कानपुर (ब्यूरो)। अरे सुनिए! जरा वो इनविटेशन कार्ड दिखाइएअरे ये नहीं वो वाला जो यलो कलर और बूटे का काम हैअच्छा ये तो ठीक है वो दिखाइए जिसमें ड्राई फ्रूट्स रख सकते हैैंया इनविटेशन के साथ स्वीट्स भी दे सकते हैैं हां ये ठीक है कितनी कीमत है इसकीअरे ये तो दिल्ली में इस दाम से ज्यादा में मिल रहा हैजी हां ऐसी ही कुछ बातें आपको सुनने को मिलेंगी चौक के इनविटेशन कार्ड मार्केट में। अगर आपको शादी, तिलक, मुंडन और बर्थडे के माडर्न और नए डिजाइन के कार्ड चाहिए तो आइए चौक के बाजार में। जहां आपको इनविटेशन कार्ड के साथ स्टेशनरी का सामान, फाइल और पेपर से संबंधित वो सारा सामान मिलेगा। यहां की गलियों में जाने के बाद आपको दिखेंगी 70 साल से भी पुरानी वे दुकानें, जिनमें तीसरी पीढ़ी कारोबार कर रही हैं।

कभी बक्सा बाजार था नाम
बाजार की शुरुआत चौक के कोतवालेश्वर मंदिर से होती है। यहां के लोग बताते हैैं कि वे अपने बचपन में बाबा की अंगुली पकडक़र कोतवालेश्वर मंदिर आते थे। उस समय यहां बक्से में किताबें रखकर बेची जाती थीं, इस लिए इस बाजार का नाम बक्सा बाजार था। धीरे धीरे लोगों के उन बक्सों के पीछे रहने वालों से संपर्क किया तो तिरपाल लगाकर दुकानें शुरू हो गईं। रात के समय चोरी के डर से सामान बक्से में भरकर ले जाने लगे। मंदिर के बाहर एक ज्योतिषी बैठते थे, जिनसे लोग शादी के मुहूर्त निकलवाने आते थे। जिसकी वजह से यहां लोग ज्यादा आते थे। कहा जाता था कि पंडित जी अगर मुहूर्त निकाल दें तो पति-पत्नी के बीच विवाद नहीं होता था। बस इसी वजह से लोग बड़ी संख्या में आने लगे। शास्त्री जी कुंडली भी बनाते थे, जिसका कागज इसी बाजार से लिया जाता था। शास्त्री जी तो नहीं रहे लेकिन लोगों का आना कम नहीं हुआ। इसी वजह से इस बाजार में कागज का काम शुरू हो गया।

पहले पत्री से बनते थे कार्ड
पत्री और मुहूर्त लिखने वाले कागजों से शुरू हुआ कारोबार तो पढ़ाई लिखाई तक आ गया। धीरे-धीरे बच्चों की पढ़ाई की किताबों और कॉपियों से काम शुरू हुआ तो शादी के कार्ड तक पहुंच गया। आज इस बाजार में 10 रुपये प्रति पीस से लेकर 800 रुपये प्रति पीस का इनविटेशन कार्ड मिलता है। पढ़ाई से संबंधित कुछ भी काम हो, थोक या फुटकर का तो आइए चौक बाजार सब कुछ मिलेगा। दस्तावेज सुरक्षित रखने के लिए हर तरह की फाइल आसानी से मिल जाएगी, बस आपको उस गली का पता होना चाहिए जहां आपकी जरूरत का सामान मिलता है।

त्यौहार के हिसाब से बाजार
लोकसभा का चुनाव हो या विधान सभा का, नगर निगम का चुनाव हो या किसी और पद के लिए। टोपी, बिल्ला, झंडा, बैनर, कपड़े, चश्मा, चुनाव चिन्ह। हर तरह की चीज यहां मिलती है। इतना ही नहीं यहां हर दल के हिसाब से रिकॉर्ड की हुई पेन ड्राइव (पहले कैसेट और सीडी) भी मिलने लगी है। नवरात्रि के पहले देवी माता की चुनरी, सिंदूर और पूजा से संबंधित सामान थोक में आसानी से मिल जाता है।

उचित दाम पर स्टेशनरी
यहा ए फॉर एप्पल से लेकर एमए यानी पोस्टग्रेजुएट तक की किताबें आसानी से मिल जाती हैैं। किताब के कारोबारी अजय अग्रवाल बताते हैैं कि पहले ये इलाका रेजीडेंशियल था। लोग पुराने साल की किताबें बेचने और नए साल की किताबें खरीदने आते थे, देखते ही देखते पूरा इलाका कॉमर्शियल हो गया। बड़े स्कूल बन गए। अब न तो कोई किताबें बेचने आता है और न पुरानी किताबें खरीदने। फिर भी यहां रोज हर दुकान में लाखों का कारोबार होता है।