प्लिमथ स्थित एक मीडिया कंपनी ने क्लिक करें 'मैनी वर्ल्ड्स' नाम की एक ऐसी फिल्म बनाई है, जो अपने दर्शकों पर पैनी नज़र रखती है और उनके मन मुताबिक खुद में बदलाव करती चलती है। ये तकनीक फिल्म के ‘रियल टाइम’ संपादन पर आधारित है. 

दर्शकों पर सेंसर
फिल्म के निर्देशक एलेक्सिस किरके के मुताबिक इसे संभव बनाने के लिए फिल्म निर्माण के दौरान इसमें कई तरह के सेंसर लगाए गए हैं। कुछ सेंसर फिल्म देखने वाले दर्शकों पर भी लगाए जाते हैं।

यह फिल्म ब्रिटेन के प्लिमथ विश्वविद्यालय में कई विभागों के मिले-जुले प्रयासों से बनाई गई है। इससे पहले एलेक्सिस किरके ने लोगों के जैविक तंत्रों और मस्तिष्क से संकेत ग्रहण कर फिल्म में त्वरित बदलाव करने की पहल की थी। इस परियोजना पर किसी प्रयोगशाला में नहीं बल्कि एक समारोह के दौरान प्रयोग किए जाएंगे, जहां यह फिल्म आम लोगों को दिखाई जाएगी।

फिल्म के बाहर फिल्म
फिल्म शुरु होती है दो दोस्तों की कहानी से जो अपनी एक महिला दोस्त की जन्मदिन पार्टी में पहुंचते हैं, लेकिन वहां पहुंचकर उन्हें पता चलता है कि वो दरअसल एक वैज्ञानिक प्रयोग का हिस्सा हैं।

जैसे-जैसे दर्शक इस कहानी में डूबेंगे वो खुद एक लाइव प्रयोग का हिस्सा बनते जाएंगे। इसके बाद फिल्म में दर्शकों की रुचि और उनकी प्रतिक्रिया के अनुसार बदलाव शुरु होंगे।

बीबीसी से हुई बातचीत में किरके ने कहा, ''एक दिन शायद ऐसा भी आए जब हम फिल्म स्क्रीन के सामने एक ऐसा कैमरा लगा पाएंगे जो थियेटर में बैठे सभी लोगों की प्रतिक्रियाओं-उत्तेजनाओं को दर्ज करेगा.''

बॉलीवुड में पहुंचेगी तकनीक
इसके लिए दर्शकों के हृदय की धड़कनों, उनके मस्तिष्क के संकेतों और मांसपेशियों के तनाव को मापा जाएगा। इस जानकारी को सीधे फिल्म के सेंसर तक पहुंचाया जाता है और फिल्म में बदलाव शुरु हो जाते हैं।

किरके का मानना है कि ये तकनीक अगर सफल रहती है तो इसका इस्तेमाल ज़ाहिर तौर पर हॉलीवुड और बॉलीवुड में किया जाएगा। इससे दर्शकों को लेकर किए जाने वाले सर्वे और रेटिंग को मिलने वाली ज़रूरत से ज्यादा तरजीह का अंत होगा।

 

 

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