हालांकि 'पढ़ने लिखने के शौकीन रहस्यमय व्यक्ति', खुद पुस्तकालय जाकर इसे जमा करवाने की हिम्मत नहीं जुटा पाया और उसने 1932 में जारी पुस्तक को पिछले हफ्ते चुपचाप से लाइब्रेरी के लेटरबॉक्स में सरका दिया।

पुस्तकालय के प्रमुख किरोन मैंगन का कहना है कि अगर इस किताब पर देरी से लौटाने पर लगने वाले जुर्माने का हिसाब लगाया जाए तो वो 4,160 यूरो (दो लाख 90 हजार रुपये) के आसपास बैठता है। लेकिन वो इस बात से ही खुश है कि चलो, किताब तो वापस आई।

माफ कर देंगे जुर्माना

मैंगन कहते हैं, “एक अच्छा ईसाई होने के नाते हम जुर्माने की राशि नहीं लेंगे, लेकिन वो व्यक्ति सामने आकर ये तो माने कि उसने किताब लौटा दी है.” पुस्तकालय के रिकॉर्ड्स में इस बात की जानकारी नहीं कि ये किताब किसके नाम पर जारी की गई क्योंकि वहां सिर्फ 1994 के बाद के ही कंप्यूटरीकृत रिकॉर्ड्स मौजूद हैं।

लेकिन किताब लौटाने वाले ने ये काम बहुत सही मौके पर किया है। दरअसल इस किताब में डबलिन में 1932 में हुए एक ईसाई धार्मिक सम्मेलन की तस्वीरें पेश की गई हैं। अगले महीने ये सम्मेलन फिर से डबलिन में हो रहा है।

मैंगन कहते हैं, “हम मानते हैं कि किताब की अच्छी तरह देखभाल की गई और शायद परिवार की दूसरी किताबों में वो गुम हो गई होगी.” अब इस किताब को लाइब्रेरी में खास तौर से पेश किया जा रहा है।

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