इससे भारत, दक्षिण कोरिया, चीन, तुर्की और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों पर दबाव पड़ेगा जो ईरान से बड़े पैमाने पर तेल का आयात करते हैं। लेकिन अमरीकी राष्ट्रपति का कहना है कि ईरान के तेल का उसके सहयोगियों द्वारा बहिष्कार के नकारात्मक नतीजों से बचने के लिए विश्व बाजार में पर्याप्त तेल है।

इस कदम से अमरीका उन विदेशी बैंकों पर भी प्रतिबंध लगा सकेगा जो ईरान के साथ तेल के व्यापार में अभी भी शामिल हैं। ईरान अपने परमाणु संवर्धन कार्यक्रम पर अंतरराष्ट्रीय दबाव का सामना कर रहा है।

पश्चिमी देशों को संदेह है कि ईरान परमाणु हथियार विकसित करने का प्रयास कर रहा है। वहीं ईरान इस बात पर जोर देता रहा है कि उसका परमाणु कार्यक्रम पूरी तरह से शांतिपूर्ण है।

देशों को नोटिस

अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने एक बयान में कहा कि अमरीका वैश्विक बाजार पर बराबर नजर रखता रहेगा ताकि सुनिश्चित किया जा सके कि ईरान से तेल खरीद में कमी की वजह से पैदा हालात से निपटा जा सके।

ईरान से तेल के सबसे बड़े खरीददारों में भारत तीसरे नंबर पर है। ईरान के तेल निर्यात का 20 प्रतिशत हिस्सा चीन को जाता है, 17 प्रतिशत जापान खरीदता है जबकि 16 फीसदी भारत आयात करता है।

भारत पर इस फैसले का क्या असर पड़ेगा इसक जानकारी देते हुए अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार कामरान बोखारी ने कहा, "जहां तक भारत का सवाल है, उसे ईरान को तेल के बदले भुगतान करने में पहले से ही दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। पाकिस्तान पर भी दबाव है। वैसे ईरान को अमरीकी प्रतिबंधों के सामना करते हुए तीस वर्ष हो गए है। अभी कहा नहीं जा सकता है कि ईरान की अर्थव्यवस्था पर इसका कितना असर पड़ेगा। अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा पर घरेलू दबाव है। उन्हें चुनाव के लिए प्रचार भी करना है। लेकिन वो इस मुद्दे पर ईरान के साथ युद्ध के लिए तैयार नहीं है."

व्हाइट हाउस से जारी एक बयान में स्वीकार किया गया है कि दक्षिण सूडान, सीरिया, यमन, नाइजीरिया और उत्तरी सागर में तेल के उत्पादन में बाधा आने से वर्ष 2012 के पहले महीनों में बाजार में तेल नहीं था।

बयान में कहा गया है, ''लेकिन अब ईरान के तेल के अलावा भी अन्य जगहों से तेल की पर्याप्त आपूर्ति है जिससे दुनिया के देश ईरान के तेल के आयात में उल्लेखनीय कटौती कर सकते हैं.''

इसमें कहा गया है, ''ईरान से कच्चा तेल खरीदने वाले कई देश इसमें पहले ही कमी कर चुके हैं या उन्होंने घोषणा की है कि वे वैकल्पिक आपूर्तिकर्ताओं से इसके लिए विचार-विमर्श कर रहे हैं.''

अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने बीते साल दिसम्बर में जिस कानून पर दस्तखत किए थे, उसके मुताबिक देशों को 28 जून तक ये दिखाना होगा कि उन्होंने ईरान से कच्चे तेल की खरीदारी में उल्लेखनीय कटौती की है वरना उन्हें अमरीकी वित्तीय तंत्र से अलग-थलग होना पड़ेगा।

इस महीने की शुरुआत में अमरीका ने जापान और यूरोपीय यूनियन के दस देशों को प्रतिबंध से छूट दी थी जिन्होंने ईरान से तेल आयात में कटौती की है।

तीन महीने का वक्त

प्रतिबंध वाला कानून तैयार करने वालों में से एक सीनेटर बॉब मेनेनदेज ने समाचार एजेंसी एपी को बताया, ''आज हमने सभी देशों को नोटिस दे दिया कि जो भी ईरान से पेट्रोल या पेट्रोलियम उत्पादों का आयात करेगा, उनके पास तीन महीने का वक्त है कि वो इसमें बड़ी कटौती करें या अपने वित्तीय संस्थानों पर कड़े प्रतिंबधों के लिए तैयार रहें.''

तुर्की ने शुक्रवार को घोषणा है कि वो ईरान से तेल आयात में बीस प्रतिशत की कटौती करेगा। वॉशिंगटन स्थित बीबीसी संवाददाता पॉल एडम्स का कहना है कि अमरीकी अधिकारियों ने इस नए कदम से दुनियाभर में तेल की कीमतों पर पड़ने वाले संभावित असर के बारे में अटकलें लगाने से इनकार कर दिया है।

बीबीसी संवाददाता का कहना है कि परमाणु कार्यक्रम की वजह से ईरान पर बढ़ता दबाव, तेल की कीमतों में हुई हालिया बढोतरी की वजहों में से एक है। अमरीका में भी तेल की कीमतें तेजी से बढ़ी है।

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