-कोरोना महामारी के दौर में 8 महीने से एक भी बुकिंग न मिलने से भुखमरी के कगार पर पहुंच चुके हैं बैंड बाजे वाले

- 25 से ज्यादा लोग बंद कर चुके हैं बैंड-बाजे का कारोबार, घर का खर्च चलाने के कोई बेच रहा चाय तो कोई सब्जी

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KANPUR: बैंड बाजा अपनी खुशी को इजहार करने का एक परंपरागत तरीका है। बैंड बाजे की धुन पर नाच, गाना और मस्ती एक अलग ही सूरूर होता है। कोई भी खुशी बिना बैंड-बाजा के अधूरी ही रहती है। लेकिन, दूसरों की खुशियों पर चार-चांद लगाने वाले बैंड कारोबारी ही भुखमरी की कगार पर पहुंच चुके हैं। आलम ये है कि सिटी में मौजूद 200 बैंड कारोबारी में से 25 से ज्यादा ये कारोबार ही बंद कर चुके हैं। आलम ये है कि कोरोना काल में उन्हें एक बुकिंग भी नहीं मिली है। जो लोग बुकिंग कराने आ रहे हैं उनकी बुकिंग क्लीयर गाइडलाइन न होने से वापस करने को मजबूर हैं। सरकार से कई बार गुहार लगाने के बाद भी उन्हें कोई आर्थिक मदद नहीं मिल सकी है, इसलिए ये बिजनेस ही छोड़ने को मजबूर हो चले हैं।

इस साल से कोई उम्मीद नहीं

कानपुर बैंड वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष राजेश गुप्ता के मुताबिक साल के शुरुआत में कुछ बुकिंग मिली थीं। कोरोना काल में एक भी बुकिंग नहीं है। नई गाइडलाइन के बाद भी काम की कोई उम्मीद नहीं है। जनवरी-2021 में 1, फरवरी में 2 लगन की डेट है। इसके बाद सीधे 15 अप्रैल के बाद सहालग शुरू होगी। वहीं सरकार की गाइडलाइन 100 लोगों की होने की वजह से बैंड बुक ही नहीं कर रहे हैं। एक बैंड में कम से कम भी 20 लोग होते हैं। ऐसे में लोग किनारा कर रहे हैं।

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शुरू करने के लिए भी पैसा नहीं

बैंड संचालकों के मुताबिक पिछले 1 साल से ट्रॉली आदि खड़ी है। इनकी मेंटेनेंस और कारीगरों की बुकिंग के लिए भी कम से कम 1 से डेढ़ लाख रुपए चाहिए होता है। बैंड संचालकों के पास इतना पैसा भी नहीं है। वहीं घोड़ी और बग्घी वालों के हालात और भी बुरे हो चले हैं। पूरे साल में 65 से ज्यादा शादियों के ऑर्डर बैंड संचालकों को मिल जाते हैं। इसके अलावा शोभायात्रा और अन्य कार्यक्रमों से पूरे साल इनका खर्च निकलता रहता था। लेकिन अब सब कुछ बंद है। बैंड संचालकों का कहना है कि अब लोग बुकिंग कराने से पहले एडवांस वापस होगा कि नहीं, ये भी पूछते हैं। लोग अब भी बुकिंग कराने से कतरा रहे हैं।

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1,000 से घटकर कमाई 150 रुपए

बैंड-बाजा संचालकों के साथ बैंड बजाने वालों के हाल भी बेहद खराब हैं। बैंड मास्टर बबलू पिछले 3 महीने से चाय बेचने को मजबूर हैं। बैंड मास्टर के तौर पर ये हर बुकिंग पर 1 हजार रुपए कमाते थे। अब चाय बेचकर पूरे दिन में 150 रुपए तक ही कमा पा रहे हैं। इनके साथ 15 से 20 लोगों ने भी मजबूरी में यही काम शुरू किया है। कोई सब्जी का ठेला लगा रहा है तो कोई किसी दुकान पर काम करने को मजबूर है।

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पूरा बैंड बेचने को हुए मजबूर

बैंड एसोसिएशन के अध्यक्ष ने बताया कि हालात इतने खराब हो चुके हैं कि 25 से ज्यादा बैंड कारोबारी बिजनेस छोड़ने को ही मजबूर हैं। आलम ये है कि सस्ते में सामान बेच रहे हैं तो कोई खरीदने वाला भी नहीं है। बुकिंग का दिया पैसा भी लोग वापस ले चुके हैं। कई बैंड संचालक कर्ज लेकर घर का खर्च चला रहे हैं। लाइट से लेकर जेनरेटर तक बेचना पड़ रहा है।

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एक बैंड में होते हैं इतने लोग

-16 आदमी बैंड में शामिल

-10 लोग रोड लाइट लेकर चलते हैं

-2 ढोल बजाने वाले होते हैं

-1 ट्रॉली को चलाने में 7 लोग लगते हैं

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सिटी में प्रमुख बैंड संचालक

-मिलन, स्वदेशी, बॉबी, मस्ताना, काजल, विष्णु, श्रीगणेश, शगुन, वीआईपी, श्रीलगन, न्यू स्वदेशी बैंड व अन्य।

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वर्जन

कोरोना की वजह से बैंड संचालक भुखमरी की कगार पर हैं। लॉकडाउन के दौरान सरकार से भी कोई मदद नहीं मिली। दर्जनों लोगों ने काम ही छोड़ दिया है। बहुत बुरे दौर से गुजर रहे हैं।

-रमेश चंद्र कुंडे, अध्यक्ष, कानपुर बैंड वेलफेयर एसोसिएशन।

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बुकिंग मिलने के बाद भी मजबूरी में कैंसिल करनी पड़ रही है। कारीगरों को भी एडवांस में बुक करना पड़ता है, लेकिन बाद में लोग एडवांस वापस मांगने लगते हैं। इससे हमें दोहरा नुकसान झेलना पड़ता है। मांगों को लेकर डीएम को ज्ञापन देंगे।

-राजेश गुप्ता, कार्यवाहक अध्यक्ष, कानपुर बैंड वेलफेयर एसोसिएशन।

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मेरा घर, दुकान और गोदाम सब किराए पर हैं। घर का खर्च न निकलने से साइकिल में सामान रखकर बेच रहा हूं। बैंड ट्रॉली की मेंटेनेंस कराने के भी पैसे नहीं हैं। कोरोना काल में पूरी तरह से बर्बाद हो गया हूं।

-दीपू केसरवानी, ओनर

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बहुत परेशानी में दिन बीत रहे हैं। जमा पूंजी और पिता के पैसों से घर के खर्च चल रहे हैं। यही हाल रहा तो ये काम ही बंद कर, कोई दूसरा काम शुरू करना पड़ेगा। ऐसे हालात जीवन में पहली बार देख रहा हूं।

-प्रेम बहादुर, ओनर