कानपुर (ब्यूरो) दैनिक जागरण आई नेक्स्ट की टीम ने पुलिसवालों को मिलने वाले खाने और बाकी सुविधाओं को लेकर पुलिसकर्मियों से बात की। उन्होंने जो बताया वह हैरान करने वाला है। आइए बारी-बारी यूपी पुलिस कर्मियों को मिलने वाली सुविधाओं के विषय में आपको बताते हैैं। हमें ये जानकारी थाने से लेकर पुलिसलाइन में तैनात उन सिपाहियों ने इस शर्त पर बताई कि हम उनका नाम नहीं लिखेंगे। इसलिए हम नाम या पद नहीं लिख रहे हैं।
1 व्यक्ति के जिम्मे 100 सिपाहियों का खाना
जिले में 3 जून को हुए उपद्रव के बाद आस पास के जिलों से भी पुलिसकर्मियों और पीएसी के साथ आरएएफ को ड्यूटी के लिए बुलाया गया था। कुछ दिन तक तो सामाजिक संस्थाओं ने कभी पूड़ी सब्जी तो कभी सब्जी चावल के पैकेट बनाकर बंटवाए। विभाग की तरफ से भी इन पुलिस कर्मियों के लिए भोजन का इंतजाम किया गया था, लेकिन सिपाहियों की संख्या ज्यादा होने की वजह से पुलिसकर्मियों को भरपेट खाना भी नहीं मिल पाया, जबकि ड्यूटी के घंटे 18-18 रहे। नाम न छापने की शर्त पर ड्यूटी कर रहे सिपाहियों ने बताया कि सामाजिक संस्थाएं समय-समय पर खाना दे जाती थीं, तो भूख मिट जाती थी।
एक ही सब्जी रोज
शहर के ही एक थाने का स्टाफ करीब 150 लोगों का है। यहां दो मेस चलती है, मेस में करीब 80 लोग खाना खाते हैं। बनाने वाला एक व्यक्ति ही हैं। सिपाही बताते हैं कि सीजनल सब्जी के नाम पर एक ही सब्जी को रोज बना दिया जाता है। स्पेशल खाने के लिए त्योहारों का इंतजार करना होता है।
नाश्ते को इंतजाम नहीं
एक सिपाही ने बताया, अगर कोई सिपाही किसी कैदी को कचेहरी पेशी पर लेकर जाता है तो उसे दिनभर खाने के लिए 62 रुपए मिलते हैं। इसी पैसे में उसे नाश्ता और खाने का इंतजाम करना पड़ता है। किसी सिपाही की ड्यूटी अगर रैली या फिर दंगे वाले स्थान पर लगा दी गई तब भी उसे इतने ही पैसे मिलते हैं, खाने का इंतजाम उसे ही करना पड़ता है। इस महंगाई के दौर में आप समझ सकते हैं कि 62 रुपए में कोई भरपेट खाना कैसे खा सकता है।
सिपाही बनते हैं मेस मैनेजर
पुलिसकर्मियों के खाने के दो सिस्टम हैं। पुलिस लाइन में सरकारी मेस होती है। जिसकी देखभाल रिजर्व पुलिस इंस्पेक्टर करता है। हर शुक्रवार को डीसीपी स्तर के अधिकारी का खाने की क्वॉलिटी और साफ-सफाई को लेकर दौरा करना होता है लेकिन ऐसा हो नहीं पाता। वहीं थाने में कोई सिपाही ही मेस मैनेजर होता है। वह महीने भर खाना बनवाता है फिर महीने में आए खर्च को जोड़ता है। जिनके हिस्से में जितना आया वह उतना दे देते हैं।
200 रुपए साइकिल अलाउंस
आपको बता दें कि हेड कांस्टेबल और कांस्टेबल को हर महीने का 200 रुपए साइकिल भत्ता मिलता है। हैरानी की बात ये है कि कहीं भी कांस्टेबल साइकिल से घटना स्थल पर नहीं जाते। मतलब यह कि वे अपने पैसे से पेट्रोल डलवाकर क्षेत्र में जा रहे हैं। दूसरी तरफ दरोगा को बाइक के लिए 700 रुपए भत्ता मिलता है। जबकि इससे कई गुना अधिक का पेट्रोल खर्च होता है।
वर्दी के लिए 3 हजार रुपए
यूपी पुलिस के सिपाहियों को वर्दी के लिए साल में एक बार 3 हजार रुपए मिलते हैं। एक पुलिस कर्मी ने बताया कि एक ही वर्दी बनवाने में 3 हजार रुपए खर्च हो जाते हैं। साल में 4 वर्दी की जरूरत होती है। सब कुछ अपने से ही मैनेज करना पड़ता है। वहीं दूसरी तरफ एसपी को वर्दी के लिए हर पांच साल में एक बार 20 हजार रुपए मिलता है।
2400 रुपए होम अलाउंस
थाने में सभी सिपाहियों के रहने की व्यवस्था नहीं है या फिर वह सिपाही बाहर रहना चाहता है। इसके लिए 2400 रुपए होम अलाउंस मिलता है। तीन साल पहले यह शहर की कैटेगरी ए, बी-1, बी-2 के जरिए तय होता था। यदि किसी पुलिसकर्मी का घर उसी नगर के शहरी क्षेत्र में है तो उसे 913 रुपए मिलते थे।
अक्सर दिखाई देते हैैं ऐसे हालात
पुलिसवालों के कपड़े उतारकर देख लीजिए, बनियान फटी मिलेगी। एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि पुलिसवाले हर दिन कम से कम 12 घंटे ड्यूटी करते हैं। उनके लिए हफ्ते में कोई छुट्टी नहीं होती। वह लोगों के सामने आदर्श बनने की कोशिश करता है। कभी इनकी यूनिफॉर्म उतरवाकर देखिए 10 में से 4 की बनियान फटी होगी, मोजे फटे हुए होंगे।
मेस में अच्छा से अच्छा खाने के लिए पुलिस कर्मियों को दिया जाता है। बाहर से आने वाली पुलिस के भी रहने खाने का इंतजाम किया जाता है।
विक्रम सिंह, आरआई पुलिस लाइन कानपुर नगर