कानपुर (ब्यूरो)। जल्दी जल्दी पलकें झपकने से आंखों की नसें डैमेज हो जाती हैं। यह एक बीमारी होती है जिसे मेडिकल भाषा में ब्लेफरोस्पाज्म कहते हैं। इसका इलाज अभी तक शहर के किसी भी गवर्नमेंट हॉस्पिटल में नहीं था। पेशेंट को मजबूरन दिल्ली व लखनऊ के चक्कर लगाने पड़ते थे। इसके साथ ही ट्रीटमेंट के लिए मोटी रकम भी खर्च करनी पड़ती थी। ऐसे पेशेंट्स के लिए राहत भरी खबर है। जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के आई डिपार्टमेंट के एक्सपर्ट ने इसका इलाज खोज निकाला है। कई पेशेंट्स को रिलीफ भी मिल रहा है।
50 वर्ष की उम्र के बाद होती
डॉक्टर्स के मुताबिक आंखों के आसपास की मांसपेशियों में तनाव आने से कई बार व्यक्ति की पलकें झपकती रहतीं है। इसकी वजह से आंखें बंद सी रहती हैं और व्यक्ति को धुंधला-धुंधला दिखाई देने लगता है। यह समस्या अधिकतर 50 वर्ष से अधिक उम्र वाले लोगों में देखी जाती है। खास बात ये हैं कि इस समस्या में किसी भी प्रकार की दवा या ड्राप पूरी तरह से काम नहीं करती। ऐसे में इलाज के लिए लोगों को लखनऊ, दिल्ली, मुंबई आदि सिटीज में जाना पड़ता था।
खास किस्म का इंजेक्शन
जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के आई डिपार्टमेंट की डॉ। पारुल सिंह ने ब्लेफरोस्पाज्म बीमारी से ग्रस्त लोगों पर एक रिसर्च किया। जिसमें सिटी के साथ आसपास सिटीज के 70 से अधिक पेशेंट को शामिल किया था। पेशेंट को राहत देने के लिए एक महीने में छह पेशेंट को एक खास किस्म का इंजेक्शन दिया गया। जो आंखों और माथे की मांसपेशियों में लगाया। इंजेक्शन की मदद से दवा मांसपेशियों में पहुंचती है और मांसपेशियां तनाव से मुक्त हो जाती हैं। जिससे पेशेंट की आंख आराम से खुलती और बंद होने लगती है।
न्यूरो और स्किन में भी यूज होता
आई डिपार्टमेंट की एचओडी डॉ। शालिनी मोहन ने बताया कि डिपार्टमेंट की डॉ। पारूल सिंह ने न्यूरो व स्किन के पेशेंट को लगाए जाने वाले एक खास किस्म के इंजेक्शन का ब्लेफरोस्पाज्म पेशेंट््स पर प्रयोग किया। जोकि स्किन पेशेंट की स्किन में झुर्रियों को दूर करता है। वहीं न्यूरो के पेशेंट में भी मांसपेशियों को आराम पहुंचाने के लिए भी इस इंजेक्शन को लगाया जाता है। अब इसका यूज आई पेशेंट पर भी किया जा रहा है।
एक हफ्ते बाद शुरू होता है असर
डॉ.पारुल सिंह ने बताया कि छह पेशेंट को लगाए गए इंजेक्शन का असर शुरुआत कुछ दिनों में देखने को तो नहीं मिला, लेकिन एक हफ्ते बाद इसका असर होना शुरू हो गया था। दो माह तक इस इंजेक्शन का असर पूरी तरह से दिखाई देने लगा। जो छह माह तक रहता है। छह माह बाद इस इंजेक्शन को दोबारा लेना पड़ता है। उसके बाद संबंधित व्यक्ति को आराम मिलता है।
पॉजिटिव रिपोर्ट आने के बाद यूज
डॉक्टर्स के मुताबिक, ओपीडी में हर वीक ब्लेफरोस्पाज्म से ग्रसित 7 से 8 पेशेंट आते हैं। अभी तक इनको ट्रीटमेंट के लिए दिल्ली, मुम्बई भेजा जाता था। अब इन पेशेंट को जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के आई डिपार्टमेंट में ही बेहतर ट्रीटमेंट मिल सकेगा। पेशेंट को हर छह महीने में इंजेक्शन लगवाना पड़ता है।
- 7 से 8 पेशेंट हर सप्ताह ओपीडी में आते
- 35 से अधिक पेशेंट हर माह ओपीडी में आते हैं
- 01 सप्ताह के बाद इंजेक्शन का दिखने लगता असर
- 06 माह में लगाना पड़ता एक निर्धारित डोज