KANPUR: जिन हाईवे पर बड़ी-बड़ी गाडि़यां रफ्तार भरा करती थीं, वहां आज रोजी-रोजगार खत्म होने के कारण अपने घरों की ओर जा रहे लाखों प्रवासियों का रेला है। तस्वीरें ऐसी कि बड़े से बड़े पत्थर दिल के भी आंसू निकल जाएंऐसी तस्वीरें इतिहास में न पहले कभी देखीं न सुनी गई। कोई साइकिल पूरी गृहस्थी और बच्चों के साथ पैडल मारते हुए आगे बढ़ जा रहा है तो कोई रिक्शा और हाथ गाड़ी पर छोटे-छोटे बच्चों को बैठाकर पसीना बहाते हुए जिंदगी का सफर आगे बढ़ा रहा है। भूख और प्सास से व्याकुल सैकड़ों लोग ऐसे भी हैं जो सिर पर बोझा धरे नंगे पैर चल रहे हैं। पैरों पर छाले पड़ गए हैं, शरीर जवाब दे रहा है लेकिन किसी तरह घर पहुंचने की जिद में आगे बढ़ रहे हैं। उनकी दर्द भरी कहानी सुनकर कलेजा मुंह को आ जाता है। जितने लोग, उतना दर्द, उतनी कहानियां।

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हमें तो बच्चों की फिक्र है

नंगे पाव में छालों की नहीं बच्चों की भूख की चिंता सताती है कि कहीं आज फिर भूखे पेट न सोना पड़े। यह बात उस मजबूर मां की थी जो अपने पति व बच्चों के साथ पैदल ही नंगे पाव गोद में छोटा बच्चा लेकर चली जा रही थी। रामादेवी चौराहे पर पुलिस ने उसे रोककर बस से घर तक पहुंचाने का आश्वासन दिया तो आंखें छलक उठीं। नालंदा बिहार में रहने वाली पिंकी देवी बताती है कि उनके पति दयानंद और जेठ रधुवीर वल्लभगढ़ फरीदाबाद में एक फैक्ट्री में काम करते हैं। पांच माह का बेटा भी है। लॉकडाउन की वजह से काम धंधा बंद होने के बाद जो पैसा बचा था, वह तो दो वक्त की रोटी के जुगाड़ में खत्म हो गया। घर लौटने के लिए किराया तक नहीं बचा। मजबूरी में पति ने गांव से 10 टका ब्याज पर पैसा मंगाया। इसके बाद भी कोई साधन नहीं मिला तो पैदल ही चल दिए। हाईवे पर एक ट्रक मिला गया। जिसने नालंदा तक छोड़ने के लिए एक सवारी के 1800 रुपए लिए। वो भी हरियाणा के पास सीमा सील होने की बात कह बीच में ही उतार कर भाग गया।

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कोरोना के कहर में ढह गया आशियाना

सालों से पूरे परिवार ने मजदूरी कर बचत के पैसे से आशियाना तैयार किया था। वो भी इस कोरोना के कहर में ढह गया। काम धंधा बंद होने के बाद पेट की आग बुझाने में जमा पूंजी भी खत्म हो गई। परिवार में 9 लोग होने के कारण दिनों दिन हालात और खराब हो रहे थे। दिल्ली से कटिहार के लिए ट्रक वाले एक आदमी का दो हजार रुपए किराया मांग रहे थे। जब खाने को पैसे नहीं हैं तो किराए के कहां से लाते। जब कोई रास्ता नहीं दिखा तो घर बेच कर गांव जाना का निर्णय लिया। कटिहार जाने के लिए एक ट्रक 20 हजार रुपए में बुक किया। जिसमें अन्य लोग भी थी। मंडे की सुबह ट्रक को रामादेवी हाइवे पर पुलिस ने रोक लिया और बस से भेजने की बात कही। अपने बच्चों के साथ जा रहीं शबनम ने जब अपनी यह कहान बताई तो आंसू खुद ही आखों से निकल पड़े। बोलीं, बस किसी तरह गांव पहुंच जाएं तो जान में जान आए।

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लॉकडाउन ने कर दिया तबाह

लॉकडाउन ने कइयों की हस्ती खेलती जिंदगी तबाह कर के रख दी है। इनमें से ही एक सुनीता देवी भी है। मऊ की रहने वाली सुनीता जिस ट्रक पर बैठी थीं, उसे भी पुलिस ने रुकवाया। ट्रक में भूसे की भरे 70-80 लोगों को देखकर लगा कि भूख इंसान को कितना मजबूर कर देती है। ट्रक में कई महिलाएं भी थीं जिनकी गोद में छोटे-छोटे बच्चे थे। गोद में एक साल का बच्चा लिए सुनीता देवी ने बताया कि वह पति रामेश्वर के साथ हैदराबाद में रहती हैं। पति पेंटिंग का काम करते है। किसी तरह गुजर बसर हो रही थी लेकिन लॉकडाउन किसी तूफान की तरह आया और सब कुछ उड़ा ले गया। दो महीने का किराया देने के लिए कान के बुंदे भी बेचने पड़ गए। बचे हुए पैसे से किराए का जुगाड़ हो गया और ट्रक में बैठकर घर की ओर चल पड़े।