दक्षिणी सूडान की राजधानी जुबा में शनिवार को होने वाले स्वतंत्रता समारोह में सूडान के राष्ट्रपति उमर अल बशीर के साथ साथ संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान कि मून भी हिस्सा लेने वाले हैं। दक्षिणी सूडान को सबसे पहले सूडान ने अपने पड़ोसी देश के रुप में मान्यता दी है.

2005 में सूडान और दक्षिणी सूडान के बीच शांति समझौता हुआ था जिसके बाद दक्षिणी सूडान को एक देश के रुप में मान्यता देने की प्रक्रिया शुरु हुई थी जो अब ख़त्म हुई है.

दक्षिणी और उत्तरी सूडान के बीच दशकों चले गृह युद्ध में पंद्रह लाख से अधिक लोगों की मौत हुई है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार दक्षिणी सूडान दुनिया का 193वां देश होगा जबकि अफ्रीका का 54 वां देश.

जुबा में मौजूद बीबीसी संवाददाता का कहना है कि नए देश में आ रही समस्याओं को लोग फिलहाल भूल गए हैं और पूरा देश जश्न में डुबा हुआ है। शनिवार को दक्षिणी सूडान में औपचारिक रुप से स्वतंत्रता दिवस मनाया जाएगा.

विवाद अभी बाकी

समारोह के तहत दक्षिणी सूडान की एसेंबली के स्पीकर जेम्स वानी इग्गा एक बयान पढ़कर आज़ादी की घोषणा करेंगे जिसके बाद सूडान का राष्ट्रीय ध्वज नीचे कर के दक्षिणी सूडान का नया झंडा फहराया जाएगा.

इस समारोह में शामिल होने वाले अंतरराष्ट्रीय अतिथियों में अमरीका के पूर्व विदेश मंत्री कोलिन पॉवेल, संयुक्त राष्ट्र में अमरीका की स्थायी प्रतिनिधि सुसैन प्राइस और अफ्रीका में अमरीकी सैन्य कमांड के प्रमुख जनरल कार्टर हैम होंगे.

दोनों पक्षों के बीच हुए समझौते के अनुसार आज़ादी के मुद्दे पर जनमत संग्रह हुआ था जिसमें 99 प्रतिशत लोगों ने आज़ादी के पक्ष में वोट डाला था.

दक्षिणी सूडान दुनिया के सबसे ग़रीब देशों में गिना जाएगा लेकिन ऐसा ग़रीब देश जहां तेल के अकूत भंडार होंगे। ऐसा ग़रीब देश जहां सात में से एक बच्चा पाँच साल का होने से पहले ही भूख और गरीबी से मर जाता है.

विशेषज्ञों का कहना है कि जश्न का माहौल खत्म होने के बाद दक्षिणी और उत्तरी सूडान के बीच कई अनसुलझे विवादों ख़ासकर सीमा रेखा के मुद्दे पर राजनीतिक संघर्ष शुरु हो सकता है.

शुक्रवार को सूडान के मंत्रि बकरी हसन सालेह ने घोषणा की थी कि सूडान ‘‘दक्षिणी सूडान को स्वतंत्र देश के रुप में मान्यता देता है और एक जनवरी 1956 की सीमा रेखाओं को स्वीकार करता है। इसी दिन ब्रिटेन ने सूडान को आज़ाद किया था.’’

संयुक्त राष्ट्र के सात हज़ार सैनिक अभी भी दक्षिणी सूडान में तैनात रहेंगे ताकि शांति बहाली में मदद कर सकें। विशेषज्ञों का कहना है कि समारोहों के ख़त्म होने के बाद उत्तरी और दक्षिणी सूडान को स्थायी रखना सबसे बड़ी चुनौती होगी.

दोनों देशों के बीच नई सीमा बनाना ही चुनौती नहीं होगी बल्कि इससे भी बड़ी चुनौती तेल संपदा का बंटवारा होगा क्योंकि ज्यादातर तेल के कुएं दक्षिणी सूडान के इलाक़ों में ही हैं जबकि समुद्र तक जाने वाली पाइपलाइनें उत्तरी सूडान में हैं.

इस समय तेल से आने वाली आय दोनों देशों में बराबर बांटी जाती है लेकिन आने वाले समय में शायद ही यह व्यवस्था चल पाए.

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