कानपुर(ब्यूरो)। बेहतर स्वास्थ्य के साथ अपनी ड्यूटी अच्छी से करने के लिए 7-8 घंटे की नींद लेना जरूरी है। वहीं जिसके हाथों पर दर्जनों जिंदगियों को सुरक्षित पहुंचाने की जिम्मेदारी हो, उसके लिए तो यह नींद कितनी अहम है यह आप समझ सकते हैं। लेकिन, हर महीने लाखों रुपए सैलरी लेने वाले और एसी रूम में बैठने वाले रोडवेज अधिकारी ये बात नहीं समझते। रोजाना लाखों लोगों को एक शहर से दूसरे शहर पहुंचाने वाले ड्राइवर और कंडक्टर कुछ ऐसा ही दर्द है। सैकड़ों किलोमीटर बस चलाकर झकरकटी अंतर्राज्जीय बस अड्डे पहुंचने वाले ड्राइवर कंडक्टर को आराम करने के लिए एक चारपाई तक नसीब नहीं है। न नहाने को ठिकाने और न उठने-बैठने की जगह। रोडवेज यात्रियों का दर्द दिखाने के बाद दैनिक जागरण आई नेक्स्ट आज आपको ऐसे ही ड्राइवर कंडक्टर्स का दर्द बताने जा रहा है, जिसे पढक़र आप भी सिहर जाएंगे।

रोजाना 500 बसें आतीं
झकरकटी का बस अड्डा अन्तर्राज्यीय बस अड्डा है। यहां प्रतिदिन 500 से ज्यादा बसें पूर्वांचल और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के तमाम जिलों से आती हैैं। इन जिलों की दूरी झकरकटी से 400 से 600 किलोमीटर तक है। रोडवेज की खटारा बसों से 50 से 80 सवारी लेकर ड्राइवर और कंडक्टर निकलते हैैं। 300 किलोमीटर की दूरी से ज्यादा वाली बसों में यानी दिल्ली, मेरठ, गोरखपुर, बस्ती, देहरादून और कई जिलों से आने वाली बसों में दो ड्राइवर रहते हैैं। जबकि कई बसों में ड्राइवरों की संख्या कम होने की वजह से एक ड्राइवर ही रहता है।

सुविधाओं के नाम पर कुछ नहीं
जब ये ड्राइवर और कंडक्टर झकरकटी आते हैैं तो इनको दूसरी रात गाड़ी चलाने के लिए नींद पूरी करनी होती है, लेकिन भीषण गर्मी में ये आपको कभी बसों के नीचे तो कभी बसों को अंदर सोते मिल जाएंगे। सोचिए ड्रइवर और कंडक्टर पर परिवहन निगम का पूरा ढांचा खड़ा हुआ है। यही ड्राइवर कंडक्टर ही निगम की खटारा बसों से पैसेंजर्स को एक शहर से दूसरे शहर पहुंचाकर हजारों की आमदनी करके विभाग को देते हैैं। लेकिन सुविधाओं के नाम पर इनके पास कुछ भी नहीं है। तस्वीरें साफ बयां कर रही कंडक्टर और ड्राइवर का दर्द

सालों से बंद पड़ा रेस्ट रूम
ड्राइवर और कंडक्टर के रेस्ट के लिए जब विभाग ने कोई इंतजाम नहीं किया तो जैनपुर कानपुर देहात की फर्म कन्साई नेरोलक पेंट्स ने 2017 में झकरकटी बस अड्डा परिसर में एक रेस्ट रूम बनाकर दिया था। लेकिन यह रेस्ट रूम भी दुर्दशा का शिकार हो गया है। बदहाली का आलम ये है कि यहां के पंखे और कूलर (जो 2017 में लगाए गए थे) गायब हो चुके हैैं। ऐसे में ड्राइवर-कंडक्टरभी बसों की छत पर तो कभी बसों के नीचे टायरों के बीच सोते दिखाई देते हैैं। पसीने से लथपथ गाड़ी की सीटों पर भी रेस्ट कर लेते हैैं।
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  • देवरिया डिपो के ड्राइवर कुबेर मिश्र ने बताया कि कहीं बैठने का इंतजाम भी नहीं है। सैकड़ों किलोमीटर यात्रा कर आने के बाद भीषण गर्मी में हाल बेहाल हो जाता हैै। न कहीं बैठने का इंतजाम विभाग ने किया है और न ही सोने का।
    कुबेर मिश्र, देवरिया डिपो
  • - पांच दिन से बस खराब खड़ी है। कई बार किदवई नगर डिपो जाकर जानकारी दे चुके हैैं। इसके बाद भी बस की मरम्मत नहीं हुई है। गाड़ी लेट होने पर विभाग दंड देता है। ऐसे हालात में क्या किया जाए। कुछ समझ नहीं आता है। किदवई नगर के एआरएम नंद किशोर को कई बार कह चुके हैैं।
    रविन्द्र, दोहरीघाट डिपो
  • जो ड्राइवर परिवहन निगम को लाखों रुपये कमा कर देता है। उसके सोने और नहाने का इंतजाम भी झकरकटी बस अड्डे पर नहीं है। एसी दफ्तरों में बैठे अधिकारी ड्राइवर और कंडक्टर की हालत नहीं देखते हैैं।
    रविकांत दीक्षित, परिचालक माती डिपो

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