कानपुर (ब्यूरो)। पुलिस पर भले ही तरह-तरह के आरोप लगते हों लेकिन क्या आपको मालूम है कि थानों की पुलिस बीते 47 साल से लगातार काम कर रही है। इस दौरान उसने न कभी खाना खाया और न नींद ली। आपको यह पढ़कर मजाक लग रहा होगा लेकिन ये हकीकत है। थाने की जनरल डायरी यानि जीडी भी इसकी तस्दीक करती है। जिस दिन से जीडी शुरू हुई। उसके बाद से कभी बंद नहीं हुई। जीडी में थाने में तैनात हर पुलिस कर्मी की दिनचर्या लिखी जाती है। जिसके मुताबिक, थानेदार से लेकर सिपाही तक 24 घंटे काम करते हैं। नइ इस जीडी में वीकली ऑफ है और न खाने या फिर सोने का जिक्र।
क्या करें मजबूरी है
देश में शासन बदला, सरकारें बदलीं और पुलिस को हाईटेक भी किया गया। लेकिन नहीं बदल पाई तो केवल थाने की जीडी यानि जनरल डायरी। आजादी के बाद आज तक कभी जीडी में बदलाव की कोशिश नहीं की गई, जबकि समय समय पर यह मांग की जाती रही है.पुलिस विभाग में वीकली छुट्टी की बात लंबे समय से चल रही है। कोरोना से पहले इसके लिए पहल भी शुरू हुई थी। मगर, ये कवायद कितनी गंभीर है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अब भी पुलिस की जनरल डायरी में खाने व सोने के समय का कॉलम नहीं है। इसी खामी की वजह से ही कोई भी थानेदार या सिपाही लिखापढ़ी में कभी खाते और सोते नहीं है।
1973 से चली आ रही
ईयर 1861 में बने पुलिस रेगुलेशन एक्ट के पुलिस प्रपत्र संख्या 2017ए जीडी का ऐसा अभिलेख है, जिसमें थाने पर होने वाली सभी गतिविधियों को समयानुसार दर्ज किया जाता है। थानों पर जीडी लिखने की प्रक्रिया ईयर 1973 से चली आ रही है। रात 12 बजे के बाद जीडी लिखनी शुरू होती है और थानेदार से लेकर सिपाही तक ड्यूटी पर रहते हैं। जीडी में आमद, रवानगी और थाना कार्यालय में मौजूदगी के अलावा कोई कॉलम ही नहीं है। ऐसे में पुलिसकर्मी को सुरागरसी और विवेचना में व्यस्त दिखाया जाता है।
जीडी में 24 घंटे की डिटेल
जीडी हर रात 12 बजे से शुरू होती है। सुबह सबसे पहले थानेदार नक्शा नजरी भरता है, जिसमें पुलिसकर्मियों के काम की डिटेल होती है। इसके बाद थानेदार थाने का मुआयना लिखता है, जिसमें हवालात, कार्यालय और मालखाने का डिटेल दर्ज किया जाता है। जीडी में प्रमुख रूप से पहरा ड्यूटी में परिवर्तन, अभिलेख निरीक्षण, पुलिस कर्मियों की आदम रवानगी दर्ज होती है।
बड़ी घटना होने पर रुक जाती है जीडी
पुलिस की जनरल डायरी कई बार बड़ी वारदातें होने पर रोक दी जाती है। क्योंकि बड़े मामलों में सीनियर ऑफिसर्स के निर्देश पर ही लिखापढ़ी होती है। राय मशविरा करने में काफी वक्त लगता है। जीडी में थाने के हर पुलिसकर्मी ही नहीं, गतिविधियों का भी ब्योरा लिखना होता है। लेकिन थानों में आने वाले फरियादियों की एंट्री नहीं की जा रही। इसी वजह इस बात का सुबूत नहीं रहता है कि फरियादी ने कोई प्रार्थना पत्र दिया भी या नहीं।
जीडी में थाने की हर गतिविधि का ब्योरा दर्ज होता है। नियमानुसार जो पहले से चला आ रहा है, वही प्रक्रिया अपनाई जाती है। इसमें खाने, पीने या सोने का जिक्र नहीं होता है।
-डॉ। अनिल कुमार, एसपी पश्चिम