रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लवरोफ़ ने कहा है, "यदि ये (फ़्रांस का विद्रोहियों को हथियार देना) सही है तो ये संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 1970 का उल्लंघन है। रूस ने फ़्रांस से इस बारे में औपचारिक जानकारी मांगी है."
रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लवरोफ़ शुक्रवार को फ़्रांसीसी विदेश मंत्री एलेन जूप से मॉस्को में मिलेंगे। फ़्रांस की सेना पहले ही इस बात की पुष्टि कर चुकी है कि उसने लीबिया के राष्ट्रपति कर्नल गद्दाफ़ी के ख़िलाफ़ लड़ रहे विद्रोहियों के लिए विमान से हथियार गिराए थे।
अफ़्रीकी यूनियन ने भी फ़्रांस के लीबियाई विद्रोहियों को हथियार देने के फ़ैसले का विरोध किया है और चेताया है कि इससे सोमालिया जैसी स्थिति पैदा हो सकती है।
चीन ने कहा है कि कोई भी देश संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के उस प्रस्ताव का उल्लंघन न करे जिसके तहत लीबियाई आम नागरिकों के बचाव के लिए बल प्रयोग की अनुमति दी गई है।
फ़रवरी में ट्यूनिशिया और मिस्र में सरकार विरोधी प्रदर्शनों और फिर सत्ता परिवर्तन के बाद लीबिया सहित क्षेत्र के कई देशों में सरकार विरोधी प्रदर्शन शुरु हो गए थे और लीबिया में इन्होंने जल्द ही सशस्त्र विद्रोह की शक्ल ले ली थी।
विद्रोही वर्ष 1969 से सत्ता में बने हुए कर्नल गद्दाफ़ी के इस्तीफ़े और व्यापक राजनीतिक सुधारों की मांग कर रहे हैं।
नैटो ने पल्ला झाड़ा
फ़्रांस ने माना है कि उसने जून की शुरुआत में नफ़ूसा की पहाड़ियों में रहने वाले बरबर क़बायली लड़ाकों के लिए हल्के हथियार और गोलियाँ भेजी गई थी।
जहाँ फ़्रांस की सरकार ने माना है कि उसने विद्रोहियों के लिए हथियार भेजे हैं वहीं नैटो ने इस बात पर बल दिया है कि ये नैटो का फ़ैसला नहीं है।
बीबीसी के रक्षा और कूटनीतिक संवाददाता जोनाथन मार्कस के अनुसार, "नैटो के महासचिव एंडर्स फ़ॉग रासमुसेन ने ज़ोर देकर कहा है कि ये नैटो का फ़ैसला नहीं है क्योंकि वे लीबिया के मुद्दे पर गठबंधन के देशों में उभर का आ रहे मतभेदों के बारे में सचेत हैं। लेकिन स्पष्ट तौर पर फ़्रांस मानता है कि उसने सही किया है."
जोनाथन मार्कस के मुताबिक, "फ़्रांस, ब्रिटेन और अमरीका में इस विचार के कई समर्थक हैं कि विद्रोहियों को हथियार देना अवैध नहीं है क्योंकि पिछले फ़ैसले के बाद सुरक्षा परिषद का प्रस्ताव 1973 पारित हो चुका है."
मार्च में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने लीबिया के आम नागरिकों की सुरक्षा के लिए बल प्रयोग की अनुमति दी थी और लीबिया पर 'नो फ़्लाई ज़ोन' बनाने की इजाज़त दी थी।
उस समय चीन, रूस और तीन अस्थायी सदस्यों - भारत, जर्मनी और ब्राज़ील ने सुरक्षा परिषद में इस मतदान में भाग नहीं लिया था।
ग़ौरतलब है कि लीबियाई विद्रोही हाल में नफ़ूसा के पहाड़ों की उत्तरी दिशा से राजधानी त्रिपोली की ओर बढ़ रहे हैं।
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