कहानी की बात करना का कोई मतलब नहीं है जगहों के नाम और मामूली फेर बदल, जो कि किसी रियल इंसीडेंट को एक फिल्मो की स्टोरी के तौर पर प्रेजेंट करने के लिए जरूरी होते हैं, के अलावा सब कुछ वही और वैसा ही जैसा 26/11 की रात को हुए अटैक के टाइम था।
जहां तक इसके अच्छे या बुरे होने की बात है तो इस बात पर भी सबके ख्याल अलग अलग हो सकते हैं। जहां तक मैने समझा है आतंकी हमले के दर्द पर पर फिल्म् बनाना कोई बहुत सेंसटिव ख्याल नहीं हे। क्योंकि फिल्म एक एंटरटेनमेंट का जरिया है और ऐसी चीजों में रोचकता या एंटरटेनमेंट ढूंढ पाना मुझे मुश्किल लगता है पर शायद कुछ लोग डर और भयानक अहसास को ऐसे ही हेंडल कर पाते हों।
राम गोपाल वर्मा ऐसे थॉट्स को पोर्टे करने में मास्टर हैं और यह एक्सक्लूसिवली उनकी ही फिल्म है। जॉइंट कमिश्नर क्राइम राकेश मारिया के करेक्टर में नाना पाटेकर परफेक्ट हैं और एक बार फिर उन्होंने अपनी एबिलिटी और कैपेबिलिटी को प्रूव किया है और बताया है कि उनका ऑप्शन तलाशना आसान नहीं है।
टैरेरिस्ट अजमल कसाब के रोल में संजीव जायसवाल ने अपने को प्रूव किया है और कुछ मौकों पर उनके एक्स्प्रेशन कमाल के हैं। कसाब के रोल के लिए कई बॉलिवुड एक्टर्स को अप्रोच किया गया लेकिन उन्होंने इस रोल को करने के लिए अपनी मंजूरी नहीं दी इसलिए मौका संजीव को मिला और उन्होंने पूरी तरह कैश किया।
बाकि यह ना तो उन टैरेरेस्ट की स्टोरी है जिन्होंने उस दिन मुबई को टारगेट किया, ना मुंबई के लोगों की और नाही उन पुलिस कर्मियों की जो इस अटैक में शहीद हुए या बहादुरी से लड़े। यह बस उस पट्टीकुलर दिन की कहानी है और इसके पिक्चराइजेशन को रियल बनाने के चक्कर में कहीं कहीं बेहद क्रूर हो जाती है। खून खराबे के सींस के कारण ही इस फिल्म को ए सर्टिफिकेट मिला और जो बिलकुल जायज है क्यों कि उसे बर्दाश्त करना सबके लिए पॉसिबिल नहीं है।
इस तरह कि फिल्मों में म्यूजिक की गुंजाइश कम ही होती है फिर भी 'मौला' और 'आतंकी' सांग असर छोड़ते हैं। अगर आप राम गोपाल वर्मा के डायरेक्शन के फैन है तो फिल्म आपके लिए ही है। हांलाकि फर्स्टं हाफ में स्पीड काफी स्लो है और एंड खासा कंन्फ्यूजिंग है।
Cast: Nana Patekar, Atul Kulkarni, Sanjeev Jaiswal
Director: Ram Gopal Varma
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