-मेडिकल कॉलेज में बायोप्सी और एफएनएसी जैसी अहम जांचों की रिपोर्ट महीनों बाद भी नहीं मिल रही
-जांच रिपोर्ट के इंतजार में बढ़ जाती है पेशेंट की बीमारी, कैंसर पेशेंट्स की रिपोर्ट भी समय से नहीं दी जाती
KANPUR: बीमारी का पता लगाने और सही इलाज के लिए जांच बेहद जरूरी होती है। लेकिन, जब जांच ही बीमारी बढ़ने की वजह बन जाए क्या करेंगे? यही हाल जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज की पैथोलॉजी लैब का है। यहां कुछ ऐसी जांचें हैं जिनकी रिपोर्ट कब आएगी यह खुद जांच करने वालों को नहीं पता होता। ऐसे में जो पेशेंट जांच के लिए अपने सैंपल देकर जाते हैं। उनमें रिपोर्ट के इंतजार में मर्ज बढ़ता चला जाता है। इसमें कैंसर और टीबी जैसी बीमारियों के भी पेशेंट्स हैं। जिनकी रिपोर्ट महीनों नहीं मिलती। मजबूर होकर प्राइवेट लैब का सहारा लेना पड़ता है। लगातार रिपोर्टिग में देरी की शिकायतें प्रिंसिपल के पास पहुंची तो उन्होंने एचओडी से जवाब तलब कर लिया।
केस-1
छह महीने बाद भी नहीं मिली रिपोर्ट
यशोदा नगर निवासी प्रभादेवी ने छह महीने पहले अपर इंडिया मेटर्निटी हॉस्पिटल में डॉक्टर को दिखाया था। अल्ट्रासाउंड में उनके यूट्रस में गांठ होने की पुष्टि हुई। जिसके बाद डॉक्टर ने उन्हें एफएनएसी जांच कराने के लिए कहा। वहीं की डॉक्टर ने जांच के लिए सैंपल निकाला। इसके बाद परिजनों ने उसे जांच के लिए मेडिकल कॉलेज के कमरा नंबर 27 में बने कलेक्शन सेंटर में दे दिया। उस वक्त 15 से 20 दिन में रिपोर्ट आने की बात कही गई थी, लेकिन कई बार भागदौड़ के बाद भी आज तक रिपोर्ट नहीं आई।
केस-2
एडवांस स्टेज पर पहुंच गई बीमारी
कल्याणपुर निवासी पुष्पा मिश्रा के मुंह में गांठ की शिकायत पर परिजनों ने उन्हें दिसंबर में जेके कैंसर हॉस्पिटल की सेमी इमरजेंसी में दिखाया। डॉक्टर्स ने उन्हें गांठ की बायोप्सी जांच कराने की सलाह दी और मेडिकल कॉलेज के पैथोलॉजी डिपार्टमेंट भेज दिया। यहां जूनियर रेजीडेंट ने जांच के लिए उनकी गांठ से सैंपल निकाला। साथ ही 10 दिन में रिपोर्ट मिलने के लिए कहा। 10 दिन बाद परिजन रिपोर्ट लेने पहुंचे तो फिर 10 दिन बाद रिपोर्ट मिलने की बात कही गई। ऐसा करते करते उन्हें गणतंत्र दिवस के बाद रिपोर्ट मिली। डॉक्टर को दिखाने पर वह बोले कि उनकी बीमारी एडवांस स्टेज में पहुंच चुकी है।
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जांच और जल्दी रिपोर्ट क्यों जरूरी
बायोप्सी जांच की जरूरत शरीर में बनने वाली किसी तरह की गांठ या खराब टिश्यू की पहचान में पड़ती है। इस जांच में कैंसर, टयूबरक्लोसिस की पुष्टि होती है। आम तौर पर इसमें एक हफ्ते से 10 दिन का वक्त लगता है। कई बार डॉक्टर्स स्टोन की सर्जरी के बाद उसके सैंपल की भी बायोप्सी जांच कराते हैं। जिससे पता चल सके कि टीश्यू में मेलिग्नेंसी है या नहीं। कैंसर और ट्यूबरक्लोसिस के पेशेंट्स में इस जांच की ज्यादा जरूरत पड़ती है। जिसके आधार पर आगे क्या इलाज होगा डॉक्टर यह तय कर पाते हैं। यह जांचें पैथोलॉजी की साइटोलॉजी लैब में होती है।
जांच में देरी क्यों?
जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के पैथोलॉजी डिपार्टमेंट की कई लैब हैं। हैलट में 24 घंटे पैथोलॉजी के अलावा मेडिकल कॉलेज बिल्डिंग मे साइटोलॉजी व हेमेटोलॉजी लैब भी है। इसके अलावा कोरोना काल में एक लैब कोविड अस्पताल में भी शुरू की गई। जिसमें सिर्फ कोरोना संक्रमित पेशेंट्स की ही जांच होती थी। हांलाकि साइटोलॉजी लैब में जांचों में देरी को लेकर लंबे समय से शिकायतें मिल रही थीं। इस बीच जेके कैंसर हॉस्पिटल से भी पेशेंट्स बायोप्सी जांच के लिए भेजे जाने की वजह से लैब पर लोड और बढ़ गया। डिपार्टमेंट के हेड का एक्सीडेंट होने की वजह से भी लैब के संचालन में समस्या खड़ी हो गई।
वर्जन-
बायोप्सी एक अहम जांच हैं। इसकी रिपोर्टिग को लेकर लगातार शिकायतें मिल रही थीं। जिस पर लैब का निरीक्षण कर कमियों को चेक किया है साथ ही इन्हें जल्द दूर कर निर्धारित समय में जांच रिपोर्ट देने के निर्देश दिए हैं। साथ ही रिपोर्ट की पेंडेंसी को भी जल्द से जल्द खत्म करने के लिए कहा है।
- डॉ.आरबी कमल, प्रिंसिपल जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज