उलझन की बात है ना फिर सोचिए उस शख़्स का क्या हाल होगा जिसकी बोली बोलने और समझने वाला पूरे देश में ही कोई ना हो।
ये कोरी कल्पना नहीं नेपाल की 75 वर्षीय ग्यानी मेइया सेन के जीवन का सच है.ग्यानी कुसुंडा भाषा बोलती हैं जिसे बोलने वाली वो नेपाल की अकेली जीवित नागरिक हैं और इसी वजह से भाषा वैज्ञानिकों के आकर्षण का केन्द्र भी। कुछ समय पहले तक पुनी ठाकुरी और उनकी बेटी कमला खेत्री नेपाल में कुसुंडा भाषा बोलने वाला दूसरा परिवार था लेकिन पुनी ठाकुरी की मौत औऱ कमला के देश छोड़ने के बाद नेपाल में फिलहाल कुसुंडा भाषा परिवार का अस्तित्व टिका है सिर्फ ग्यानी पर।
विशिष्ट व मृतप्राय
नेपाल के त्रिभुवन विश्वविद्यालय में भाषा-विज्ञान के प्रोफेसर माधव प्रसाद पोखरेल इस मृतप्राय भाषा को बचाने की मुहिम में लगे हैं.पोखरेल ने बीबीसी को बताया "दुनिया भर में बोली जाने वाले 20 भाषा परिवारों में सबसे अलग है। कुसुंडा भाषा की किसी भी अन्य भाषा परिवार से कोई समानता नही है। ये एक विशेष भाषा परिवार की नुमाइंदगी करती है."
भाषाविदों की अपील है कि इस विशिष्ट भाषा को बचाया जाए वरना ये बहुत जल्द नष्ट हो जाएगी। इसके लिए सरकार से भी गुज़ारिश की गई है.उधर सरकारी अधिकारियों की दलील है कि उन्हें इस बात की कोई जानकारी ही नहीं है कि ये भाषा बोलने वाले कितने लोग जीवित हैं।
नेपाल के केन्द्रीय सांख्यिकीय ब्यूरो में निदेशक रूद्र सुवल कहते हैं " 2001 की जनगणना के मुताबिक़ कुसुंडा बोलने वाले 164 लोग जीवित हैं जबकि 2011 की जनगणना के अंतिम आंकडो़ का अभी इंतज़ार है."
कुसुंडा भाषा परिवार और इसे बोलने वालों की सरकारी सहायता के लिए लगातार मांग उठ रही है लेकिन नेपाल में फ़िलहाल इस दिशा में कोई प्रगति होती दिखाई नहीं दे रही है।
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