ह्यूमन राइट्स वॉच और संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून ने बर्मा सरकार से रखाइन प्रांत में रोहिंग्या मुसलमानों और गैर-मुसलमानों के बीच हिंसा रोकने के और प्रयास करने के लिए कहा है। यहाँ इस हफ्ते हुई हिंसा में 64 लोग मारे गए हैं।

बीबीसी के एशिया संवाददाता जोनाथन हेड का कहना है कि ह्यूमन राइट्स वॉच ने जो सैटेलाइट तस्वीरों मुहैया कराई हैं, उससे पश्चिमी बर्मा में एक समुदाय की जबर्दस्त बर्बादी के पुख्ता सुबूत मिले हैं।

सैटेलाइट तस्वीरों से पता चलता है कि समुद्री तट पर बसे क्याउप्यू कस्बे के आस-पास के इलाके को जलाकर तबाह कर दिया गया है। ह्यूमन राइट्स वॉच का कहना है कि यहां रहने वाले ज्यादातर लोग रोहिंग्या मुसलमान थे जिन्हें गैर-मुसलमानों ने ये कहते हुये निशाना बनाया कि वे बर्मा के रहने वाले नहीं हैं।

कर्फ्यू के बाद भी हिंसा

ह्यूमन राइट्स वॉच का कहना है कि यहां 800 से अधिक इमारतों और हाउस-बोटों को नष्ट कर दिया गया है। समझा जाता है कि यहां के कई लोग नौकाओं में सवार होकर समंदर के रास्ते भागे हैं। गैर-मुसलमानों का कहना है कि फौज ने उन्हें भी निशाना बनाया है जिसमें कई लोग हताहत हुए हैं।

सरकार ने प्रभावित इलाकों में कर्फ्यू लगाया है। लेकिन इस साल जून में पहली बार हिंसा भड़कने के बाद सरकार के सुस्त रवैये की कड़ी आलोचना होती रही है।

रखाइन प्रांत में रविवार से शुरू हुई झड़पों में कम से कम 56 लोग मारे जा चुके हैं। दो कस्बों में रात को कर्फ्यू के बावजूद हिंसा की घटनाएँ हुई हैं।

रखाइन राज्य में इस साल जून में भी हिंसा भड़क उठी थी जिसमें 90 लोग मारे गए थे। तभी से रखाइन में बौद्धों और मुसलमानों के बीच तनाव चल रहा है। रखाइन में बौद्ध और मुस्लिम समुदाय के बीच लंबे समय से टकराव रहा है। इस राज्य में रहने वाले ज्यादातर मुसलमानों में रोहिंग्या लोग हैं।

बर्मा की सरकार रोहिंग्या लोगों को गैरकानूनी आप्रवासी मानती है। अगस्त में सरकार ने हिंसा की जांच पड़ताल के लिए एक आयोग बनाया था। अधिकारी इस मामले में संयुक्त राष्ट्र के नेतृत्व में जांच को खारिज कर चुके हैं।

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