कानपुर(दिव्यांश सिंह)। डाक सर्विस का यूज इन दिनों केवल गवर्नमेंट यूज में ही किया जा रहा है। सोशल मीडिया के दखल से चिट्ठी का चलन खत्म हो गया है। नेशनल पोस्टल डे के मौके पर हम आपके शहर से जुड़ी पुरानी यादों को ताजा करते हैैं। आपके शहर में डाक व्यवस्था को शुरु करने वाले लाला ठंठीमल टंडन थे और उस समय घोड़ों से डाक का सामान आता जाता था। इतिहासकार व लाला ठंठीमल के वंशज विनोद टंडन ने बताया कि हर सात किलोमीटर के बाद घोड़ा बदल जाता और डाक दूसरे घोड़े से हरकारों द्वारा रवाना कर दी जाती थी। इस व्यवस्था को महाजनी डाक व्यवस्था कहा जाता था। लाला ठंठीमल की कोठी हटिया में थी। इनकी गिनती बड़े व्यापारियों में की जाती थी।
1850 में बनी कंपनी
लाला ठंठीमल ने 1850 में शहर से ही इंडियन ट्रांजिट कंपनी शुरू की थी। इस सर्विस के स्टार्ट होने के बाद अन्य स्थानों पर भी डाक जाने लगी और सर्विस का विस्तार हुआ। 1854 में गवर्नमेंट ने इंपीरियल पोस्ट आफिस सिस्टम को लागू किया तो उसमें इस तरह की सभी कंपनियों का विलय कर लिया गया। यह व्यवस्था लंदन के अनुसार संचालित होती थी। इस प्रकार से कानपुर में डाक सर्विस का श्री गणेश हुआ।
तीन तरह की होती थी डाक
इंपीरियल पोस्ट आफिस सिस्टम लागू होने के बाद डाक को तीन भागों में बांट दिया गया। जो डाक सरकारी होती थी उस पर सर्विस लिखा होता था। इसका पेमेंट सरकार करती थी। दूसरी डाक ऐसी होती थी, जिसको रिसीव करने वाला पेमेंट करता था। वहीं, तीसरे प्रकार की डाक में वजन से आधार पर पेमेंट लिया जाता था।
नहीं जारी हुई डाक टिकट
लाला के वंशज विनोद टंडन ने बताया कि जिस व्यक्ति ने डाक व्यवस्था को स्टार्ट किया। उसके नाम से डाक विभाग ने आज तक डाक टिकट को जारी नहीं किया है। सरकार के आदेश के बाद भी यह काम पेंडिंग है। यह अफसोस की बात है।