पिछले साल चार जनवरी को सलमान तासीर जब इस्लामाबाद के एक रेस्तरां में दोपहर का भोजन कर रहे थे तो मुमताज़ क़ादरी अपना निशाना साध रहे थे।
मुमताज़ उस दिन तीन बार तासीर पर निशाना लगाने का प्रयास कर चुके थे लेकिन विफल रहे थे। लेकिन जैसे ही अपनी टेबल से वह बाज़ार से होते हुए अपनी कार की ओर गए क़ादरी ने अपना काम कर दिया।
अल्लाह के नारे लगाते हुए उन्होंने तासीर को 27 गोलियाँ मारीं (इसके लिए उन्हें केवल तीन-चार सेकेंड लगे) और फिर अपने हाथ हवा में उठा लिए और अपने साथी अंगरक्षकों से बोले, ''मुझे मारो मत,गिरफ़्तार कर लो.'' उन्होंने ऐसा ही किया।
उन्हें इसके बाद मौत की सज़ा सुना दी गई। लेकिन पाकिस्तान के पुराने न्यायिक इतिहास और इस मामले के कुछ हालात को देखते हुए बहुत कम ही लोग ये सज़ा दिए जाने की उम्मीद कर रहे हैं।
क़ातिल का समर्थन
आख़िर क्यों मारा था उन्होंने तासीर को?
पाकिस्तान में हमेशा अल्पसंख्यकों की मदद करने वाले तासीर आसिया बीबी नाम की एक ईसाई महिला का ईश निंदा मामले में समर्थन कर रहे थे।
पंजाब के एक गाँव में कुछ मुसलमान महिलाओं ने उन पर कुएँ से पानी पीकर उसे गंदा करने का आरोप लगाया था और वे उस महिला का धर्म बदलने की माँग कर रही थीं। उनके मना करने पर उन्होंने उस पर ईश निंदा का आरोप लगाया।
तासीर ने जब इस मामले के बारे में सुना तो उन्होंने फैसला किया कि वह उसे राष्ट्रपति से माफ़ी दिलाएँगे। तासीर का मानना था कि ईश निंदा के क़ानून का इस्तेमाल कुछ लोग छोटे-मोटे मामलों में अपनी दुश्मनी निकालने के लिए करते हैं। लेकिन जब उन्होंने कहा कि उन पर भी ईश निंदा के आरोप लगे थे तो उनके अंगरक्षक ने फ़ैसला किया कि उन्हें मरना होगा।
एक सप्ताह तक पाकिस्तान में लोगों से इस मामले पर बात करने के बाद मेरा मानना है कि सलमान तासीर से ज़्यादा लोगों की सहानुभूति उनके क़ातिल से है। पाकिस्तान में मामला इतना संवेदनशील है कि कोई भी वरिष्ठ वकील क़ादरी के खिलाफ़ मुकदमा लेने को तैयार नहीं था। आख़िर लाहौर में एक वकील मान गए और मैं उन्हें उनके घर पर मिला जहाँ दो सशस्त्र रक्षक उनके घर पर तैनात हैं।
हीरो मानते हैं लोग
उन्होंने कहा, ''कोई वकील नहीं मान रहा था। मेरा नाम सुझाया गया। जब मैंने अपने मित्रों से बताया तो उन्होंने कहा, 'मत करो! मत करो!' अगर धार्मिक लोग किसी से ख़फ़ा होते हैं तो वह उसे ज़िंदा नहीं छोड़ते.'' उस वकील का कहा, ''लेकिन क़ादरी की मौत की सज़ा बरक़रार रखनी होगी। अगर इसे उम्रकैद में बदला गया तो वह छूट जाएँगे.''
उन्होंने कहा, ''और फिर वह सांसद या मंत्री बन जाएँगे क्योंकि वह नायक हैं न केवल आम आदमी के बल्कि पढ़े-लिखे लोगों के भी जिनमें पूर्व न्यायाधीश और वर्तमान न्यायाधीश भी शामिल हैं। बहुत बड़े-बड़े लोग उन्हें हीरो मानते हैं.'' और यह सच भी है।
मैं रावलपिंडी में क़ादरी के बहुत बड़े घर पर उनके भाई से मिलने गया तो देखा कि उनके कम से कम 72 रिश्तेदार ख़राब हालात में वहाँ रहते हैं।
क़ादरी के भाई ईंटे लगाने का काम करते थे। उनके भाई-बहन भी छोटे-मोटे काम करते हैं। उनके सबसे बड़े भाई ने कहा, ''आप समझ नहीं सकते मेरे भाई ने क्या कर दिया है। वह लोग जो हमसे हाथ नहीं मिलाते थे आज हमारा हाथ चूमते हैं। उन्होंने कहा, ''हम बहुत शुक्रगुज़ार हैं कि अल्लाह ने पैगंबर की इज़्जत बचाने के लिए हमारे परिवार के सदस्य को चुना.''
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