नॉर्वे में साल 2007 से रह रहे भारतीय मूल के भू वैज्ञानिक अनुरूप भट्टाचार्य के बच्चों को नार्वे की एक संस्था, 'नॉर्वेज़ियन चाइल्ड वेलफ़ेयर सर्विसेज़' ने देखरेख के लिए अपने कब्ज़े में ले लिया है। कारण बताया गया कि मां-बाप इन बच्चों का ठीक से ध्यान नहीं रख रहे थे इसलिए उन्हें अलग किया जा रहा है।
अब इस मामले पर नाराज़गी जताते हुए भारतीय विदेश मंत्रालय ने नॉर्वे की सरकार से कहा है कि अगर ये बच्चे वापस अपने मां-बाप के पास लौटना चाहे तो फ़िर उन्हे लौटने दिया जाए। ओस्लो में स्थित भारतीय उच्चायोग ने भी नॉर्वे की सरकार से इस मामले में हस्तक्षेप करने की मांग की है।
भारत सरकार ने जताई नाराज़गी
इस मामले में भारतीय विदेश मंत्रालय ने नॉर्वे के उच्चायोग से अपना कड़ा विरोध दर्ज कराया है। भारत की मांग है कि बच्चों को मां-बाप से अलग करने जैसे क़दम उठाए जाने से पहले भारत में परिवार व्यवस्था, सांस्कृतिक पृष्ठभूमि और सामाजिक रीति- रिवाज़ों पर भी ग़ौर करना चाहिए।
भारतीय विदेश मंत्रालय की ओर से जारी की गई एक विज्ञप्ति के अनुसार, ''नॉर्वे की सरकार से कहा गया है कि वीज़ा समयसीमा ख़त्म होने के बाद अगर बच्चों के माता-पिता भारत वापस आना चाहते है, तो फ़िर बच्चों को भी उनके साथ वापस आने दिया जाए। इस बारे में कोई शक नही होना चाहिए कि मां बाप के पास लौटना बच्चों के भविष्य के लिए अच्छा होगा.''
अनुरूप भट्टाचार्य के दोनों बच्चे भारतीय नागरिक हैं इस आधार पर नॉर्वे के भारतीय उच्चायोग ने बच्चों की स्थिति देखने के लिए उनसे मिलने की मांग की है।
खबरों के अनुसार बच्चों के माता पिता ज़्यादा चिंतित इसलिए हैं क्योंकि दोनों बच्चों के वीज़ा की अवधि फ़रवरी साल 2012 में खत्म हो जाएगी। दंपत्ति को डर है कि ऐसा होने पर उनके बच्चों को उनके साथ लौटने नही दिया जाएगा।
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