चीन में हाल ही में संपन्न हुई एशियाई चैंपियंस ट्रॉफ़ी की विजयी भारतीय हॉकी टीम के युवराज सबसे कम उम्र के खिलाड़ी हैं, लेकिन उनकी लगन, मेहनत, ज़िंदगी में तमाम मुश्कलों के बावजूद आगे बढ़ने की ज़िद दूसरों के लिए मिसाल है।
अपने पहले सीनियर अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में युवराज ने तीन मैचों में छह गोल किए। इनमें फ़ाईनल में पाकिस्तान के साथ महत्वपूर्ण भिड़ंत शामिल है।
मुंबई के मरीन लाईंस के 99 नीलखंड निरंजन बिल्डिंग के 16X16 की एक छोटी सी जगह, जिसे मुंबई जैसे भीड़भाड़ और महंगे शहर में कमरा भी कहा जा सकता है, वहाँ युवराज अपने तीन भाई और माता-पिता के साथ रहते है।
पिछले 40 सालों से ये परिवार बिना बिजली और पानी की आपूर्ति के इस कमरे में रह रहा है। युवराज की उपलब्धि की बदौलत पिछले 40 सालों में पहली बार गुरुवार को इस कमरे में बिजली की रोशनी चमकी है। शौचालयों तक के लिए भी उन्हें दूसरों के घरों की ओर रुख करना पड़ता है।
युवराज के पिता सुनील, जो कि एक ड्राईवर हैं, बताते हैं कि सोसाईटी वाले चाहते थे कि वो ये जगह खाली कर दें। इसलिए उन्होंने बिजली, पानी का कनेक्शन ही कटवा दिया। लेकिन युवराज की उपलब्धि के बाद सोसाईटी के लोगों ने भी आकर बधाईयाँ दीं। “सोसाईटी वाले तो सोचते होंगे, ये तो बुरा ही हो गया.” ये कहते हुए सुनील हँस पड़ते हैं।
‘गरीबी से निराश नहीं’
उधर युवराज कहते हैं कि गरीबी ने उन्हें कभी निराश नहीं किया। “इतने साल अंधेरे में बिताने के बाद ऐसा लगा रहा है कि हम रोशनी की ओर बढ़ रहे हैं। स्ट्रीटलाईट के नीचे पढ़ाई करके भी हम कभी फ़ेल नहीं हुए। 60-70 प्रतिशत तो नहीं, हाँ 40-50 प्रतिशत तक नंबर आए.” युवराज ने हमें फ़ोन पर बताया।
पाकिस्तान के साथ खेले गए रोचक फ़ाईनल मुकाबले पर युवराज बताते हैं कि जब बात पेनाल्टी स्ट्रोक्स तक पहुँची तो उन्हें बेचैनी थी। “अगर मैं हिट बाहर मार देता हूँ तो लगा कि पूर्व हॉकी खिलाड़ी और फ़ैंस नाराज़ हो जाएंगे। लेकिन मुझे अपने ऊपर आत्मविश्वास था कि मौका मिलेगा तो मैं पक्का गोल करूँगा.” और उन्होंने गोल किया
शुरुआत
11 साल पहले युवराज ने अपने दोस्त को जब हॉकी खेलते देखा तो वो भी खेल की ओर आकर्षित हुए। उसी दोस्त ने ही उन्हें हॉकी के जूते और स्टिक दी।
वर्ष 2005 में उन्होंने बैंक ऑफ़ इंडिया की ओर से खेलना शुरू किया और पहली बार 3,500 रुपए मिले। वर्ष 2007 में 17-साल की उम्र में जब युवराज ने एअर इंडिया की ओर से खेलना शुरू किया, तो वो टीम के सबसे कम उम्र का खिलाड़ी थे।
जिस दिन उन्हें पता चला कि उन्हें भारतीय टीम के लिए चुन लिया गया है, उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। “मैँ इतना खुश था कि मैं उसे प्रकट नहीं कर पा रहा था। मैं टीम में सबसे कम उम्र का खिलाड़ी था, इसलिए टीम ने मेरा नाम रखा था, ‘द न्यू वंडर किड’.”
युवराज के इस प्रतिभा को आखिरकार राष्ट्रीय पहचान मिली है। जब वो मुंबई पहुँचे तो उनका ज़बर्दस्त स्वागत हुआ। विभिन्न संगठनों और राज्य की ओर से उन्हें पुरस्कार मिले हैं। लेकिन युवराज कहते हैं कि पुराने दिन याद करके रोना सा आ जाता है, बिना बिजली के रहना, मोमबत्ती की रोशनी में रातें काटना, मोबाईल चार्ज करने के लिए भी दूसरे के घर की ओर रुख करना, उसी 16X16 की जगह में नहाना और खाना बनाना।
“मेरे माँ-बाप ने इतने दुख झेले हैं कि वक्त आ गया है कि हम उन्हें एक शानदार ज़िंदगी दें.” लेकिन उन्होंने हॉकी की बजाय क्रिकेट क्यों नहीं चुना?
“क्रिकेट ग्लैमर गेम है जिसमें बहुत पैसा है। हॉकी एक राष्ट्रीय खेल है। हॉकी में भले कोई पैसा नहीं है, लेकिन हॉकी खिलाड़ी कभी पैसे के लिए नहीं खेलते हैं.”
और ज़िदगी से उन्होंने क्या सीखा है?
“ये कि कभी मेहनत बरबाद नहीं होती। निर्भर करता है कि आप जिंदगी में मिलने वाले मौकों का कैसे इस्तेमाल करते हैं.”
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