सोमवार को अमरीका में 'रोल बैक मलेरिया' (आरबीएम) कार्यक्रम के तहत जारी रिपोर्ट के मुताबिक़ हाल के वर्षो में इस बीमारी पर क़ाबू पाने की दिशा में काफ़ी सफलता मिली है और दुनिया भर में मलेरिया से प्रभावित एक तिहाई देशों में अगले दस वर्षों में इस बीमारी से निजात पाया जा सकता है।
सियेटल में मलेरिया पर हो रहे एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन की शुरुआत में ये रिपोर्ट पेश की गई। 'आरबीएम' के अनुसार अब भी ये बीमारी 108 देशों में पाई जाती है।
एक अनुमान के अनुसार हर साल इस बीमारी से सात लाख 81 हज़ार लोगों की मौत होती है। मरने वाले ज़्यादातर लोग अफ़्रीका के रहने वाले होते हैं और पांच साल से कम उम्र के बच्चे इसका सबसे ज़्यादा शिकार होते हैं। रिपोर्ट के अनुसार अफ़्रीका में हर 45 सेकेंड में मलेरिया से एक बच्चे की मौत होती है।
'40 प्रतिशत प्रभावित'
दुनिया की कुल जनसंख्या के 40 प्रतिशत लोग इस बीमारी से प्रभावित हैं। लेकिन विशेषज्ञों के अनुसार पिछले दस वर्षो में केवल अफ़्रीका में इस बीमारी से प्रभावित दस लाख से ज़्यादा लोगों की जान बचाई गई है।
उनका कहना है कि अगर इसी तरह से मलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम जारी रहा तो वर्ष 2015 तक आठ से दस देशों में इस बीमारी पर पूरी तरह सफलता पाकर इससे प्रभावित और तीस लाख लोगों की जान बचाई जा सकती है।
डब्लूएचओ के ग्लोबल मलेरिया प्रोग्राम के निदेशक रॉबर्ट न्यूमैन का कहना था, ''बीमारी की पहचान और उसकी निगरानी के कारण स्थिति बिल्कुल साफ़ हो गई है कि दरअसल ज़मीनी हालात क्या हैं और इसने ये भी दिखाया है कि दुनिया भर के कई देश इसके उन्मूलन में सफल हुए हैं.''
उनके अनुसार डब्लूएचओ इस प्रगति की लगातार निगरानी करता है और सुनिश्चित करता है कि मलेरिया से मुक्ति पाने की कोशिश कर रहे देशों की पूरी तरह मदद की जाए।
संयुक्त राष्ट्र की तीन एजेंसियों और विश्व बैंक ने मिलकर 1998 में 'आरबीएम' कार्यक्रम शुरू किया था और अब 500 से ज़्यादा सहयोगी संस्थाएं हैं जो मलेरिया को समाप्त करने के लिए मिलकर काम करती हैं।
मलेरिया से लड़ने के लिए अंतरराष्ट्रीय वित्तीय मदद में भी पिछले कुछ वर्षों में काफ़ी बढ़ोत्तरी हुई है। वर्ष 2010 में इस बीमारी से लड़ने के लिए की जा रही आर्थिक सहायता की राशि बढ़कर डेढ़ अरब डॉलर हो गई है।
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