देश भर में ज़्यादातर स्कूल महीनों से बंद पड़े हैं और बच्चों को कभी दोस्तों की याद सताती है तो कभी स्कूल पहुंचने पर माता-पिता की सलामती का डर उन्हें पढ़ने नहीं देता।
लीबिया के नागरिक समाज के सामने इस वक्त सबसे बड़ी चुनौती है लगातार जारी गृहयुद्ध के बीच बच्चों की पढ़ाई-लिखाई को जारी रखना और उन्हें एक सामान्य जीवन देना। लेकिन ये आसान नहीं क्योंकि मुश्किले कई हैं।
बेनग़ाज़ी में मौजूद बीबीसी संवाददाता गेविन ली ने जब शहर का दौरा किया तो हर जगह उन्हें मिले जले हुए ट्रक, धवस्त मकान और गोलियों की बौछार से छलनी दीवारें।
कब वापस लौटेंगे?
गेविन ली के मुताबिक एक स्कूल में कुछ बच्चे और एक शिक्षक से मिलने के बाद उन्हें एहसास हुआ कि परिस्थियां इतनी विपरीत हैं कि बच्चों को इनके प्रभाव से बचाए रखना अब नामुमकिन होता जा रहा है।
स्कूल को संभाल रही नईमा कावोफिया कहती हैं कि स्कूल में दाखिल सात साल के अव्वाब और उसकी आठ साल की बहन बुरुज का व्यवहार अब काफ़ी बदल गया है।
वो कहती हैं, ''ज़ाहिर तौर पर इन बच्चों पर इस संघर्ष का बेहद असर हुआ है। कभी वो स्कूल नहीं आना चाहते तो कभी वो कहते हैं कि हमें मार दिया जाएगा। कभी उन्हें लगता है कि उन्हें अपने माता-पिता के पास जाना है इस डर से कि उनकी मौत तो नहीं हो गई। वो पूछते हैं कि गद्दाफ़ी ने हमें मार दिया तो क्या होगा.''
स्कूल से 200 किलोमीटर की दूरी पर विद्रोहियों और कर्नल गद्दाफ़ी की सेना में जंग छिड़ी है और बच्चे किसी भी हक़ीक़त से अनजान नहीं। बच्चों के पिता डॉक्टर अब्दुल सलेम अलसुईसी कहते हैं कि उन्हें सबसे बड़ा डर यही है कि बच्चों के दिमाग पर पड़े इस असर को कैसे और कब तक दूर किया जा सकेगा।
शिक्षकों को कई महीनों से तनख़्वाह नहीं मिली है लेकिन विद्रोहियों का संगठन नेशलन ट्रांज़ीशनल काउंसिल चाहता है कि सितंबर महीने के बाद से स्कूलों को खोला जाए और शिक्षकों को थोड़ी बहुत तनख़्वाह दी जाए।
एक बड़ी संख्या उन बच्चों की भी है जो अलग-अलग जगहों पर बनाए गए शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं। इन बच्चों की देखभाल और उनकी ज़िंदगी को वापस पटरी पर लाना भी एक बड़ी चुनौती साबित होगा।
ऐसे ही एक शिविर में बच्चों के साथ काम कर रही सामाजिक कार्यकर्ता जेनी कहती हैं, ''चित्रकारी और दूसरी गतिविधियों के ज़रिए हम बच्चों को स्कूल आने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। उनके बनाए चित्रों से साफ़ है कि धीरे-धीरे उनके दिलो-दिमाग़ में संघर्ष की तस्वीरें धुंधली हो रही हैं। पहले तो बच्चों के चित्रों में रॉकेट, टैंक और मौत का नज़ारा ही दिखता था.''
हालांकि इलाक़ा कोई भी हो लीबियाई बच्चों के मन में और उनके चेहरे पर एक ही सवाल दिखता है कि वो अपने घर अपने दोस्तों के बीच कब वापस लौटेंगे।
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