नाइन-ज़ीरो कराची शहर का वो इलाक़ा है जहाँ आप बग़ैर पूर्व सूचना के घुस नहीं सकते। पूरे रिहाइशी इलाक़े में हर सड़क, हर नुक्कड़ पर नाक़े लगाए गए हैं जिन पर तीन-चार नौजवान चौबीस घंटे तैनात रहते हैं जो हर आने जाने वाले को बाक़ायदा रोक कर पूछताछ करते हैं।
नाइन-ज़ीरो मुत्तहिदा क़ौमी मूवमेंट का सदर मक़ाम है जहाँ अपनी ग़रीबी के दिनों में इस पार्टी के मुखिया अल्ताफ़ हुसैन रहते थे। और अब इस इलाक़े का नाम सुन कर कराची के शहरियों की रूह फ़ना होती है।
इसका एक कारण है पिछले कई दशकों से कराची में जारी हिंसा और मारकाट का दौर, जिसके लिए लगातार मुत्तहिदा क़ौमी मूवमेंट पर भी अंगुलियाँ उठती रही हैं।
ज़िम्मेदारी
शहरियों की रूह यूँ भी इन दिनों फ़ना है क्योंकि पिछले एक हफ़्ते से शहर में जगह जगह पर लोग दिन दहाड़े मारे जा रहे हैं, बसों में सफ़र कर रहे लोगों पर खुलेआम गोलियाँ बरसाकर उन्हें क़त्ल किया जा रहा है और सरकार लाचार नज़र आ रही है। अब तक 100 लोग मारे जा चुके हैं और सरकार कहती है कि उसने 89 लोगों को गिरफ़्तार कर लिया है।
ये झगड़ा मोटे तौर पर उर्दू भाषी मुहाजिरों–यानी जिनके बाप-दादा बँटवारे के बाद हिंदुस्तान से पाकिस्तान जाकर बस गए–और पठानों के बीच होता रहा है। कराची में आमफ़हम है कि इन झगड़ों के एक पक्ष को नाइन-ज़ीरो से नियंत्रित और निर्देशित किया जाता रहा है।
पाकिस्तान में 2008 के आम चुनाव के दौरान इसी क़िलेबंदी वाले नाइन-ज़ीरो में मेरी मुलाक़ात मुत्तहिदा क़ौमी मूवमेंट संसदीय दल के नेता हैदर अब्बास रिज़वी से हुई।
अमरीका से पढ़ाई करके लौटे रिज़वी पार्टी के संकटमोचकों में से एक हैं। कराची में हिंसा के ताज़ा दौर में वो अपनी पार्टी का हाथ होने से साफ़ इनकार करते हैं।
झगड़े की जड़
टेलीफ़ोन पर हुई एक बातचीत में उन्होंने कहा, “पहाड़ियों से उन आबादियों पर हमला होगा जहाँ उर्दूभाषी रहते हैं। नीचे रहने वाले लोग ही मारे गए हैं.”
हैदर अब्बास रिज़वी हिंसा के लिए अल-क़ायदा, तालिबान और उनके समर्थकों को ज़िम्मेदार ठहराते हैं।
उन्होंने कहा कि ये कहना ग़लत है कि मरने वालों में से अधिकतर पठान हैं और कुछ ही उर्दूभाषी लोगों की जान गई है। उन्होंने कहा कि ऊँचे इलाक़ों पर बैठकर उन पब्लिक बसों पर गोलियां चलाई गई हैं, जिनमें उर्दूभाषी सवार थे।
हैदर अब्बास रिज़वी ने बीबीसी हिंदी से फ़ोन पर एक बातचीत में कहा, “उनके (यानी पठान-बहुल इलाक़ों की) मस्जिदों से ऐलान किया जा रहा है कि उर्दूभाषी यहूदी नस्ल के हैं इसलिए वाजिब-उल-क़त्ल यानी मार डालने लायक़ हैं.”
अलबत्ता उन्होंने ये भी कहा कि उनकी पार्टी पठान समुदाय के नेतृत्व के संपर्क में है और शहर में शांति बहाल करने के लिए कोशिशें जारी हैं। लेकिन कराची शहर गवाह है कि पिछले कई बरसों से हिंसा का दौर यहाँ के लोगों को थरथरा देता है और हर बार अमन बहाल करने की अपील होती है।
पर ये कोशिश बहुत लंबे समय तक असरदार नहीं रह पाती। कुछ देर की शांति के बाद अचानक कराची फिर से राइफ़लों की तड़तड़ाहट और आगज़नी के शोर में डूब जाता है। एक बार फिर से शहर की गलियों और सड़कों से लाशें बरामद किए जाने की ख़बरें अख़बारों की सुर्ख़ियाँ बन जाती हैं।
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