- वर्षो से बिगड़ा पड़ा फायर फाइटिंग सिस्टम, अप्रशिक्षित कर्मी भी नहीं चला पाए अग्निशमक यंत्र

kanpur : जिले के सबसे बड़े अस्पताल कॉर्डियोलॉजी में सुविधाओं के लाख दावे किए जाएं लेकिन आधारभूत कमियों की वजह से लगी आग ने सारे दावों की पोल खोल दी। बिल्डिंग के किसी भी फ्लोर पर फायर फाइटिंग सिस्टम चलता नहीं दिखाई दिया। लखनऊ से आए फायर आफिसर्स ने इसे लेकर जहां मेडिकल विभाग की कमी मानी वहीं अपने विभाग पर भी सवालिया निशान लगाया। बातचीत के दौरान भी फायर विभाग के डीजी आरके विश्वकर्मा ने गोलमोल जवाब देकर खानापूर्ति तो कर दी लेकिन सवाल ये उठता है कि आखिर इतनी बड़ी गलती फायर विभाग से कैसे हो गई.

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केमिकल से लगी आग

आर के विश्वकर्मा की माने तो आग बेसमेंट में बने स्टोर रूम से शुरू हुई। इस स्टोर रूम में तमाम केमिकल और ज्वलनशील दवाइयां और कॉटन और पट्टियां रखी थीं। उनका कहना है कि अस्पताल के अंदर स्टोर रूम नहीं होना चाहिए। उसके बाद भी ग्राउंड फ्लोर में स्टोर रूम क्यों बनाया गया? उन्होंने ये भी बताया कि लखनऊ में भी एक अस्पताल के अंदर ही स्टोर रूम था, जहां से आग लगी थी। सवाल ये उठता है कि उसके बाद भी कॉर्डियोलॉजी से स्टोर रूम क्यों नहीं हटाया गया?

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फायर फाइटिंग सिस्टम खराब

अस्पताल की बिल्डिंग बनाते समय फायर विभाग की एनओसी (नो ऑब्जेक्शन सार्टिफिकेट) बहुत जरूरी होती है। उसके बाद ही अस्पताल या किसी इमारत का कंस्ट्रक्शन होता है। इसके बाद हर साल फायर विभाग की ये जिम्मेदारी होती है कि एनओसी के रिन्यूअल के दौरान सिस्टम चेक किए जाएं। अस्पताल में फायर फाइटिंग सिस्टम लगाया गया था। पानी का टैंक भी बनाया गया था। एग्जिट गेट भी था, लेकिन हादसे के दौरान बाहर निकालने का कॉरीडोर नहीं बनाया गया था। जो नियमों की पूरी तरह से धज्जियां उड़ाता है। अलार्म तो लगे लेकिन पूरी तरह से बेकार। हर फ्लोर पर फायर एक्सटिंगयूसर सिलेंडर दिखाई दिए। चूंकि स्टाफ से इसे चलाने की ट्रेनिंग नहीं दी गई लिहाजा इनका इस्तेमाल भी नहीं हो सका।

फायर फाइटिंग सिस्टम खराब था। इसकी कई बार नोटिस जारी की गई थी लेकिन सरकारी अस्पताल होने की वजह से कोई कार्रवाई नहीं कर सकते, लिहाजा नहीं की गई। डिमांस्ट्रेशन या कर्मचारियों को प्रशिक्षण भी नहीं दिया गया।

एमपी सिंह, सीनियर फायर ऑफिसर