ये शोध रेडिंग यूनिवर्सिटी ने किया है और ये जियोफिज़िकल रिसर्च पत्रिका में छपा है। सौर तूफ़ान का मतलब है सूर्य की ओर से बहुत बड़ी मात्रा में ऊर्जा निकलना जिससे अणु, आयन, इलेक्ट्रॉन के बादल अंतरिक्ष में छूटते हैं और कुछ ही घंटे में पृथ्वी की विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र में टकरा सकते हैं.

इस पत्रिका में छपे लेख में संभावना जताई गई है कि जब सूर्य की गतिविधियों में कमी आएगी तब उससे ये ख़तरनाक विकिरण धरती तक पहुंचेगा। इस टीम का कहना है कि सूर्य अभी 'ग्रैंड सोलर मैक्सिमम' के चरम पर है, यानी ये एक ऐसा समय होता है जब सूर्य की सक्रियता सौर चक्र में सर्वाधिक होती है।

सूर्य का ये चरण 1920 में शुरु हुआ था और ये अंतरिक्ष युग तक रहा। रेडिंग यूनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर माइक लॉकवुड का कहना है, "जो भी सबूत मिले हैं वह ये बताते हैं कि सूर्य बहुत ही कम समय में ग्रैंड सोलर मैक्सिमम से बाहर हो जाएगा."

शोध

ग्रैंड सोलर मैक्सिमम में सूर्य की सतह पर एक चुंबकीय प्रवाह के पहुंचने का चक्र चलता है जिसमें 11 साल लगते हैं.इसे 'सन स्पॉट' कहा जाता है। लेकिन दूसरी तरफ ग्रैड सोलर मिनिमम में कई दशकों तक ये सन स्पॉट नहीं देखे जाते थे। ये शोध इस बात के संकेत देता है कि सबसे ज़्यादा विकिरण सौर गतिविधि के मध्य पर पहुंचने के समय धरती पर पहुंचती है ,विकिरण के बढ़ने से विमान के चलने और संचार में दिक़्कत आती है।

ये शोध 10 हज़ार साल पहले इकट्ठा किए गए बर्फ़ के नमूनों और लकड़ी के लट्ठों पर आधारित है। शोधकर्ताओं ने इन नमूनों में नाइट्रेट और 'कॉस्मोजेनिक आइसोटोप' के स्तर को मापा।

वायुमंडल के अणु तेज़ गति से कॉस्मिक किरणों से टकराते हैं जिसके बाद वायुमंडल के ऊपरी स्तर पर कई रेडियोधर्मी आईसोटोप पैदा होते है तो उसे कॉस्मोजेनिक आईस्टोप कहते हैं। प्रोफ़ेसर लॉकवुड ने बीबीसी को बताया कि "आप बर्फ़ की पट्टियों पर जमे नाइट्रेट को जानकर बता सकते है कि सौर प्रक्रिया हुई है."

उनका कहना था कि हमारे पास जो आंकड़े है वो बताते हैं कि अगले कुछ दशकों में एक दुर्भाग्यपूर्ण सौर स्थिति से हमारा सामना होने वाला है। ये सबूत इस बात के संकेत देते हैं कि जब सूर्य ग्रैंड मैक्सिमम स्थिति को छोड़ देगा तब कुछ सौर तूफ़ान आ सकते हैं।

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