फर्क सिर्फ इतना है कि जिस चेहरे को लेकर लोगों का गुस्सा और उनकी सहानुभूतियां उमड़ीं वो चेहरा निदा आग़ा सुल्तान का नहीं बल्कि एक विश्वविद्यालय की प्राध्यापक निदा सुल्तानी का था।
बीबीसी संवाददाता फिल कूम्स के मुताबिक जो कोई भी इस तरह किसी खबर से जुड़ जाता है उसकी तस्वीर की खोज में मीडिया हमेशा रहती है क्योंकि तस्वीर कहानी और आम लोगों के बीच कड़ी का काम करती है।
पहले संवाददाता व्यक्ति के परिवार से मिलकर जानकारियां और तस्वीरें हासिल करते थे लेकिन सोशल मीडिया के ज़माने में पहले से पहले खबर पहुंचाने के जोश में अक्सर बिना किसी जांच पड़ताल के सोशल मीडिया से तस्वीरें उठा ली जाती हैं और उनका इस्तेमाल किया जाता है। कूम्स के अनुसार जहां तक उन्हें याद है बीबीसी ने इस तस्वीर का इस्तेमाल नहीं किया था।
निदा सुल्तानी की ज़बानीउनकी आपबीती:
''इक्कीस जून 2009 को सुबह जब मैं अपने दफ्तर पहुंची और अपना ईमेल खोलकर देखा तो पाया कि मेरे फेसबुक अकाउंट पर दोस्ती के 67 प्रस्ताव आए हुए थे। अगले कुछ घंटों में इनकी संख्या बढ़कर 300 हो गई।
गलत तस्वीर
तक तक मुझे यह नहीं पता कि मेरी तस्वीर और मेरा नाम दुनियाभर में टीवी पर जारी हो चुका है। मेरे विश्वविद्यालय के छात्र धरना-प्रदर्शन कर रहे थे और इस वजह से मैं देर शाम तक विश्वविद्यालय परिसर में मौजूद थी। तभी मेरे पास एक व्यक्ति का ईमेल आया जिससे पहली बार मुझे इस बात की जानकारी मिली की निदा आग़ा सुल्तान नाम की एक लड़की की प्रदर्शन के दौरान हत्या कर दी गई है। इस लड़की के बारे में कोई भी जानकारी उपलब्ध नहीं होने के चलते वो मुझसे इस बारे में जानकारी हासिल करना चाहते थे।
घर पहुंचने पर मेरे दोस्तों, रिश्तेदारों और मुझे जानने वालों ने लगातार फोन कर मुझे बताया कि मेरी तस्वीर सीएनएन, फॉक्स न्यूज़ और ईरानी चैनलों पर दिखाई जा रही है।
मीडिया, मेरा चेहरा, निदा सुल्तान की पहचान और उनकी मौत को मिलाकर मेरी मौत को खबर बना चुका था। इसके बाद मैंने फैसबुक और ईमेल के ज़रिए अपने जानकारों और बाकि लोगों को बताना शुरु किया कि एक पहचान संबंधी गलती हुई है और मैं वो लड़की नहीं हूं जिसे गोली मारी गई है।
इसके बाद भी मीडिया में मेरी तस्वीर का इस्तेमाल जारी रहा। लोगों ने मुझपर सरकार की एजेंट होने का आरोप लगाया, जो ‘देश की नायक’ बन चुकी निदा आग़ा सुल्तान का फेसबुक अकाउंट हासिल कर उनकी पहचान से फायदा उठाने की कोशिश कर रही है।
निदा आग़ा सुल्तान के परिवार ने उनकी असल तस्वीरें जारी कर इस गड़बड़ी को दूर करने की कोशिश की लेकिन तब तक 48 घंटे बीत चुके थे। ईरानी सरकार को प्रदर्शन के दौरान हुई निदा आग़ा सुल्तान की मौत से पल्ला झाड़ने कोई तरीका चाहिए था।
निदा आग़ा सुल्तान का मामला तूल पकड़ता जा रहा था और मेरे कई दोस्तों ने मुझसे किनारा कर लिया क्योंकि मेरे साथ होना उनके लिए भी खतरनाक था। मेरे बॉयफ्रेंड ने भी मुझसे किनारा करना बेहतर समझा।
मेरे कई दोस्तों ने मुझे इस मामले को संभालने की सलाह भी दीं लेकिन मुझे उस वक्त न कुछ समझ आ रहा था न मैं कुछ समझ पा रही थी। मुझे यह विश्वास नहीं हो रहा था कि एक तस्वीर से मेरी ज़िंदगी इस तरह बर्बाद हो सकती है।
आखिरी बार जब सरकार के नुमाइंदे मेरे घर आए तो उन्होंने मुझपर सीआईए का जासूस होने का आरोप लगाया और मुझसे एक ऐसे बयान पर हस्ताक्षर करने को कहा गया जो मैंने नहीं लिखा था। मुझे पता था ईरान में मुझपर इस तरह के आरोप लगने का मतलब है सज़ा-ए-मौत। फिर मैं ईरान से भागी और अपनी जान बचाने के लिए अमरीका आ गई।
ये पूरा घटनाक्रम सिर्फ 12 दिनों में घटा। यानी दो हफ्तों से कम समय में मैं अंग्रेज़ी की एक प्राध्यापक से अपने देश से भागी एक महिला हो गई। मुझे सबसे बड़ी शिकायत अंतरराष्ट्रीय मीडिया से है जिसने मेरी तमाम सफाई के बाद भी मेरी तस्वीर इस्तेमाल करना जारी रखा।
मेरे साथ जो हुआ शायद मैं उससे कभी उबर नहीं पाऊंगी। मैं लंबे समय तक तनाव में रही हूं, लेकिन ज़िंदगी में मैंने जो खोया वो कभी वापस नहीं आ सकता। फिर भी मैं ज़िंदगी से अपनी लड़ाई जारी रखूंगी क्योंकि आखिरकार मुझे उस पर जीत हासिल करनी है.''
कौन थीं निदा आग़ा सुल्तान
- निदा कभी राजनीतिक रुप से प्रदर्शनों में क्रियाशील नहीं रहीं। 26 साल की उम्र में सीने में गोली मारकर उनकी हत्या कर दी गई थी.
- इंटरनेट के ज़रिए उनकी मौत की खबर फैली। टाइम मैगज़न के मुताबिक ये विश्व इतिहास में अबतक की सबसे बड़े पैमाने पर देखी गई मौत थी.
- निदा के परिवार को उनका शव सार्वजनिक रुप से दफ़नाने के लिए नहीं दिया गया। उनकी कब्र का अपमान किया गया
- निदा की मां ने बीबीसी से हुई बातचीत में कहा कि उन्हें सबसे ज्यादा दुख इस बात का था कि निदा मां बनने का अपना सपना का पूरा नहीं कर पाईं.
International News inextlive from World News Desk