पाकिस्तान के प्रधानमंत्री यूसुफ रज़ा गिलानी ने सुप्रीम कोर्ट में पेश होते हुए कहा है कि पाकिस्तान के संविधान के तहत राष्ट्रपति ज़रदारी पर कोई मामला नहीं चलाया जा सकता है।

गिलानी पर आरोप है कि उन्होंने ज़रदारी के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार के मामलों की जांच के लिए स्विस अधिकारियों से आग्रह न करके अदालत की अवमानना की है।

समाचार एजेंसी एएफपी के अनुसार गिलानी ने कहा कि वो अदालत का पूरा सम्मान करते हैं और इसलिए अदालत में पेश हुए हैं। उनका कहना था, ''मैं अदालत के प्रति सम्मान दर्शाते हुए यहां आया हूं। राष्ट्रपति दो तिहाई बहुमत से जीत कर आए हैं और उनके ख़िलाफ़ मामले शुरु करना अच्छा संदेश नहीं देगा.''

प्रधानमंत्री के वकील ऐतज़ाज़ एहसन ने संवाददाताओं को बताया, '' हम कोर्ट का पूरा सम्मान करते हैं। इसलिए प्रधानमंत्री खुद गाड़ी चलाकर कोर्ट पहुंचे। हमने अपनी बात रखी है और कोर्ट ने एक फरवरी तक के लिए तारीख दी है। अब प्रधानमंत्री को कोर्ट में नहीं पेश होना होगा.''

ये पूछे जाने पर कि क्या कोर्ट ने संविधान से जुड़े मामलों पर तफ्शील मांगी तो एहसन का कहना था, '' हम इस मामले में भी कोर्ट को पूरी जानकारी देंगे। उन्हें तसल्ली करवाएंगे.''

पुराना मामला

गिलानी ने स्विटरज़रलैंड से राष्ट्रपति आसिफ़ अली ज़रदारी के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार के एक मामले की दोबारा जांच शुरू करने का आवेदन नहीं किया था। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने गिलानी के विरुद्ध अवमानना की कार्यवाही शुरू की थी। बुधवार को गिलानी के वकील ऐतज़ाज़ एहसन ने संकेत दिया था कि अब भी स्विटज़रलैंड को जांच का आवेदन भेजा जा सकता है।

पाकिस्तान में गिलानी सरकार एक तरफ़ न्यायापालिका और दूसरी तरफ़ ताक़तवर सेना से उलझी हुई है।

गिलानी हमेशा से ही स्विटज़रलैंड को ज़रदारी के विरुद्ध जांच का आवेदन करने से मना करते रहे हैं। उनका तर्क है कि जब तक राष्ट्रपति अपने पद हैं उन पर अभियोग नहीं चलाया जा सकता।

एमनेस्टी

राष्ट्रपति आसिफ़ अली ज़रदारी और उनकी दिवंगत पत्नी व पूर्व प्रधानमंत्री बेनज़ीर भुट्टो को साल 2003 में स्विटज़रलैंड की एक अदालत ने करोड़ो डॉलर की हेराफेरी का दोषी पाया था।

ये मामला उस समय का था जब बेनज़ीर भुट्टो सत्ता में थीं। बाद में इन दोनों ने स्विटज़रलैंड में इस निर्णय के विरुद्ध अपील की थी। उसके बाद साल 2008 में पाकिस्तानी सरकार के निवेदन पर स्विटज़रलैंड ने ये जांच बंद कर दी थी।

साल 2008 में बेनज़ीर भुट्टो के ख़िलाफ़ हज़ारों ऐसे मामले बंद कर दिए गए थे, जिसकी वजह से वे चुनावों में भाग लेने के लिए पाकिस्तान आ पाई थीं। इसके कुछ समय बाद ही उनकी हत्या हो गई थी। लेकिन साल 2009 में पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने इन मामलों को बंद करने के आदेश को असंवैधानिक घोषित कर दिया था।

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