कानपुर (ब्यूरो)। जलनिगम की बिछाई गई करप्शन में डूबी वाटर लाइनों से सैकड़ों जगह फौव्वारे छूटने से जलकल डिपार्टमेंट के ऑफिसर्स भी अलर्ट हो गए थे। उन्होंने करप्शन में डूबी पाइप लाइनों सहित अधिकतर सिस्टम को हैंडओवर लेने में हाथ खड़े कर दिए। 2019 में टेक्निकल ऑडिट कमेटी की जांच और फिर 2021 में जलनिगम के 24 इंजीनियर के खिलाफ मुकदमें के बाद तो बिल्कुल चुप्पी साध ली। यही वजह है कि प्रोजेक्ट कम्प्लीट होने के 12 साल बाद भी जलनिगम जेएनएनयूआरएम में डेवलप किए गए पूरे सिस्टम को जलकल को हैंडओवर नहीं कर सका है। जलकल डिपार्टमेंट ने केवल उतना ही हिस्सा लिया, जितना जांच-परखने के बाद सही मिला। जलनिगम के लीकेज सिस्टम की वजह से ही कानपुराइट्स को ड्रिकिंग वाटर क्राइसिस से जूझना पड़ रहा है।
2007 में शुरू हुआ काम
जलनिगम ने वर्ष 2007 में जवाहर लाल नेहरू अरबन रिन्यूवल मिशन के अंर्तगत ड्रिकिंग वाटर प्रोजेक्ट्स पर काम शुरू किया था। 648 करोड़ के इन प्रोजेक्ट्स के अन्र्तगत एक ओर गंगा और दूसरी ओर दादा नगर लोअर कैनाल से रॉ वाटर लेकर सिटी में वर्ष 2040 तक की जरूरत के मुताबिक ड्रिकिंग वाटर सप्लाई का प्लान बनाया गया था। हालांकि लेटलतीफी के कारण प्रोजेक्ट कास्ट बढकर 869 करोड़ पहुंच गई। ड्रिकिंग वाटर प्रोजेक्ट के अन्र्तगत गंगा बैराज एक इंटेक प्वाइंट व एक पम्प हाउस और 200 एमएलडी के दो वाटर ट्रीटमेंट प्लांट बनाए गए। वहीं गुजैनी वाटर वक्र्स में एक और 28.5 एमएलडी का ट्रीटमेंट प्लांट बनाया गया। वहीं बेनाझावर ट्रीटमेंट प्लांट की कैपेसिटी 200 से बढ़ाकर 280 एमएलडी की गई। 16 ट्यूबवेल भी बने। घरों तक पानी पहुंचाने के लिए 113.45 किमी। फीडरमेन सहित टोटल 2066.22 किलोमीटर पाइपलाइन बिछाई गई।
लीकेज लाइनों ने उम्मीदों पर पानी फेरा
जेएनएनयूआरएम के प्रोजेक्ट्स को वर्ष 2012 में कम्प्लीट किया था.वाटर सप्लाई का ट्रायल कर जलकल डिपार्टमेंट को पूरा सिस्टम हैंडओवर किया जाना था। इसके लिए ट्रायल किया गया तो कम्पनी बाग, मैकराबर्ट्सगंज रोड, चुन्नीगंज, परेड, बड़ा चौराहा, फूलबाग, रावतपुर रोड, सर्वोदय नगर, काकादेव, गोविन्द नगर, साकेत नगर आदि स्थानों पर वाटर लाइनों से फौव्वारे छूटने लगे। यही नहीं कई-कई फिट तक रोड्स धंस गई। जलनिगम ने लीकेज बनाया, लेकिन आगे दूसरी जगह वाटर लाइनों से पानी के फौव्वारे छूटने लगे। यह देख तत्कालीन जलकल ऑफिसर्स ने हाथ खड़े कर दिए।
पहुंच नहीं सका पानी
लीकेज लाइनों के कारण अब तक साउथ सिटी के कई इलाकों तक वाटर सप्लाई शुरू नहीं हो सकी। जेएनएनयूआरएम में बनाए गए किदवई नगर, पशुपति नगर, बर्रा आदि इलाकों में बनाए गए ओवरहेड टैंक शोपीस बने हुए हैं। जलकल का पुराना वाटर सप्लाई सिस्टम ही काम कर रहा है। हालांकि साउथ सिटी के कुछ एरिया में लो प्रेशर से वाटर सप्लाई की समस्या हल करने को नए बनाए गए 28.5 एमएलडी के वाटर ट्रीटमेंट प्लांट को जरूर जलकल ने हैंडओवर कर लिया था। वह भी जांच-परखने के बाद किया। इसके पीछे एक मजबूरी यह भी थी कि लो प्रेशर के कारण रतनलाल नगर, गुजैनी, बर्रा विश्व बैंक, दामोदर, उस्मानपुर आदि में ड्रिकिंग वाटर की क्राइसिस था, यहां अधिकतर वाटर लाइनें पहले से भी बिछी हुई थी।