उस समय उस पुस्तक के अंश छापने के लिए कम से कम 50 प्रकाशकों में होड़ मची थी। स्वेतलाना को पुस्तक के लिए 25 लाख डॉलर से ज़्यादा का एडवांस उस समय दिया गया था, जो उस समय के हिसाब से काफ़ी धन था। उस राशि को न्यूयॉर्क टाइम्स ने उस समय 'रिकॉर्ड' बताया था।

अमरीका के साथ स्टालिन की एकमात्र बेटी का रिश्ता छह मार्च 1967 से शुरू होता है जबकि सोवियत संघ में अमरीकी राजदूत लेवेलिन टॉमसन को अपने विदेश मंत्री डीन रस्क से ये ख़ुफ़िया संदेश मिला था-

"1- स्वेतलाना स्टालिन, जोसेफ़ स्टालिन की बेटी, छह मार्च को अपने पासपोर्ट और सामान के साथ नई दिल्ली स्थित अमरीकी दूतावास पहुँचीं और वहाँ उन्होंने राजनीतिक शरण की गुहार लगाई।

2- राजदूत बोल्स ने अमरीकी वीज़ा सिर्फ़ इसलिए जारी करने की इजाज़त दी है जिससे स्वेतलाना दिल्ली से निकल सकें। वह छह मार्च को आधी रात के बाद क्वांटास के एक विमान से रोम पहुँचीं। उनके साथ अमरीकी दूतावास का एक कर्मचारी भी था। ये रोम से अमरीका का खुला टिकट है मगर रोम के बाद किसी फ़्लाइट में कोई रिज़र्वेशन नहीं है।

3- स्वेतलाना ने बताया कि वह 20 दिसंबर 1966 को अपने पति ब्रजेश सिंह के अस्थि अवशेषों के साथ भारत आई थीं। ये शादी आधिकारिक तौर पर कहीं पंजीकृत नहीं है। ब्रजेश मॉस्को में रहते थे और एक प्रकाशन संस्थान में विदेशी साहित्य के अनुवादक के तौर पर काम करते थे। स्वेतलाना ने बताया कि दिल्ली में अमरीकी दूतावास जाने से पहले उन्होंने एक हफ़्ता दिनेश सिंह के यहाँ बिताया। वह ब्रजेश सिंह के अंकल हैं। दिनेश सिंह भारत के विदेश राज्य मंत्री हैं।

4- स्वेतलाना का कहना है कि वह एक महीने के वीज़ा पर भारत आई थीं और उसके बाद उन्होंने वहीं रहने की कोशिश की है। उन्होंने दिनेश सिंह और श्रीमती गाँधी से मदद माँगी मगर कोई सफलता नहीं मिली। छह मार्च को उन्होंने सोवियत राजदूत बेनेडिक्टोवा से अपील की कि उन्हें वहीं रहने दिया जाए मगर उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि स्वेतलाना को 'एयरोफ़्लोट' से आठ मार्च को मॉस्को लौटना ही होगा और फिर उन्हें सोवियत संघ से निकलने की इजाज़त नहीं दी जाएगी। इसके बाद ही वह अमरीकी दूतावास गईं।

5- इटली में अमरीकी राजदूत जॉर्ज फ़्रेडरिक रेनहार्ट ने अपनी राय में कहा है कि स्वेतलाना को अमरीका जाने की इजाज़त देना राजनीतिक और ख़ुद स्वेतलाना की सुरक्षा के लिए ठीक नहीं होगा। हमें लगता है कि उनके लिए स्विटज़रलैंड, स्पेन या इटली में रहने की व्यवस्था करनी होगी। हमने राजदूत रेनहार्ट से कहा है कि वह स्वेतलाना को ये समझाने की कोशिश करें कि यह उन्हीं के हित में है। अगर वो राज़ी हो जाती हैं तो उनके आधिकारिक रूप से काग़ज़ात जमा करने से पहले हमें संबद्ध अधिकारियों के पास जाना चाहिए। जब तक ये मसला हल नहीं होता उन्हें सुरक्षित रखने के बारे में हमें इतालवी लोगों के साथ सहमति बनानी होगी।

6- आपके सुझावों और प्रस्तावों का इंतज़ार है। हमें लगता है कि जब ये सब हो जाता है तो हमें ख़ुद ही रूसियों को इस बारे में बता देना चाहिए। राजदूत डोब्रिनिन के ज़रिए ये हम बता सकते हैं और ज़ोर दे सकते हैं कि हम परिस्थितिवश इससे जुड़ गए जानबूझकर नहीं."

इसके बाद राजदूत टॉमसन ने अगले दिन डीन डस्क को एक संदेश भेजा जिसमें कहा, "हम इस पूरे अभियान से ख़ुद को जितना अलग कर सकें, रूसियों के साथ हमारे संबंध की दृष्टि से उतना ही अच्छा होगा। किसी भी सूरत में वैसे वे भारत से उन्हें निकालने और फिर उनके अपहरण का आरोप लगाते हुए अमरीका को ही दोषी ठहराएँगे."

अमरीका तक की राह

इकतालीस वर्षीया स्वेतलाना अलिलूयेवा इटली में ज़्यादा समय नहीं रुकीं और वहाँ से सीधे स्विट्ज़रलैंड चली गईं जहाँ उन्हें पर्यटक वीज़ा मिला। वह वहाँ छह हफ़्ते रहीं।

स्टालिन की इस बेटी ने अमरीकी राजनयिकों से उसी समय संपर्क साधा था जब अमरीकी सोवियत संघ के साथ रिश्ते सुधरने की उम्मीद कर रहे थे। ऐसे में स्वेतलाना का ये संपर्क साधना उन रिश्तों में एक रुकावट के तौर पर ही ज़्यादा देखा गया।

मगर फिर सोवियत संघ में पूर्व अमरीकी राजदूत जॉर्ज कीनन जैसे कुछ प्रभावशाली लोग अमरीकी अधिकारियों को अलिलूयेवा को राजनीतिक शरण देने के लिए मनाने में क़ामयाब हो गए और अप्रैल 1967 में वह न्यूयॉर्क पहुँचीं। अमरीका चाहता था कि स्वेतलाना के अमरीका पहुँचने पर ज़्यादा हो-हल्ला न हो मगर ऐसा नहीं हुआ क्योंकि हवाई अड्डे पर ही स्वेतलाना का संवाददाता सम्मेलन हो गया जहाँ उन्होंने सोवियत शासन की जमकर आलोचना की।

उन्होंने कहा, "मैं यहाँ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की तलाश में आई हूँ जो मुझे काफ़ी समय से रूस में नहीं मिली थी." उनका ये भी कहना था कि उन्हें ईश्वर पर विश्वास हो गया है, "दिल में ईश्वर के बिना ज़िंदा नहीं रहा जा सकता."

मगर 40 साल बाद 2007 में एक वृत्तचित्र के लिए इंटरव्यू देते हुए अलिलूयेवा ने कहा था कि वह 'मार्क्सवादी खेमे से पूँजीवादी खेमे' में जा पहुँचीं।

अलिलूयेवा न्यूजर्सी के प्रिंसटन शहर में रहने गईं जहाँ स्टालिन पर जाने-माने अमरीकी विशेषज्ञ प्रोफ़ेसर रॉबर्ट टकर और उनकी रूसी पत्नी यूजीनिया ने प्रिंसटन विश्वविद्यालय में स्वेतलाना को अपने साथ ले लिया।

'रोचक अनुभव'

'डिस्टेंट म्यूज़िक' और 'अ बुक फ़ॉर माइ ग्रैंड सन' जैसी अलिलूयेवा की पुस्तकें रूसी में न्यूयॉर्क लिबर्टी पब्लिशिंग ने छापी थीं। जब उस प्रकाशन के प्रमुख इलिया लेवकोव से मैंने स्वेतलाना से जुड़े अनुभव के बारे में पूछा तो उन्होंने उसे "काफ़ी रोचक" बताया।

पिछले साल अलिलूयेवा ने स्टालिन के बारे में विस्कॉन्सिन स्टेट जर्नल को दिए एक इंटरव्यू में कहा था, "वह काफ़ी साधारण इंसान थे। वह काफ़ी रूखे थे, काफ़ी क्रूर थे मगर ये कोई बड़ी बात नहीं थी। हमारे साथ तो वह काफ़ी सामान्य थे। वह मुझे काफ़ी प्यार करते थे और चाहते थे कि मैं उनके साथ रहकर एक शिक्षित मार्क्सवादी बनूँ."

अलिलूयेवा को 1978 में अमरीकी नागरिकता मिली और तब उन्होंने ट्रेंटन टाइम्स अख़बार को बताया कि वह रिपब्लिकन समर्थक के तौर पर पंजीकृत हैं और उन्होंने नेशनल रिव्यू नाम की एक कंज़र्वेटिव पत्रिका को 500 डॉलर दान में दिए थे।

न्यूयॉर्क टाइम्स ने लिखा था कि लोकप्रिय आत्मकथा 'ट्वेंटी लेटर्स टू अ फ़्रेंड' के जारी होने के बाद 1967 में अलिलूयेवा ने तीन लाख 40 हज़ार डॉलर एक धर्मार्थ संस्था को दिए थे। इसमें से 90 हज़ार डॉलर रूस से भागकर आए लोगों की मदद के लिए तथा विदेशों में रूसी संस्कृति के संरक्षण के नाम पर थे।

मगर अब उसी अख़बार ने स्वेतलाना के शोक संदेश में लिखा है कि अलिलूयेवा के दान और 'निवेश के कुछ बुरे फ़ैसलों' के चलते वृद्धावस्था में वह माली तौर पर ख़स्ताहाल हो चुकी थीं।

स्वेतलाना 1970 से ख़ुद को लाना पीटर्स कहती थीं जिसका उपनाम उनके अमरीकी आर्किटेक्ट पति विलियम वेस्ली पीटर्स का था। उन्होंने अंतिम कुछ साल विस्कॉन्सिन में सिलाई के काम और काल्पनिक लेखन पढ़ते हुए एक नर्सिंग होम में बिताए।

स्टालिन की पुत्री लेना पेत्रस का निधन

वो 85 साल की थीं। लाना पेत्रस शीत युद्ध के दौरान अपने पिता स्टालिन के साम्यवादी शासन की गवाह रहीं थी। लेना पेत्रस को उनके पूर्व नाम स्वेतलाना अल्लियेवा के नाम से भी जाना जाता था। 1963 में सोवियत संघ छोड़ने के बाद वो अमरीका में रहने लगी।


 

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