कानपुर(ब्यूरो)। चंद्रयान 3 की सफलता के पीछे मिशन चंद्रयान-1 और 2 में विफलता से ली गई सीख और सुधार करना है। इस सीख से मिली चंद्रयान 3 की सफलता ने पीछे की विफलताओं को छिपा दिया। इसलिए कभी भी विफलता से घबराना और डरना नहीं चाहिए बल्कि गलतियों को जानकर उनमें सुधार और दोबारा प्रयास करना चाहिए। यह बातें मंडे को सीएसजेएमयू के यूआईईटी लेक्चर हॉल में कलाम सेंटर के सीईओ सृजन पाल सिंह ने स्टूडेंट्स से इंटरैैक्ट करते हुए कहीं।
फोकस्ड होना चाहिए लक्ष्य
उन्होंने बताया कि पाकिस्तान के स्पेस एंड अपर एटमॉस्फियर रिसर्च कमिशन की स्थापना, भारत में इसरो की स्थापना से एक साल पहले हुई थी। लेकिन भारत के रिसर्च सेंटर ने चंद्रयान-3 की सफलता अर्जित की और चंद्रमा के दक्षिण ध्रुव पर उतरने वाला विश्व का पहला देश बना। वहीं, पहले रिसर्च सेंटर स्थापति करने वाला देश अभी तक चांद पर नहीं पहुंच सका है। इसलिए लाइफ में कभी लेट स्टार्ट हो तो फर्क नहीं पडऩा चाहिए, कोशिश रहनी चाहिए कि लक्ष्य इसरो की तरह फोकस्ड हो। इस मौके पर डॉ। बृष्टि मित्रा, डॉ। ममता तिवारी, डॉ। शिल्पा कायस्थ, डॉ। अभिषेक मिश्रा और डॉ। विशाल शर्मा आदि मौजूद रहे।
1979 मेें उड़ा था मजाक
सृजन ने कहा कि 1979 में पहली बार जब रॉकेट लांच किया तो दुनिया ने मजाक उड़ाया, हम असफल भी हुए। सेकेंड स्टेज में आक्सीजन बाक्स न खुलने की वजह से रॉकेट बंगाल की खाड़ी में गिरा, उसका मलबा अभी भी वहीं मौजूद होगा। लेकिन 1980 में हमने गलतियों से सीखा और दोबारा कोशिश की, हम स्पेस मेें पहुंचने वाले वल्र्ड के पांचवे देश बने। तब हमको सलाम किया गया। इसी तरह स्टूडेंट्स को लाइफ में बाधाओं, विफलताओं का सामना करना पड़ता है, यह जरूरी भी है। विफलता से सीख लेकर सफल होना ही महानता है।
कलाम के विजन पर काम कर रहा सेंटर
सृजन पाल सिंह ने बताया कि साल 2011 मेें डॉ। एपीजे कलाम के साथ मिलकर कलाम फाउंडेशन की स्थापना की थी। उनकी डेथ के बाद फाउंडेशन को सेंटर में कंवर्ट करके काम किया गया। बताया कि डॉ। कलाम चाहते थे कि साल 2030 तक देश एनर्जी में इंडिपेंडेंट हो और ग्रीन एनर्जी प्रोड्यूस करें। सेंटर उनके विजन को आगे बढ़ाने का काम कर रहा है। यदि जगह मिली तो सीएसजेएमयू में एक कलाम लाइब्रेरी को खोला जाएगा।