कानपुर (ब्यूरो)। होली के त्योहार में रंग और आम दिनों में दालमोठ, खोया, लड्डू की थोक मार्केट के लिए मशहूर हटिया को तो सभी जानते हैैं। हटिया का यह बाजार आज का नहीं बल्कि बरसों पुराना है। अंग्रेजों के समय में भी यहां पर हफ्ते में एक दिन बाजार लगता था। हालांकि उस समय इस जगह को हाट के नाम से जाना जाता था। समय बदलने और देश की आजादी के बाद इस स्थान का नाम बदलकर हटिया कर दिया गया हैैं। नाम भले ही बदल दिया गया हो लेकिन तंग गलियों में बसा हटिया आज भी अपनी एक अलग पहचान बनाए हुए है।
अंग्रेजों से डटकर मुकाबला
हटिया का योगदान 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में भी कम नहीं रहा है। हटिया, बिरहाना रोड और पटकापुर के यूथ ने 1857 में अंग्रेजों से मुकाबला किया और उनकी खटिया खड़ी करने का काम किया था। जानकार बताते हैैं कि हटिया में बुद्धादेवी वाली गली से मुडक़र आगे चलने पर लाला ठंठीमल टंडन की कोठी आज भी 1857 में हुए स्वतंत्रता संग्राम की गवाही दे रही है। ठंठीमल के बेटों ने क्रांतिकारियों का जमकर साथ दिया था।
आठ दिन तक खेला था रंग
साल 1942 में अंग्रेजों ने हटिया में रंग खेल रहे यूथ को रोका। विरोध करने पर उन्हïें जेल मेें डाल दिया। अंग्रेजों की इसी हरकत से नाराज होकर साथी क्रांतिकारियों ने पुलिस की ओर से गिरफ्तार लोगों न छोड़े जाने तक तक रंग खेला। आखिरकार अंग्रेजों को झुकना पड़ा। जिस दिन यूथ को छोड़ा गया उस दिन जश्न मना और जमकर रंग खेला गया। उसी दिन के बाद से गंगामेला को मनाए जाने की परंपरा शुरु हुई है। इस दिन हटिया के रज्जन बाबू पार्क से रंगों का ठेला निकलता है।