कानपुर (ब्यूरो)। कानपुर में मौजूद प्रदेश की एक मात्र रोडवेज सेंट्रल वर्कशाप बार फिर से रौनक देखने को मिलेगी। लगभग बंद होने के कगार पर पहुंच चुकी वर्कशॉप को शासन से एक हजार नई बसों की बॉडी तैयार करने का ऑर्डर मिला है। जिससे बंद होने के कगार पर पहुंच चुकी वर्कशाप में काम करने वाले कर्मचारियों के चेहरे पर मुस्कान लौट आई है। इतने बड़े ऑर्डर से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से बहुत से लोगों को रोजगार मिलने की भी संभावना है। बता दें कि शासन ने फस्र्ट फेज में बीएस-6 मॉडल की 100 बसों की बॉडी बनाने का कार्य दिया था। जिसको सेंट्रल वर्कशाप के इम्प्लाइज ने समय पर पूरा कर दे दिया है। जिसके बाद सेकेंड फेज में शासन ने सेंट्रल वर्कशाप व राम मनोहर लोहिया वर्कशाप को एक हजार बसों की बॉडी बनाने की जिम्मेदारी दी है।
1947 में हुआ था शुभारंभ
रावतपुर में जीटी रोड किनारे बनी रोडवेज की सेंट्रल वर्कशाप का शुभारंभ देश की आजादी के साथ 1947 में हुआ था। यह प्रदेश का इकलौता वर्कशाप हुआ करती थी थी। जहां बसों की बॉडी का निर्माण किया जाता था। पहले रोडवेज को राजकीय रोडवेज सेवा के नाम से जाना जाता था। रोडवेज बसों का संचालन व वर्कशाप राज्य सरकार करती थी। जिसके बाद 1972 में राजकीय रोडवेज सेवा से इसको परिवहन निगम में बदल दिया गया।
3 हजार से बचे 100 कर्मचारी
रोडवेज सेंट्रल वर्कशाप से रिटायर्ड इम्प्लाई रवि शंकर मिश्रा बताते है कि उनकी ज्वाइनिंग 1989 में हुई थी। तब सीनियर इम्प्लाइज बताते थे कि 1947 में जब सेंट्रल वर्कशाप का शुभारंभ हुआ था, तब वर्कशाप में 3 हजार के लगभग इम्प्लाई हुआ करते थे। डेली वर्कशाप में औसतन पांच बसों की बॉडी का निर्माण हो जाता था। उन्होंने बताया कि 1989 के बाद वर्कशाप में कोई भी नई भर्ती नहीं हुई। वहीं इम्प्लाइ रिटायर होते चले गए। वर्तमान में वर्कशाप में 100 के लगभग ही गवर्नमेंट इम्प्लाई है। वहींं कुछ कर्मचारी आउट सोर्सिंग में काम कर रहे हैं।
एक हजार बसों की बॉडी बनाने का मिला तोहफा
रोडवेज सेंट्रल वर्कशाप व राम मनोहर लोहिया वर्कशाप को फस्र्ट फेज में 100 बसों की बॉडी बनाने का कार्य मिला था। वर्कशाप के इम्प्लाइज का कार्य व क्वालिटी वर्क को देखते हुए शासन ने एक हजार और नई बसों की बॉडी बनाने की जिम्मेदारी दोनों वर्कशाप को दी है। जिससे एक बार फिर से बंद होने के कगार में खड़ी सेंट्रल वर्कशाप की रौनक लौट आई है। इससे यूथ को रोजगार के अवसर भी मिलेंगे
2015 के बाद हालत खराब
सेंट्रल वर्कशाप में कार्य करने वाले इम्प्लाइज की मानें तो जेएनएनयूआरएम सीएनजी बसों की बॉडी बनाने के बाद से वर्कशाप में पुरानी बसो का मेंटीनेंस का काम रह गया था। नई बसों की बॉडी बनने का काम लगभग बंद हो गया था। महीने में एक-दो बसें मिल जाती थीं। लिहाजा 2015 के बाद से वर्कशाप बंद होने की कगार पर थी। शासन की तरफ से एक हजार बसों की बॉडी बनाने की जिम्मेदारी देकर वर्कशाप को एक बार फिर से नया जीवन प्रदान किया है।
जनवरी 1948 में पहली बस
सेंट्रल वर्कशाप में जनवरी 1948 में 22 सीटर शेवरले चेसिस की बस की बॉडी का निर्माण किया गया था। जिसके बाद वर्कशाप में 1955 में टाटा मर्सिडीज बेंज डीजल बस की बॉडी का निर्माण किया गया। वहीं उसी वर्ष लिलैंड कंपनी की बस की बॉडी का निर्माण सेंट्रल वर्कशाप में किया गया।
पहले चीफ मेकैनिकल इंजीनियर थे कर्नल अट्राइड
कानपुर स्थित रोडवेज सेंट्रल वर्कशाप के पहले चीफ मेकैनिकल इंजीनियर के रूप में अक्टूबर 1947 में ब्रिटिश ऑफिसर कर्नल अट्राइड को तैनात किया गया था। जिनका कार्यकाल दो साल रहा। नवंबर 1949 में एच कोहिनल को जिम्मेदारी दी गई। पांच साल बाद जून 1954 में पहली बार किसी इंडियन को यह जिम्मेदारी मिली। आरके बासू को चीफ मेकैनिकल इंजीनियर के पद तैनात किया। 1989 मार्च में चीफ मेकैनिकल इंजीनियर के पद को खत्म कर जीएम का पद क्रिएट किया गया।