लेखक अलेक्जेंडर सोलज़ेनित्सिन की ये पुस्तक इसी महीने अपनी गोल्डेन जुबली मना रही है। ‘वन डे’ का प्रकाशन नवंबर 1962 में हुआ था और किताब के छपते ही तत्कालीन सोवियत संघ में त्राहि मच गई थी।
यही वो पुस्तक थी जिसने जोसफ़ स्तालिन का असली चेहरा पूरे विश्व के सामने लाया और साम्यवादी शासन के क्रूर कारणामों को जगजाहिर किया।
‘वन डे’ और सोलज़ेनित्सिन
इस पुस्तक में सोवियत संघ के लेबर कैंप ‘गुलाग’ के कैदियों की वो कहानी बयां की गई थी जिसे दुनिया ने पहली बार सुना और जाना। सोलज़ेनित्सिन के हीरो थे इवान डेनिसोविच शुखोव जो गुलाग के एक क़ैदी थे और लेखक ने कैंप में रहने वाले हज़ारों कै़दियों की व्यथा कथा इसी पात्र के माध्यम से रची थी.
हालांकि सोलज़ेनित्सिन की पुस्तक का ये पात्र काल्पनिक था लेकिन इसके बावजूद लोगों ने उसके किरदार और उसके माध्यम से व्यक्त की गई भावनाओं को बेहद पसंद किया। जिन लोगों ने भी सोलज़ेनित्सिन को पसंद किया वो भी जोसेफ स्तालिन के आतंक से बच नहीं पाए और उन्हें गुलाग भेज दिया गया।
सोलज़ेनित्सिन की रचना को याद करते हुए लेखक और पत्रकार विताली कोरोटिक कहते हैं, “ये वो वक्त था जब हम सूचना से बिल्कुल कटे हुए थें, और उन्होंने (सोलज़ेनित्सिन) हमारी आंखे खोलने की कोशिश शुरू की थी.”
वो कहते हैं, “इस पुस्तक को बार-बार पढ़ा, गुलाग का जीवन ऐसा था जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। उस वक्त लेखकों की कमी नहीं थी लेकिन सोलज़ेनित्सिन जैसा हिम्मतवाला लेखक पहले नहीं देखा था.”
किताब से क्रांति
स्तालिन की मौत के एक दशक बाद पूर्व सोवियत नेता निकिता ख्रुसचेव ने इस पुस्तक को छापने का फैसला किया। हालांकि पुस्तक के प्रकाशन के साथ ही निकिता को उनके पद से हाथ धोना पड़ा।
साथ ही साल 1974 में सोलझेनित्सिन को हिरासत में ले लिया गया। लेकिन किताब को जो आग लगानी थी वो आग लग चुकी थी और स्तालिन के कारनामों की चर्चा भी शुरू हो चुकी थी। इसके बावजूद साम्यवादी इस प्रभाव को किसी भी तरह खत्म करना चाहते थे। लेकिन ऐसा हुआ नहीं, साम्यवादी सोवियत संघ को नहीं बचा पाए।
मॉस्को के बाहर के इलाक़े में मुझे किसी ने कई कब्रें दिखाईं, तक़रीबन 13. ये बुतोवो फ़ायरिंग रेंज का हिस्सा थीं। इस इलाक़े के बारे में क़रीब आधी सदी तक किसी को मालूम नहीं था। उन्नीस सौ तीस के दशक में यहां 20,000 से अधिक कैदी लाए गए जिन्हें खड़ा कर स्तालिन के सैनिक गोलियों से भून देते थे।
रूस कल और आज
रूस के इतिहास को क़रीब से जानने वाले कहते हैं कि सबको सच पता है लेकिन लोग भूलने की कोशिश में लगे हुए हैं। मॉस्को के एक स्कूल में जहां ‘वन डे’ किताब कोर्स का हिस्सा है वहां के 21 में से सिर्फ तीन बच्चों ने इसे पढ़ा है।
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या ये बच्चे स्तालिन को जानते होंगे? एक बच्चे का जवाब है पता नहीं मैं उसे पसंद करता हूं या नापसंद। लेकिन कुछ दूसरे छात्र ये मानते हैं कि स्तालिन पर बात करने का मतलब पुराने इतिहास को फिर से खंगालना।
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