यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट के अनुसार इस महीने के अंत से शुरू होने वाले आगामी अकादमिक सत्र में भारतीय छात्रों की संख्या में 20 से 30 फीसदी की कमी आई है।
छात्रों की संख्या में आई इस कमी से इन विषयों के भविष्य को लेकर चिंताएँ सामने आ रही हैं। ये पाठ्यक्रम स्नातकोत्तर करने वाले भारतीय छात्रों के पसंदीदा हैं।
संसद की बिज़नेस, इनोवेशन और स्किल्स कमिटी के समक्ष उच्च शिक्षण संस्थानों और उद्योग से जुड़े वरिष्ठ लोगों ने जो सबूत पेश किए हैं उनमें बताया गया कि विश्वविद्यालयों के कुलपति भारतीय छात्रों की कम संख्या की वजह से चिंतित हैं। इसके चलते विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित जैसे विषयों की पढ़ाई की माली हालत ख़राब होने की आशंका है।
रिपोर्ट
इस कमिटी ने अपनी रिपोर्ट ओवरसीज़ स्टूडेंट और नेट माइग्रेशन यानि बाहर से आने वाले छात्रों और कुल आप्रवासन के विषय पर प्रकाशित की है।
इस रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि भारत और यूरोपीय संघ के बाहर से आने वाले छात्रों को आप्रवासन या इमिग्रेशन की सूची से निकाल देना चाहिए क्योंकि इनमें से ज्यादार पढ़ाई करने के बाद वापस चले जाते हैं। हालांकि इन सिफारिशों को सरकार ने खारिज कर दिया क्योंकि वो यूरोपीय संघ के बाहर से आने वालों की संख्या में कटौती करना चाहती है।
'यूनिवर्सिटीज़ यूके' की मुख्य कार्यकारी निकोला डेंडरीज सभी विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षण संस्थानों का प्रतिनिधित्व करती हैं। उन्होंने कमिटी को बताया कि विश्वविद्यालयों के कुलपति मुख्यत: इस बात को लेकर चिंतित थे कि कम भारतीय छात्र उपरोक्त विषयों का रुख कर रहे हैं।
उनका कहना था, ''मेरा मानना है कि इन पाठ्यक्रमों को बंद करने के बारे में निर्णय लेना जल्दबाज़ी होगी लेकिन जो दिखाई दे रहा है वो अच्छा नहीं है और शायद इसलिए कुछ विषयों को जारी रखने को लेकर सवाल किए जा रहे हैं.''
निकोला का कहना था, ''अब हम ये देख रहे हैं कि छात्रों की संख्या में कुछ देशों विशेष तौर पर भारत से कितनी कमी आई है। साथ ही हम खासतौर पर स्नाकोत्तर के क्षेत्र में आई कमी पर ध्यान दे रहे हैं.''
उनका कहना था कि कुछ यूनिवर्सिटी विशेष तौर पर अंतरराष्ट्रीय छात्रों की कुछ विषयों में दाखिले लेने को लेकर आई कमी से होने वाले प्रभाव को लेकर चिंतित हैं।
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