कानपुर (ब्यूरो) कभी कभी आंखों के सामने वारदात का सही चेहरा आ जाता है, उसके बाद भी विसरा जांच के लिए क्यों भेजा जाता है? बड़े मामलों में वारदात के बाद सेटर एक्टिव हो जाते हैैं। एक पक्ष को बचाने के लिए इनके पास केवल विसरा जांच का रास्ता होता है। विसरा जांच के लिए गया तो समझिए कि पूरा मामला ठंडे बस्ते में चला गया।
सैंपल नॉट फाउंड
चकेरी में मार्च 2020 में मां-बेटे की हत्या की गई थी। कमरे में डेड बॉडी मिली थी। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत की वजह स्पष्ट नहीं हुई तो विसरा जांच के लिए फोरेंसिक लैब भेजा गया लेकिन जांच रिपोर्ट आज तक नहीं आई। सीनियर ऑफिसर्स के आदेश पर विवेचक कई बार रिमांइडर भेज चुके हैं। इसके बाद भी रिपोर्ट नहीं आई।
एक साल से रिपोर्ट का इंतजार
बाबूपुरवा स्थित एक ट्रांसपोर्ट कंपनी में मुनीम मिर्जापुर जिगना निवासी लवकुश यादव का संदिग्ध हालात में शव मिला था। जांच में हत्या की पुष्टि हुई। पोस्टमार्टम रिपोर्ट के मुताबिक हत्यारों ने मारपीट के बाद हाथ से गला घोंटकर उसकी हत्या की। पीठ और पेट मे अंदरूनी चोटें मिलीं, मौत की सही वजह नहीं मिल पाई। विसरा भेजा गया लेकिन रिपोर्ट एक साल बाद भी नहीं आई।
सैंपल इज डेस्ट्रायड
बाबूपुरवा के ढकना पुरवा में कैटरिंग का काम करने वाली युवती की 2020 में दीपावली के ठीक पहले संदिग्ध हालात में मौत हो गई। भाई ने पड़ोस में रहने वाली सहेलियों पर गलत इलाज कराने और झाड़ फूंक कराने का आरोप लगाया है। पोस्टमार्टम में मौत की सही वजह न आने के कारण विसरा जांच के लिए भेजा गया। रिपोर्ट सैैंपल इज डेस्ट्रायड की आई तो फाइल बंद कर दी गई।
क्या होता है विसरा
किसी व्यक्ति की मौत के बाद मौत की वजह को पता लगाने के लिए मृतक के शरीर के कुछ आंतरिक अंगों को सुरक्षित रखा जाता है, इसे विसरा कहते हैं। बिसरा की केमिकल टेस्टिंग करने के बाद मौत की वजह स्पष्ट हो जाती है। विसरा सैम्पल की जांच फॉरेंसिक साइंस लेबोरेट्री में होती है। किस अंग को कितना सुरक्षित रखना है यह भी निश्चित होता है। मृतक के शरीर से 100 ग्राम खून, 100 ग्राम पेशाब, 500 ग्राम लीवर सुरक्षित रखा जाता है जिससे बाद में जांच करने पर सही वजह पता की सके। सरल शब्दों में कहा जाए तो मानव शरीर के अंदरुनी अंगों जैये फेफड़ा, किडनी, आंत को विसरा कहा जाता है।
विसरा रिपोर्ट में देरी का है ये खेल
पुलिस को किसी मामले में 90 दिन के भीतर चार्जशीट पेश करनी होती है। उससे पहले विसरा की रिपोर्ट आ जानी चाहिए। कुछ केसेस में छह महीने से ज्यादा समय लग जाता है। ऐसे में केस की कार्यवाही अटक जाती है। सूत्रों के अनुसार विसरा रिपोर्ट में लैब और पुलिस यानी दोनों की ओर से जानबूझ कर देर की जाती है। इसके चलते जांच लटकी रहती है।
संदिग्ध मौत पर होती है जांच
जब मृत्यु का कारण स्पष्ट न हो तब पोस्टमार्टम करवाया जाता है। सडऩे, दुर्घटना, गोली लगने या गंभीर चोट के कारण मृत्यु होती है तो वहां पोस्टमार्टम में कारण स्पष्ट हो जाता है। अगर मौत संदिग्ध परिस्थिति में हो और अंदेशा हो कि जहर या अन्य किसी कारण मौत हुई है तो विसरा की जांच की जाती है।
विसरा फैक्ट फाइल
1 जनवरी से 15 मई तक भेजे गए सैैंपल की स्थिति
भेजे गए सैैंपल : 134
रिपोर्ट आई : 32
रिमाइंडर भेजे गए : 132
सैैंपल नॉट फाउंड एंड डेस्ट्रायड : 44
शासन के आदेश के बाद हर जिले में विसरा जांच के लिए मिनी लैब खोले जाने का प्लान है। जल्द ही सभी लैब्स शुरू की जाएंगी।
डॉ। आनंद कुमार शर्मा, फोरेंसिक लैब, आगरा