- 170 मुकदमों में आरोपित फर्जी जमानतदार लगाकर हुए रिहा

- एसआईटी की जांच के बाद होगा बड़ा खुलासा

kanpur : फर्जी जमानत का खेल केवल गैंगस्टर कोर्ट में नहीं खेला जा रहा था, बल्कि सीएमएम कोर्ट में भी बेखौफ होकर अपराधी कानून को ठेंगा दिखा रहे थे। पुलिस की जांच में सीएमएम कोर्ट में गैंगस्टर कोर्ट से भी ज्यादा मामले सामने आए हैं।

फर्जी जमानत मामले में वेडनसडे को गैंगस्टर कोर्ट ने कोतवाली में 73 आरोपितों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था। इनमें गैंगस्टर एक्ट में जेल भेजे गए 59 अपराधी और उनकी जमानत लेने वाले 14 जमानतदार शामिल थे। पुलिस की मानें तो कुल 126 मुकदमों में इन लोगों ने फर्जी जमानत का इस्तेमाल किया था। अब पता चला है कि गैंगस्टर कोर्ट से भी ज्यादा सीएमएम कोर्ट से फर्जी जमानत लगाकर अपराध रिहा हुए.पुलिस सूत्रों के मुताबिक जहां गैंगस्टर कोर्ट में 126 मामलों में गड़बड़ी पकड़ी गई, वही सीएमएम कोर्ट में यह संख्या 170 के करीब है और इसमें शामिल आरोपितों की संख्या 100 से ज्यादा है।

कोर्ट की सख्ती से अफरा-तफरी

फर्जी जमानत के मामले में जिस तरह से गैंगस्टर कोर्ट ने सख्ती दिखाई है, इस गंदे धंधे में शामिल अपराधियों में अफरा-तफरी सा माहौल है। माना जा रहा है कि सीएमएम कोर्ट भी इस मामले में बेहद सख्त है और आने वाले दिनों में वहां से भी एफआइआर दर्ज कराई जा सकती है।

पुलिस ने अभियान चलाकर पकड़े थे 2 आरोपित

फर्जी जमानत के मामले में पुलिस ने थर्सडे को अभियान चलाकर पूरे जनपद से नाम जो 12 आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया था। इनमें से सात गैंगस्टर और पांच वे लोग है। जो कि फर्जी तरीके से जमानत लेते थे।

रजिस्ट्री में लगायी जाती थी रिपोर्ट

फर्जी जमानत के खेल में दस्तावेजों पर वेरीफिकेशन की रिपोर्ट भी फर्जी तरीके से लगायी जाती थी क्योंकि कई दस्तावेजों में एक जैसी हैंड राइ¨टग से रिपोर्ट लगायी गई हैं। जिसके बाद इसमें प्रथम ²ष्ट्या डाक कर्मियों की मिलीभगत भी सामने आ रही है।

कोर्ट से जमानत अर्जी स्वीकृत होने के बाद अभियुक्त की रिहाई के लिए 50 हजार या उससे अधिक कीमत के दो बांड और एक प्राइवेट बांड की कोर्ट मांग करता है। प्राइवेट को छोड़कर दोनों बांड के एवज में शामिल दस्तावेजों का परीक्षण संबंधित विभाग से कराया जाता है। इसके लिए कोर्ट से दस्तावेज रजिस्ट्री के माध्यम से संबंधित विभाग भेजे जाते हैं और वहां से प्रमाणित होकर रजिस्ट्री के माध्यम से ही वापस आते हैं। कई बार इसमें पैरोकार (पुलिस कर्मी) भी लगाए जाते हैं जो हाथों-हाथ दस्तावेजों का सत्यापन कराकर लाते हैं। सूत्रों के मुताबिक कोर्ट से रजिस्ट्री के माध्यम से भेजे गए दस्तावेजों को डाक कर्मियों की मिलीभगत से खोला जाता था। संबंधित दस्तावेजों पर सही की रिपोर्ट लगायी जाती थी और पुन: दस्तावेजों को रजिस्ट्री के माध्यम से कोर्ट भेज दिया जाता था। प्रारंभिक जांच में कुछ कर्मचारियों ने ही ये खुलासा किया है।