कानपुर (ब्यूरो) जाजमऊ स्थित अकील कंपाउंड में ट्यूजडे को थोक पटाखा बाजार की आधा दर्जन दुकानें सज गईं। व्यापारियों ने पुलिस से मिले लाइसेंस पर लिखी शर्तों के मुताबिक 200 डेसिबल तक के ग्रीन पटाखे ही ऑर्डर किए हैैं। हालांकि उनके पास ध्वनि प्रदूषण मापने का इंतजाम नहीं है। कारोबारियों ने बताया कि ग्रीन पटाखों की अनिवार्यता ने पुलिसकर्मियों की वसूली बढ़ा दी है। अब पुलिस कर्मी दीपावली तक ग्रीन पटाखों की आड़ में आम पटाखे बेचने वालों से वसूली करेंगे।

क्या होते हैं ग्रीन पटाखे, कैसेे करें पहचान
ग्रीन पटाखे न सिर्फ आकार में छोटे होते हैं, बल्कि इन्हें बनाने में रॉ मैटीरियल (कच्चा माल) का भी कम इस्तेमाल होता है। इन पटाखों में पर्टिकुलेट मैटर (पीएम) का विशेष ख्याल रखा जाता है ताकि धमाके के बाद कम से कम प्रदूषण फैले। ग्रीन क्रैकर्स से करीब 20 प्रतिशत पर्टिकुलेट मैटर निकलता है जबकि 10 प्रतिशत गैसें उत्सर्जित होती हैं। ये गैसें पटाखे की संरचना पर आधारित होती हैं। ग्रीन पटाखों के बॉक्स पर बने क्यूआर कोड को नीरी नाम के एप से स्कैन करके इनकी पहचान की जा सकती है। ग्रीन पटाखे दिखने में सामान्य पटाखों की तरह ही होते हैं। इसके अलावा इनमें खुशबू और वाटर पटाखे भी होते हैंं, जिन्हें अलग तरह से जलाया जाता है। ये पर्यावरण के अनुकूल होते हैं। जलाने पर धुएं की मात्रा कम निकलती है।