कानपुर (ब्यूरो)। इस सीजन में घरों में मैैंगों कटकर प्लेट में न आए तो लंच और डिनर अधूरा ही रह जाता है.बढ़ती डिमांड में किस तरह मैंगों के साइज, प्रोडक्शन और मिठास को बिना किसी केमिकल का यूज किए हुए बढ़ाया जाए। यह एक चैलेंज था। इसी बात को ध्यान में रखते हुए सीएसए के हार्टिकल्चर डिपार्टमेंट में रिसर्च को किया गया। रिसर्च के रिजल्ट में मैैंगों का साइज, प्रोडक्शन और मिठास बढ़ी हुई मिली। इस रिसर्च के दौरान मैैंगो पर बायो इनहैैंसर का यूज किया गया है। रिसर्च के कंप्लीट होने के बाद सीएसए के साइंटिस्ट अब इस टेक्नोलॉजी को फॉर्म हाउस और मैैंगो का प्रोडक्शन करने वाले फार्मरों को बताएंगे, जिससे बिना केमिकल का यूज किए हुए मैैंगों का बेस्ट प्रोडक्शन किया जा सके। यह रिसर्च को सीएसए के हार्टिकल्चर डिपार्टमेंट के एचओडी प्रो। वीके त्रिपाठी की मेंटरशिप में हुई है।
आम्रपाली और दशहरी पर हुई रिसर्च
सीएसए के रिसर्च स्टूडेंट्स ने आम्रपाली और दशहरी वैरायटी पर इस रिसर्च को किया है। आम्रपाली ऐसी वैरायटी है जो कि घरों में बड़े गमले पर लगाई जा सकती है। इसके अलावा दशहरी को तो आप सब जानते ही हैं। इसकी डिमांड मार्केट में सबसे ज्यादा होती है। इसका प्रोडक्शन फार्म हाउस या गार्डेन में किया जा सकता है।
इन चीजों का किया गया यूज
रिसर्च के दौरान सीएसए के रिसर्च स्कालर ने रिसर्च के दौरान मैैंगो के सिलेक्टेड प्लांट्स पर जीवामृत, अमृतपानी, पंचगव्य और आर्गेनिक फर्टिलाइजर को मिलाया। रिसर्च के दौरान कुछ पौधे ऐसे रखे गए जिन पर किसी भी चीज का यूज नहीं किया गया और कुछ पौधे ऐसे रहे, जिनमें बायो इनहैैंसर का यूज किया गया। रिजल्ट में बायो इनहैैंसर का यूज किए जाने वाले प्लांट्स का प्रोडक्शन, फ्रूट साइज और मिठास बेहतर मिली।
इन पर चल रहा काम
मैैंगों पर बायो इनहैैंसर से की गई रिसर्च के सक्सेस होने के बाद अब सीएसए के हार्टिकल्चर डिपार्टमेंट में अमरुद, ड्रैगन फ्रूट, स्ट्राबेरी और रसभरी पर रिसर्च की जा रही है। कोशिश है कि एक ऐसी टेक्नोलॉजी डेवलप की जाए जो कि केमिकल को रिप्लेस कर सके।