कानपुर (ब्यूरो)। मैैं आजाद हूं, आजाद रहूंगा और आजाद ही मरुंगा। यह लाइनें हर किसी इंडियन में अभी भी जोश भरने का काम करती हैैं। महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद ने अपने अंतिम पल में इन्हीं पक्तियों को चरितार्थ करते हुए 27 फरवरी 1931 को महज 24 साल की उम्र में इलाहाबाद (अब प्रयागराज) के अल्फ्रेड पार्क में खुद को गोली मारकर मां भारती के चरणों में न्योछावर कर दिया। इस महान क्रांतिकारी का जन्म तो मध्य प्रदेश के झाबुआ में रहा। इनका गहरा नाता उन्नाव जिले के बदरका से रहा। लेकिन यह भी जान लीजिए कि इनका पैतृक गांव कानपुर का प्रतापपुर भौंती है। इस गांव में मैकूलाल के पुत्र सीताराम तिवारी इनके पिता थे। स्वतंत्रता पाने के लिए क्रांति की चिंगारी को ज्वाला बनाने का काम कानपुर में किया। ट्यूजडे को आजाद की पुण्यतिथि पर उनके पैतृक गांव में उनके वंशजों से बातचीत पर आधारित यह रिपोर्ट पढिय़े।
गांव मेें रहते हैैं वंशज
चंद्रशेखर आजाद के पैतृक गांव में रिपोर्टिंग के दौरान हम उनके उस पैतृक घर मेें पहुंचे जहां चंद्रशेखर आजाद के पिता सीताराम तिवारी रहते थे। मौके पर घर के बाहर चबूतरे पर एक नीम का पेड़ लगा मिला। नीम की छांव वाले चबूतरे से अंदर जाने पर पता लगा कि अब उनके वंशज पीछे वाले मकान में मिलेंगे। वहां जाने पर हमारी मुलाकात चंद्रप्रकाश तिवारी, भानुप्रकाश तिवारी, प्रतीक तिवारी से हुई। फैमिली में कई अन्य लोग भी थे। बातचीत में पता लगा कि यह लोग ही चंद्रशेखर आजाद के वंशज हैैं।
प्रूफ किया खुद को वंशज
चंद्रप्रकाश तिवारी ने बताया कि पुराने समय में यहां रहने वाले मैकूलाल तिवारी के पांच पुत्र हुए, जिनमें गुमानी लाल, पुत्तनलाल, मंगू लाल, सीताराम और जंगीलाल थे। इन्हीं में सीताराम तिवारी के पुत्र चंद्रशेखर आजाद थे। खुद के बारे में बताया कि गुमानी लाल के पुत्र रामशंकर और उनके पुत्र उमाशंकर हुए। उमाशंकर के पुत्र मैैं (चंद्रप्रकाश तिवारी) और भानुप्रकाश तिवारी है। चंद्रप्रकाश के बेटे प्रतीक तिवारी हैैं।
पिता मुनीम और बेटा चलाता है गिफ्ट शॉप
आजाद के वंशज चंद्रप्रकाश तिवारी भौंती के एक ईंट के भट्टïे में मुनीम हैैं। वहीं उनका बेटा प्रतीक तिवारी गिफ्ट शॉप चलाता है। सरकार की ओर से स्कीम या योजनाओं के जरिए मिलने वाली मदद के बारे में बताया कि आजाद के वंशज होने के चलते उनको अभी तक कभी कोई मदद नहीं मिली है। उनको महान क्रांतिकारी के वंशज होने पर गर्व है। वह किसी सरकारी मदद की दरकार भी नहीं रखते हैैं।
अंग्रेजों के जुल्मों से छोडऩा पड़ा था गांव
चंद्रप्रकाश तिवारी ने बताया कि उनके जन्म के पहले ही गुलामी के काले बादल छंट चुके थे। बाबा गुमानीलाल बताते थे कि चंद्रशेखर आजाद की ओर से छेड़ी गई मुहिम के बाद अंग्रेज पुलिस ने परिवारवालों का गांव में रहना दूभर कर दिया था। आजाद की तलाश मेें वह कभी भी आ जाते और जुल्म करते थे। उन्हीं जुल्मों से बचने के लिए सभी ने पलायन किया, जिसमें आजादी के बाद भी सभी गांव लौटकर नहीं आ सके हैैं। जिसने जहां पलायन किया उसी स्थान को अपना आशियाना बना लिया है।
अशोक लाइब्रेरी में हैै आजाद की टोपी
चंद्रशेखर आजाद का कानपुर से गहरा नाता रहा है। तिलक हाल स्थित अशोक लाइब्रेरी में उनकी टोपी को सुरक्षित रखा गया है। इसके अलावा आजादी के किस्सों वाली किताबों के अनुसार भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद की भेंट कानपुर में ही हुई थी। इतना ही नहीं मेस्टन रोड़ पर घड़ी की दुकान चलाने वाले और क्रांतिकारियों के सहयोगी सोहनलाल अवस्थी उर्फ (काका जी) को चंद्रशेखर आजाद ने रखने के लिए एक हैैंड ग्रेनेड और पांच वेब्ले स्काट की रिवाल्वर दी थी। जो कि आज भी लखनऊ के म्यूजियम में रखी है।
कई किताबों में लिखी है भौंती की कहानी
कानपुर इतिहास समिति के जनरल सेक्रेटरी अनूप शुक्ला ने बताया कि कई बुक्स और दस्तावेजों से प्रूफ हो चुका है कि चंद्रशेखर आजाद की पैतृक भूमि प्रतापपुर भौंती है। बताया कि काकोरी काण्ड के दिलजले पुस्तक में रामदुलारे त्रिवेदी ने लिखा कि कानपुर से झांसी जाने वाली सडक़ पर कानपुर शहर से कुछ मील दूर स्थित भौती नामक ग्राम में सीताराम तिवारी ने जन्म लिया था। चन्द्रशेखर आजाद के यही पिता कुछ दिनों के बाद अपनी ससुराल के ग्राम सरौसी सिकन्दरपुर जिला उन्नाव में आ बसे।
कान्यकुब्ज ब्राह्मण तिवारी वंश
बनारस में आजाद का साथ देने वाले रिश्तेदार और आजाद की अंत्येष्टि कर्ता पण्डित शिव विनायक मिश्र वैद्य ने लिखा है कि चन्द्रशेखर आजाद के पूर्वज कानपुर जिले के राउत मसवानपुर के निकट भौंती ग्राम के निवासी कान्यकुब्ज ब्राह्मण तिवारी वंश के थे। देवकी नन्दन मिश्र बदरका वालों की बुआ गोविन्दा भौंती ग्राम में तिवारियों के यहां ब्याही थी।
दादा का नाम मैकूलाल तिवारी
कानपुर के इतिहासविद पण्डित लक्ष्मीकांत त्रिपाठी और बाबू नारायणप्रसाद अरोड़ा ने 1948 में प्रकाशित कानपुर के विद्रोही किताब में भी आजाद का पैतृक ग्राम भौंती प्रतापपुर लिखा है। आईपीएस अफसर प्रताप गोपेन्द्र ने अपनी किताब चन्द्रशेखर आजाद मिथक बनाम यथार्थ में लिखा है कि चन्द्रशेखर आजाद के पुरखे भौंती प्रतापपुर के रहने वाले थे, दूसरा उनके दादा का नाम मैकूलाल तिवारी था।