कानपुर(ब्यूरो)। अगर आपको सिल्क की साडिय़ां, बच्चों के कपड़े, बर्तन, फैशनेबल स्लीपर्स की बड़ी रेंज देखनी है या अपने या परिवार के किसी सदस्य के लिए कपड़े खरीदने हो तो नवीन मार्केट से बैटर कोई ऑप्शन नहीं है। इस मार्केट में दूल्हा हो या दुल्हन, छोटा हो या बड़ा, यहां तक कि सीनियर सिटीजंस के लिए भी बड़ी रेंज उपलब्ध है। फेस्टिवल सीजन में इस मार्केट में पैर रखने की जगह नहीं होती है। शोरूम्स में इंडो वेस्टर्न ड्रेस भी मिलती हैैं। यहां बाजार करने के लिए फर्रुखाबाद, फतेहपुर, कन्नौज और उन्नाव से थोक के कारोबारी भी आते हैैं।
77 साल पुरानी है नवीन मार्केट
नवीन मार्केट को पहले रिफ्यूजी मार्केट के नाम से जाना जाता है। 1947 में विभाजन के बाद जब पंजाब से शरणार्थी दिल्ली आए, उन्हें उपनगरीय इलाके में छोटे घर उपलब्ध कराए गए। जिसे उपयुक्त रूप से लाजपत नगर नाम दिया गया। शहर के केंद्र में एक बाजार में छोटे लकड़ी के खोखे दिए गए। शरणार्थियों ने अपने उद्योग से इसे पॉश नवीन मार्केट में बदल दिया। 1970 के दशक तक लाजपत नगर अमीर घरों की कॉलोनी बन गया था। बुजुर्ग कारोबारी बताते हैैं कि बाजार शुरू से ही 10 से 11 बजे तक खुलता है। 70 से 80 के दशक तक दुकानें कम थीं। जगह पर तिरपाल लगाकर दुकान लगाते थे। उस समय सूरज ढलने के साथ ही क्राइम बढ़ जाता था। लेकिन अब देर रात तक चहल पहल रहती है।
मालिक तो बन जाएं कारोबार जब होगा, तब होगा
इस मार्केट में 500 दुकानें हैैं। इस मार्केट में तीन तरह की दुकानें हैैं। शॉप्स, स्टॉल और फ्लैट्स। यहां के दुकानदारों की माने तो 2003 में दुकानों के रुपये जमा हुए थे। 200 स्टॉल की रजिस्ट्री हुई थी जबकि 300 दुकानों की रजिस्ट्री नहीं हो पाई। रजिस्ट्री न होने की वजह से शॉपकीपर्स न तो लोन ले सकते हैैं और न ही अपनी शॉप्स को सेल कर सकते हैैं। नगर निगम इसे नजूल की जमीन बताकर रजिस्ट्री करने से मना करता है।
इस मार्केट में मिलता है सब कुछ
इस मार्केट में आपको डेली नीड्स के सभी सामान आसानी से मिल जाएंगे। इसकी वजह से ही इस मार्केट में मिडिल क्लास से लेकर अपर क्लास तक के लोग खरीदारी करते हुए दिखाई देते हैं। आम जनता के बजट के हिसाब से इस मार्केट में आपको वो सब कुछ मिल जाएगा, जो आप खरीदना चाहते हैैं। चूंकि नवीन मार्केट शहर की सबसे पुरानी और बड़ी बाजार है। इस वजह से यहां आपको बच्चों के खिलौने की डिफरेेंट रेंज भी मिल जाएगी। यहां पर की बड़ी कंपनियों के शोरूम भी हैैं। जिनका मेन अट्रैक्शन बच्चों के खिलौने हैैं।
करोड़ों का रोज होता है कारोबार
स्थानीय व्यापारियों की माने तो यहां हर महीने से 30 से 35 करोड़ का करोबार होता है। दरअसल इस मार्केट में ज्वैलरी शॉप्स भी हैैं। इस आंकड़े से साफ है कि औसतन 80 से 85 करोड़ का करोबार महीने में होता है। इस मार्केट में 60 फीसद से ज्यादा दुकानें रेडीमेड गारमेंट्स व साडिय़ों की हैैं।
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