ये कहना है उन वकीलों का जो इन युवकों की पैरवी कर रहे हैं। इन किशोरों पर आरोप है कि उन्होंने भारत-विरोधी प्रदर्शनों के दौरान सुरक्षाबलों पर पथराव किया।
बीते साल अधिकारियों ने उन लड़कों के लिए 'आम माफी' की घोषणा की थी जो मामूली अपराधों में शामिल थे। लेकिन अधिकारियों ने बाद में यह भी कह दिया था कि इनमें से किसी का भी मुकदमा बंद नहीं किया गया है।
स्कूल से अदालत
गुरुवार को श्रीनगर की अदालत के बाहर मौजूद ऐसे दर्जनभर किशोरों में से एक किशोर का कहना था, ''मेरे स्कूल की एक टीम भारत के शहरों के दौरे पर जा रही है लेकिन मैं नहीं जा पा रहा। पुलिसवालों ने मेरे माता-पिता से कहा कि मैं यदि सुनवाई के दौरान गैर-हाजिर रहा तो मुझे फिर गिरफ्तार कर लिया जाएगा। लेकिन दिक्कत ये है कि वो पहले से नहीं बताते कि कब पेशी है, वो बताते ही नहीं हैं.''
इन बच्चों की पैरवी करने वाले एक स्थानीय समूह का कहना है कि अधिकारी इन बच्चों के मन में 'खौफ' भर देते हैं क्योंकि पुलिस उन्हें लगातार तलब करती रहती है और ज्यादातर ऐसा होता है कि इन बच्चों को सीधे स्कूल से अदालत की दौड़ लगानी पड़ती है।
इस समूह के बाबर जान कादरी ने बीबीसी को बताया, ''अधिकारी कहते हैं कि केवल पांच हजार लोगों को गिरफ्तार किया गया, लेकिन मैं यह साबित कर सकता हूं कि बीते दो वर्षों में 20 हजार से ज्यादा गिरफ्तारियां हुई हैं.''
करियर का सवाल
ऐसे ही एक किशोर का नाम है मोहसिन अहमद जिसकी उम्र 15 साल है। वो अपनी मां मेहबूबा बेगम के साथ अदालत में हाजिर हुआ। मोहसिन की मां कहती हैं, ''गैंगस्टर, चोर और दूसरे अपराधियों को जमानत पर छोड़ देते हैं और कभी तलब नहीं करते लेकिन हमारे बच्चे को प्रताड़ित करते हैं। ये कैसी माफी है.''
बच्चों के अधिकारों के लिए काम करने वाले ए आर हंजोरा कहते हैं कि बच्चों के साथ इस तरह के व्यवहार की वजह से उनके दिमाग पर असर पड़ रहा है, वो सोचते हैं कि उन्हें फंसाया जा रहा है और लगातार पीछा किया जा रहा है। इससे उनका करियर और जीवन दोनों बर्बाद हो जाएंगे।
कश्मीर की सड़कों पर हाल के वर्षों में बड़े पैमाने पर भारत-विरोधी प्रदर्शन हुए हैं और सरकार ने जब अभियान चलाया तो 120 से ज्यादा लड़के मारे गए।
बीता साल अपेक्षाकृत शांतिपूर्ण रहा और गर्मियों के दौरान दस लाख से ज्यादा पर्यटक यहां आए। लेकिन समूहों का कहना है कि 'शांति के नाम पर' अधिकारियों ने दमनात्मक उपाए किए।
'जम्मू-कश्मीर कोएलेशन ऑफ सिविल सोसाइटीज़' के साथ काम करने वाले एक कार्यकर्ता कहते हैं, ''यहां तक कि बच्चों के हाथ में हथकड़ी लगाई जा रही है और उन्हें अदालतों में अपराधियों की तरह पेश किया जा रहा है। गिरफ्तारी के डर से ज्यादातर बच्चे भारत के दूसरे हिस्सों में भाग गए हैं.''
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