़तों को और रुलाया

KANPUR : गंगा बैराज के कल्लूपुरवा गांव में जहां ग्रामीण सुबह काम पर निकल जाते थे और घरों पर मां बच्चों को स्कूल भेजने के लिए तैयार करती थी। वहां पर ग्रामीण अब पत्नी और बच्चों के साथ राख बटोर रहे हैं। प्रशासनिक अफसरों ने उनको मदद का भरोसा तो दिलाया था, लेकिन आग के बुझते और मीडिया के जाते ही उन्होंने अपना रंग दिखा दिया। वे मदद के नाम पर ग्रामीणों को कुछ किलो चावल और गेंहू देकर वहां से निकल गए। उन्होंने यह भी नहीं सोचा कि जब ग्रामीणों का सबकुछ जलकर खाक हो गया है तो वे खाना कैसे बनाएंगे। प्रशासन की इस उदासीनता से ग्रामीणों को भूखे पेट रात गुजारनी पड़ी। उन्हें उम्मीद थी कि सुबह तो कोई न कोई अफसर उनकी सुध लेने आएगा, लेकिन अफसर की अनदेखी से उनकी यह उम्मीद भी टूट गई है।

जब बर्तन ही जरी गा है

कल्लूपुरवा गांव में आग का पता चलते ही एसडीएस सदर अन्य प्रशासनिक अफसरों के साथ मौके पर पहुंच गए थे। उन्होंने ग्रामीणों को हर मुमकिन मदद का भरोसा दिलाकर शांत कराया था। उन्होंने आग में तबाह हुए ग्रामीणों की मदद के लिए उनकी लिस्ट भी बनाई और वहां से चले गए। इसके बाद शाम को कुछ कर्मचारी ने गांव जाकर पीडि़त ग्रामीणों को 20 किलो चावल और गेहूं थमा कर अपना काम पूरा कर दिया। ग्रामीणों ने उनसे कहा कि साहब आटा से रोटी बनती है गेंहू से नहीं। वैसे भी हमार बर्तन जरी गा है। खाना काहे मा पकाएंगे? तो कर्मचारी उनको यह डांटते हुए कहा कि क्या इसका भी ठेका हमने लिया है। आनाज लेना हो तो लो, वरना आगे बढ़ जाओ।

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बिस्कुट और पानी से भरा पेट

प्रशासन की इस उदासीनता से ग्रामीण अनाज होने के बाद भी खाना नहीं पका पाए। मजबूरी में उन लोगों को बिस्कुट और पानी से पेट भरना पड़ा। अवधेश ने बताया कि ज्यादातर लोगों के पास तो बिस्कुट खरीदने के रुपए भी नहीं थे। उन लोगों ने उधार में बिस्कुट लिया है। सुबह भी उन लोगों ने बच्चों और महिलाओं को बिस्कुट, ककड़ी और खीरा खिलाया है। वहीं, कुछ लोगों ने रिश्तेदार के घर से खाना मंगाकर बच्चों को खिलाया।

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मुआवजा नहीं, रोटी अौर छत चाहिए

प्रशासन ने ग्रामीणों की तबाही की कीमत 3800 रुपए और कुछ किलो आनाज लगाई है। ग्रामीणों ने बच्चों का पेट भरने के लिए आनाज तो ले लिया है, लेकिन उन्होंने रुपए लेने से मना कर दिया है। उनका कहना है कि प्रशासन मुआवजा के नाम पर उनसे मजाक कह रहा है। आग ने उनकी छत छीन ली है। इसलिए उनको मुआवजा नहीं, बल्कि रोटी और छत चाहिए। देवी प्रसाद का कहना है कि उन्होंने तो बेटी की शादी के लिए पांच लाख रुपए जोड़े थे। वो आग में जल गए हैं और प्रशासन उनको 3800 रुपए की मदद करने का आश्वासन देकर जले में नमक छिड़कने का काम कर रहा है। उन्होंने कहा कि उन्हें भी यह मदद नहीं चाहिए।

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अफसरों ने हमारे लिए कुछ नहीं किया

साहब कोई भी मदद के लिए नहीं आया है। हमारे परिवार को तो आनाज भी नहीं मिला है। जिससे उनके परिवार को भूखे पेट रात गुजारनी पड़ी। हम भूखे पेट रह लेंगे, लेकिन हमको बच्चों के लिए छत चाहिए।

-अनूप

अफसर लोग सब झूठ बोल रहे हैं। यहां पर न तो टैंट लगाया गया और न ही हम लोगों को खाना दिया गया। हमारे बच्चों को पूरी रात भूखे रहना पड़ा।

-गुड्डी

भइया कल अफसर आए थे और बड़े-बड़े वादे कर गए थे, लेकिन उसके बाद कोई नहीं आया। बस सोमवार को आग बुझने के बाद कुछ लोगों को खाना जरूर बांटा गया था।

-रमेश

हमारी पूरी गृहस्थी जल गई है और प्रशासन हम लोगों को मुआवजा के नाम पर सिर्फ 3800 रुपए दे रहा है। हमें मुआवजा नहीं, छत और रोटी चाहिए। बताइए अब हम कहां पर रहे?

-विजय कश्यप

भइया अफसरों से इतना दिला दीजिए कि हमारे सिर पर छत आ जाए। खाने की व्यवस्था तो हम लोगों मेहनत करके कर लेंगे। बहुत परेशानी हो रही है।

-ममता