कानपुर (ब्यूरो)। मेस्टन रोड में स्थापित गया प्रसाद रीडिंग रूम एंड लाइब्रेरी 100 साल से भी पुरानी है। 1922 में बनी यह लाइब्रेरी देश की आजादी से लेकर क्रातिक्रारियों के संघर्ष की गवाह रही है। आजादी के पहले शायद ही कोई ऐसा क्रांतिकारी रहा हो, जिसने यहां पर आकर किताबों को पढ़ा न हो। यह लाइब्रेरी एक समय क्रांतिकारियों का अड्डा हुआ करती थी। चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह और गणेश शंकर विद्यार्थी समेत कई क्रांतिकारी यहां आते थे। यह लाइब्रेरी आज भी अपने इतिहास को समेटे हुए है और अब कॉम्पटीशन की तैयारी करने वालों का भविष्य गढ़ रही है।

कॉम्पटीशन की तैयारी करते
गया प्रसाद लाइब्रेरी कॉम्पटीशन की तैयारी करने वाले कैंडीडेट्स का अड्डा बन चुकी है। सुबह 11 से शाम 04 बजे तक डेली यहां पर 40-50 मेंबर आते हैैं। यहां पर हिंदी और अंग्रेजी लिट्रेचर के साथ साथ हिस्ट्री और जियोग्राफी की बुक्स पढऩे को मिल जाएंगी। 100 साल पुरानी में फिलहाल बीते पांच सालों से एक भी नई बुक नहीं आई है लेकिन फिर भी यहां पर 45000 बुक्स पढऩे वालों के लिए मौजूद हैैं। लिट्रेचर के शौकीन लोग लकड़ी वाली अलमारी से बुक्स को पढ़ते और वापस रख देते हैैं।

25 रुपए महीना है मेंबर फीस
लाइब्रेरी में इस समय 310 एक्टिव मेंबर हैं। लाइब्रेरी असिस्टेंट ज्ञान सिंह ने बताया कि एडमिशन के समय 400 रुपए देने होते थे। इस फीस में 200 रुपए सिक्योरिटी मनी, 100 रुपए एडमिशन फीस और 100 रुपए चार महीने की फीस है। इसके बाद 25 रुपए महीने के हिसाब से चार महीने में 100 रुपए जमा करने होते हैैं।

इस लाइब्रेरी में क्रांतिकारियों के अलावा कई नामचीन हस्तियां भी आती थी। प्रयागराज के रहने वाले और भारत रत्न से सम्मानित पुरुषोत्तम दास टंडन भी यहां आ चुके हैैं। इनके अलावा हिंदी के विद्धान और आलोचक डॉ। श्याम सुंदर दास, सरोजनी नायडू, महादेवी वर्मा समेत कई नामचीन यहां आ चुके हैैं। लाइब्रेरी में मौजूद एक अलमारी में इन नामचीनों द्वारा लाइब्रेरी के लिए लिखे गए शब्दों को साइन के साथ सहेज कर रखा गया है। लाइब्रेरी में पीले रंग के पुराने पन्नों को लेमिनेट कराकर रखा गया है।

बुक्स लेकर आते हैं मेंबर
लाइब्रेरी में डेली 40-50 मेंबर आकर रीडिंग करते हैैं। लाइब्रेरी में पड़ताल के दौरान तैयारी करने वाले कैंडीडेट्स ने बताया कि यहां शांति का माहौल रहता है और बिना किसी डिस्टर्बेंस के पढ़ाई कर सकते हैं। हालांकि कॉम्पटीशन की तैयारी के लिए कंटेंट वाली बुक्स यहां नहीं मिल पाती हैैं। उनको साथ में लेकर आना पड़ता है। लेकिन बुड़ी संख्या में पुरानी और अच्छी बुक्स यहां मौजूद हैं।

यह समस्याएं भी हैं यहां
लाइब्रेरी में बीते पांच सालों से राजा राममोहन राय ट्रस्ट से आने वाली सालाना 11500 रुपए की मदद और बुक्स नहीं आई हैैं। बुक्स को रखने के लिए कुछ नई आलमारियों की भी जरूरत है। पुरानी आलमारियों की दशा भी ठीक नहीं है। इसके अलावा पीने के पानी के लिए मशीन तो लगी है लेकिन वह भी कभी कभी धोखा दे देती है। हालांकि पढ़ाई आदि के लिए मेज और कुर्सी की पर्याप्त व्यवस्था है।