कानपुर (ब्यूरो) 25 मई को सुपारी कारोबारी पारस गुप्ता लापता हो गए थे, जिसकी गुमशुदगी परिजनों ने 26 मई को थाना हरबंश मोहाल पर दर्ज कराई गई थी। 25-26 मई की रात को मुरे कम्पनी पुल के नीचे ट्रेन से कटे एक व्यक्ति के शव का जीआरपी थाने पर पंचनामा भरा था। थाने से महज 500 मीटर दूर स्थित जीआरपी थाने तक किसी ने उनकी शिनाख्त की जहमत नहीं उठाई। दो महीने बाद परिजन पारस को तलाशते हुए जीआरपी के पास पहुंचे तो उनके कपड़ों से शिनाख्त की। मामले में पुलिस आयुक्त विजय ङ्क्षसह मीना ने थाना प्रभारी हरबंश मोहाल सूर्यबली पांडेय और चौकी इंचार्ज हरबंशमोहाल दिनेश कुमार निलंबित कर दिया गया है।

पीआरओ को किया गया लाइन हाजिर
25 जुलाई को सामने आया कि पुलिस कमिश्नर के पीआरओ अजय कुमार जिस बाइक से चल रहे हैैं वह शातिर अपराधी बलराम की है। मीडिया के माध्यम से जानकारी के बाद पुलिस कमिश्नर ने अजय को लाइन हाजिर कर दिया। मामला शांत नहीं हुआ कि अजय कुमार की कार के बारे में भी नई जानकारी आई। पता चला कि कार किसी अपराधी से गिफ्ट ली गई थी, पुलिस ने अपनी जांच में इसे भी शामिल कर लिया है।

साल्वर को थाने से छोड़ा, दारोगा निलंबित
रावतपुर पुलिस ने साल्वर को ले-देकर छोडऩे के मामले में पुलिस कमिश्नर विजय ङ्क्षसह मीना ने जेसीपी आनंद प्रकाश तिवारी को जांच के आदेश दिए। जेसीपी के निर्देश पर रावतपुर के सब इंस्पेक्टर विकास कुमार गुप्ता की तहरीर पर माला दर्ज कर कार्यवाही शुरू कर दी गई है। आरोपी दरोगा अभिषेक सोनकर को निलंबित कर दिया गया है। अभिषेक के खिलाफ विभागीय जांच भी शुरू हो गई है।

ये तीन ताजा मामले तो उदाहरण मात्र हैैं। इसके अलावा दर्जनों ऐसे मामले हैं जिनमें पुलिस की भूमिका पर सवाल उठे। इनमें प्रमुख रूप से चकेरी के तत्कालीन इंस्पेक्टर की रेप पीडि़ता से गलत तरह से पूछताछ, जाजमऊ में रुपये लेने के आरोप में कार्रवाई, साइबर ठगों की मदद करने में सिपाही का निलंबन, बाबूपुरवा में लापरवाही में दरोगा का निलंबन, जूही इंस्पेक्टर और दारोगा के खिलाफ कार्रवाई, बर्रा में दो दरोगाओं के खिलाफ कार्रवाई, डकैती का वर्कआउट न होने पर गोविंद नगर इंस्पेक्टर के खिलाफ कार्रवाई
काम करते हैैं कारखास, फंसते हैैं दरोगा इंस्पेक्टर
पुलिस विभाग में कारखास की प्रणाली बहुत पुरानी है। ये कारखास होते तो पुलिस के ही लोग हैैं लेकिन इनकी भूमिका बहुत संदेहास्पद रहती है। ये अधिकारी के मुंहलगे होते हैैं और थाने में पाए जाते हैैं। जमीनी विवाद हो या कोई छोटा बड़ा विवाद। ये पीडि़त या आरोपी को साहब तक नहीं पहुंचने देते हैैं और बाहर ही बाहर साहब की जानकारी में डालने के बाद मामले निपटा देते हैैं। मामले का खुलासा होने पर इसका खामियाजा दरोगा या इंस्पेक्टर को भुगतना पड़ता है।

समय-समय पर पुलिस कर्मियों की मॉनीटरिंग की जाती है। जो भी मामले सामने आते हैैं। जांच के बाद सख्त से सख्त कार्रवाई की जाती है।
विजय सिंह मीना, पुलिस कमिश्नर