कानपुर(ब्यूरो)। सिटी में एयर पॉल्यूशन ही नहीं, बल्कि नॉइज पॉल्यूशन भी जबरदस्त है। यह हम नहीं, बल्कि सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (सीपीसीबी) के आंकड़े बयां कर रहे हैं। सीपीसीबी के मुताबिक शोर बढऩे की मुख्य वजह फैक्ट्रियों और वाहनों से निकलने वाला शोर है। पिछले चार साल से शहर में 23 फीसदी तक शोरशराबा बढ़ गए। सबसे ज्यादा इंडस्ट्रियल एरिया में लगातार शोरगुल बढ़ता जा रहा है। यह सब अफसरों की जानकारी में होने के बावजबद नॉइज पॉल्यूशन रोकने के लिए कुछ नहीं हो रहा है। बढ़ते नॉइज पॉल्यूशन से लोगों की सुनने की क्षमता पर भी असर पड़ रहा है। नॉइज पॉल्यूशन पर डॉक्टर्स का कहना अधिक शोर से लोगों के दिमाग पर भी असर पड़ता है।
कोरोना काल में गिरावट
आंकड़ों के मुताबिक, शहर में सबसे ज्यादा पनकी, दादानगर, रूमा, फजलगंज, जाजमऊ समेत आदि जगहों पर बड़ी-बड़ी इंडस्ट्री है। इनमें बड़ी-बड़ी मशीनों को फिट किया गया है, जो चालू होने के दौरान आवाज करती रहती है, यह आवाज इतनी ज्यादा होती है कि आसपास एरिया समेत कानपुर का नॉइज पॉल्यूशन बिगाड़ रही है। आंकड़ों के मुताबिक इंडस्ट्री एरिया में वर्ष 2019 से अब तक लगातार नॉइज पॉल्यूशन बढ़ रहा है। हालांकि साल 2020 में कोरोना काल की वजह से आंकड़ों में थोड़ी बहुत गिरावट भी दर्ज की गई, लेकिन उसके बाद से स्थिति फिर लगातार बिगडऩे लगी है।
रात में समान्य से कम होते हैं मानक
सिटी में शोर के मानक भी तय किए गए हैं। इनमें इंडस्ट्रियल, कॉमर्शियल और रेजीडेंशियल एरिया के अलग-अलग मानक हैं। सिटी का बड़ा हिस्सा इन श्रेणियों का मिश्रित एरिया है। नॉइज पॉल्यूशन में सुबह 6 से रात 10 और रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक का समय आता है। दिन में 55 और रात के समय में 45 डेसिबल तक शोर सामान्य माना जाता है। रात में सामान्य मानकों से 5 से 10 डेसीबल शोर कम माना जाता है। नगर के कई इलाके ऐसे हैं, जहां रात दिन शोरगुल होता है पर सेंसर इसे कम ही सुन नहीं पा रहे हैं।
46 नॉइज पॉल्यूशन सेंसर
अधिकारियों ने बताया कि सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (सीपीसीबी) जिन सिटी में नॉइज पॉल्यूशन की मॉनिटरिंग करता है। उसमें कानपुर नहीं है। स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत सिटी के अलग-अलग चौराहों पर नॉइज पॉल्यूशन को मापने के लिए पचास सेंसर लगाए गए हैं। इनमें से 46 सेंसर काम रहे हैं, जबकि चार सेंसर मेट्रो रूट के कारण खराब चल रहे हैं। जो चल रहे हैं उससे सिटी में रोजाना नॉइज पॉल्यूशन की मॉनीटरिंग तो जरूर की जाती है, लेकिन रोकने के लिए कोई खास प्लान नहीं है। विजय नगर, दीप टाकीज तिराहा और फजलगंज चौराहा सुबह और दोपहर को सबसे ज्यादा शोरगुल रहता है।
बनाना होगा मॉनीटरिंग स्टेशन
एक्सपर्ट बताते हैं कि शोर की निर्धारित सीमा 60 से 70 डेसिबल से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। शोरगुल बढऩे का मुख्य कारण है फैक्ट्रियों का विस्तार होना और उससे निकलने वाली आवाज और गाडिय़ों का शो है। इंडस्ट्री एरिया में लगभग 70 प्रतिशत शोरगुल मशीनों के आवाज, इंजन की आवाज से होता है। इसे रोकने के लिए सबसे ज्यादा प्रदूषित एरिया की पहचान कर मॉनीटरिंग स्टेशन बनाना होगा। ताकि रोजाना वहां के आंकड़ों को सुधारा जा सके।
इस वजह से बढ़ रहा शोरगुल
फैक्ट्रियों से निकलने वाला शोर, मशीनें, जनरेटर, वाहनों के आवाज, हार्न, ऊंची आवाज में डीजे बजाना आदि वजहों से शहर में शोर हो रहा है।
ये उठाने होंगे कदम
-नॉइज पॉल्यूशन को कम करने के लिए योजना बनानी होगी
-फैक्ट्रियों से निकलने वाली आवाजों पर अंकुश लगाना होगा
-पॉल्यूशन को रोकने के लिए पुलिस टॉस्क फोर्स हो
-इसे लेकर आए दिन अभियान चलाकर एक्शन लेना होगा
-गाडिय़ों के हार्न को लेकर खाका तैयार करना होगा
साल-----रेजीडेंशियल------इंडस्ट्रियल
2022-----62.01--------81.27
2021-----57.80--------65.26
2020-----65.40--------61.63
2019-----67.04--------66.30
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यह मानक (डेसिबल में)
एरिया दिन रात
इंडस्ट्रियल 75 70
कॉमर्शियल 65 55
रेजीडेंशियल 55 45
साइलेंस जोन 50 40
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क्या होते हैं नुकसान
85 डेसिबल शोर सुनने की क्षमता को कम करता है
85 से ऊपर 8 घंटे सुना जाए तो बहरापन बढ़ता है
ज्यादा शोर से बीपी बढऩ़ा और चिड़चिड़ापन होता है