आकड़ों के अनुसार मच्छरदानी के बढ़ते प्रयोग के कारण अफ्रीका के कई देशों में मलेरिया के रोगियों में काफी कमी हुई है। हालांकि मलेरिया जर्नल में लिखे गए शोध पत्र में शोधकर्ताओं ने कहा है कि अफ्रीका के उन हिस्सों से भी मच्छर गायब हो रहे हैं जहां मलेरिया नियंत्रण के कोई बहुत अधिक उपाय नहीं किए गए हैं।
अभी इस बात को लेकर कोई पक्की राय नहीं बन पाई है कि जो मच्छर गायब हो रहे हैं वो फिर से ज़बर्दस्त ताकत से लौटेंगे या नहीं। तंजानिया, एरीट्रिया, रवांडा, केन्या और ज़ांबिया से मिले आकड़ों के अनुसार इन देशों में मलेरिया के रोगियों की संख्या में भारी कमी आई है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि ये मलेरिया नियंत्रण के उपायों का परिणाम है लेकिन डेनमार्क और तंजानिया के वैज्ञानिकों का कहना है कि ये पूरी कहानी नहीं है। वैज्ञानिकों की यह टीम पिछले दस वर्षों से तंजानिया में मच्छरों को पकड़ रहे हैं और उनका अध्ययन कर रहे हैं।
इस टीम ने 2004 में 5000 मच्छर पकड़े थे जबकि 2009 में ये टीम सिर्फ़ 14 मच्छर पकड़ पाई। कमाल की बात ये है कि ये मच्छर ऐसे गांवों में पकड़े गए हैं जहां मच्छरदानी का इस्तेमाल नहीं होता है।
कुछ वैज्ञानिक इसके पीछे जलवायु परिवर्तन को कारण मान रहे हैं। पिछले कुछ वर्षों में अमरीका में बारिश के समय में परिवर्तन हुआ है। कभी बारिश पहले हो रही है तो कभी बाद में। वैज्ञानिक कहते हैं कि इससे मच्छरों के पैदा होने और बढ़ने की प्राकृतिक प्रणाली प्रभावित हो रही है।
हालांकि शोधकर्ता टीम के मुख्य शोधकर्ता कोपेनहेगन यूनिवर्सिटी के डैन मेयरोविस्च कहते हैं कि वो इस बात से संतुष्ट नहीं हैं कि सिर्फ जलवायु परिवर्तन के कारण ऐसा हो रहा है।
वो कहते हैं, ‘‘ यह बारिश के बदलते पैटर्न के कारण हो सकता है लेकिन ये केवल एक कारण होगा.यह इस बात को ठीक से नहीं बता पा रहा है कि कैसे कुछ इलाक़ों से मच्छर पूरी तरह गायब हो गए हैं। हो सकता है मच्छरों में कोई बीमारी हो। कोई वायरस हो। हो सकता है कि इन समुदायों के वातावरण में ऐसा कोई बदलाव हुआ है जो मच्छर बर्दाश्त नहीं कर पाए और खत्म हो गए.’’
प्रोफेसर डैन कहते हैं कि इन इलाक़ों में मलेरिया का एक भी मामला नहीं बचा है जिसके कारण मलेरिया की दवाईयों के परीक्षण की भी समस्या आ रही है।
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