सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ़ एक्सिस्टेंशिअल रिस्क (सीएसईआर) में इस बात पर भी अध्ययन होगा कि बॉयोटेक्नोलॉजी, कृत्रिम जीवन, नैनो टेक्नोलॉजी और जलवायु परिवर्तन से किस कदर ख़तरा बढ़ रहा है।

वैज्ञानिकों ने कहा कि रोबोटों के एक दिन दुनिया में विद्रोह करके इंसानों को अपना ग़ुलाम बना लेने से जुड़ी चिंताओं को ख़ारिज कर देना 'ख़तरनाक' होगा।

इस तरह की आशंका हाल की कुछ विज्ञान पर आधारित लोकप्रिय फिक्शन फिल्मों में जताई गई है। ख़ासकर टर्मिनेटर सीरीज़ की फिल्मों के दौरान जिस तरह से स्काइनेट कंप्यूटर सिस्टम को दर्शाया गया है, उससे इन आशंकाओं को बल मिला था।

फ़िल्म में स्काइनेट ऐसा सिस्टम था जिसे अमेरिकी सेना ने विकसित किया था और उसके बाद वह अपनी एक सोच-समझ विकसित कर लेता है। हालांकि यह फिक्शन यानी कल्पना पर आधारित फिल्म थी, इसके बावजूद विशेषज्ञों का कहना है कि इस मुद्दे पर शोध किए जाने की जरूरत है।

रोबोट की अपनी सोच

सेंटर की वेबसाइट पर वैज्ञानिकों ने लिखा है, ''इन ख़तरों की गंभीरता को आंकना बेहद मुश्किल है लेकिन यह चिंतित करने वाला तो ज़रूर है.'' सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ़ एक्सिस्टेंशिअल रिस्क (सीएसईआर) कार्यक्रम को कैंब्रिज विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर हाउ प्राइस, ब्रह्मांड विज्ञान और खगोल विज्ञान के प्रोफेसर मार्टिन रीस और स्काइ-पे के सह संस्थापक जान टालीन भी अनुदान मुहैया करा रहे हैं।

प्रोफेसर प्राइस ने एएफपी न्यूज़ एजेंसी से कहा, ''यह भविष्यवाणी वाजिब लगती है कि इस या फिर अगली सदी में बुद्धिमत्ता सिर्फ़ जीव विज्ञान तक सीमित नहीं रहेगी। हम इसी दिशा में वैज्ञानिक समुदाय को सजग बनाने की कोशिश करेंगे.''

प्राइस के मुताबिक जैसे-जैसे रोबोट और कंप्यूटर मानव से ज्यादा बुद्धिमान होते जाएँगे हम उन मशीनों के रहमोकरम पर निर्भर हो जाएंगे 'जो हमारे प्रति दुर्भावनापूर्ण तो नहीं होंगी लेकिन जिनके हितों में हम शामिल नहीं होंगे.' मानव सभ्यता के अस्तित्व पर अध्ययन करने वाली इस संस्था की शुरुआत अगले साल होगी।

International News inextlive from World News Desk