हालांकि इस तरह के व्यापारिक कामों के लिए सेना की आलोचना होती रही है, लेकिन कॉरपोरेट जगत में उसका सबसे नया कदम सेना को पाकिस्तान के तनावग्रस्त उत्तर-पूर्व में चरमपंथ के ख़िलाफ़ लड़ाई में मदद कर सकता है।

इस इलाके में सेना ने रेडियो स्टेशन शुरु किया है--एफ़एम 96. इस रेडियो स्टेशन की स्थापना स्वात घाटी में चरमपंथी प्रचार के जवाब में खोला गया था लेकिन अब इसका प्रसारण कबाइली इलाकों में भी होने लगा है। पाकिस्तान का उत्तर-पूर्वी क्षेत्र वहां के विभिन्न कबायली समूहों के बीच प्रतिद्वंद्विता, सत्ता की लड़ाई, और बदलती वफ़ादारी के लिए जाना जाता है।

'मुल्ला रेडियो'

एफ़एम 96 की स्थापना उस समय हुई थी जब सेना ने स्वात घाटी को तालिबान के नियंत्रण से वापिस लेने के लिए सैन्य अभियान शुरु किया था। उस वक्त घाटी में तालिबान धार्मिक नेता मौलाना फ़ज़्लुलाह कुछ रेडियो स्टेशन चला रहे थे।

मौलाना रेडियो के नाम से मशहूर इन एफ़एम स्टेशनों के ज़रिए फ़ज़्लुलाह इस क्षेत्र में कट्टरपंथी इस्लामी विचार फैला रहे थे और दान की अपील करते थे। अफ़ग़ानिस्तान में भी तालिबान अस्थायी रेडियो स्टेशनों के ज़रिए प्रचार करते हैं।

सेना में अधिकारी और एफ़एम 96 के मुख्य कार्यकारी अक़ील मलिक कहते हैं, "पाकिस्तान सरकार ने स्वात में मौलाना फ़ज़्लुलाह द्वारा चलाए जा रहे प्रचार अभियान का जवाब देने का फ़ैसला किया। और सुरक्षा कारणों से ये काम सेना की सहभागिता के बिना मुमकिन नहीं था."

सेना का कहना है कि एफ़एम 96 का काम सिर्फ़ लोगों का मनोरंजन करना और उन्हें ख़बरे पहुंचाना है। लेकिन विशेषज्ञ कहते हैं कि रेडियो स्टेशन का ज़्यादा ध्यान उन क्षेत्रों में पहुंचना है जहां सेना से ज़्यादा चरमपंथियों का प्रभाव है, फिर चाहे इसके लिए बॉलीवुड के गानों का इस्तेमाल करना पड़ा।

बॉलीवुड संगीत

पाकिस्तान का आंशिक-स्वायत्ता वाले कबायली इलाका और बलूचिस्तान वो इलाके हैं जहां चरमपंथी का प्रभाव सेना से ज़्यादा है। पर्यवेक्षकों मानते हैं कि इन इलाकों के नागरिकों की ज़िदगी में अपनी मौजूदगी दर्ज कराना ही काफ़ी है। इस्लामाबाद-स्थित अपने स्टूडियो से सेना अब स्वात और मालाकांड जैसे 16 ऐसा शहरों और कस्बों में प्रसारण कर रही है जहां एक समय चरमपंथियों का वर्चस्व था।

ज़्यादातर मनोरंजन के कार्यक्रमों के साथ ही इस स्टेशन में ख़बरें भी शामिल होती है। दिलचस्प बात ये है कि इस स्टेशन पर बॉलीवुड के नए गाने बजाए जाते हैं।

'प्रचार का हथकंडा?'

लेकिन आयशा सिद्दिक़ा जैसे आलोचकों ने इस रेडियो स्टेशन को महज़ आर्मी का प्रचार का हथकंडा करार दिया है जिसका मक़सद सेना के व्यापारिक हितों को बढ़ावा देना है। लेकिन सेना इन आरोपों को खारिज करती है, हालांकि एफ़एम 96 के मुख्य कार्यकारी कर्नल मलिक ने माना कि स्टेशन को बढ़ाने की योजना है। लेकिन फ़ोन-इन कार्यक्रमों में हिस्सा लेने वाले श्रोताओं के लिए मनोरंजन सबसे ज़्यादा अहम है हालांकि कई श्रोता सुरक्षा के बारे में भी बात करते हैं।

एक लाइव कार्यक्रम के दौरान एक अज्ञात कॉलर ने कहा, "मैं उम्मीद और प्रार्थना करता हूं कि हमारी घाटी में स्थिति जल्द-से-जल्द बेहतर होगी." एफ़एम 96 रेडियो स्टेशन भले ही पाकिस्तान के अशांत क्षेत्रों में लोकप्रिय हो रहा हो लेकिन अभी से ये कहना मुश्किल है कि क्या इसके ज़रिए सेना स्थानीय लोगों की वफ़ादारी हासिल करने में क़ामयाब होगी।

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