कानपुर (ब्यूरो)। इस शहर में कई नाबालिग अपनी ड्राइविंग से लेागों की जान ले चुके हैं.शहर में आए दिन इस तरह के केस सामने आते हैं। जिसको देखते हुए शासन के निर्देश पर स्कूलों में रोड सेफ्टी क्लब बनाए गए। नोडल टीचर, स्कूल कैप्टन के जरिए सभी स्टूडेंट्स को जोड़ा गया। इस क्लब का मकसद स्टूडेंट्स को ट्रैफिक रूल्स के बारे में बताना, उन्हें अवेयर करना और रूल्स फॉलो कराना है। फार्मेलिटी के नाम पर स्कूलों में क्लब बन गए। लेकिन हकीकत ये है कि इन स्कूलों के ही स्टूडेंट स्कूल से निकले ही ट्रैफिक का हर रूल तोड़ते हैं। न स्कूल को इसकी परवाह और न पेरेंट्स को। यानि सब कुछ कागजों पर और महज औपचारिकता के लिए। ऐसे में सवाल तो उठेगा ही कि स्कूलों के ऐसे पढ़ाने का क्या फायदा जो गेट से निकलते ही स्टूडेंट भूल जाते हैं।
कोई सीरियस नहीं है
18 साल से कम उम्र के व्यक्ति को गाड़ी नहीं चलानी है बिना ड्राइविंग लाइसेंस के गाड़ी न चलाएं टू व्हीलर में हेलमेट और फोर व्हीलर में सीट बेल्ट जरूर लगाएं। इस तरह के कई सारे ट्रैफिक रूल्स हैैं, जिनको स्टूडेंट्स को स्कूलों में पढ़ाया जाता है। लेकिन फिर भी रोड पर स्कूल ड्रेस में स्टूड़ेंट्स बिना हेलमेट और तीन सवारी समेत कई सारे नियमों को तोड़ते दिख जाते हैैं। स्कूल्स की छुट्टïी के समय रियलिटी चेक किया गया तो कई स्टूडेंट अपने व्हीकल से नियमों को तोड़ते कैमरे में कैद हुए। नियमों को पढ़ाया जाता है लेकिन उसके बाद भी रुल्स को तोडऩा इस बात को साबित कर रहा है कि स्टूडेंट ट्रै्फिक रूल्स को लेकर सीरियस नहीं है। स्कूल में ट्रैफिक रुल्स को बोरिंग लेक्चर मानकर वह एक कान से सुनते और दूसरे कान से निकाल देते हैैं।
रोड सेफ्टी क्लब भी खानापूरी
स्कूलों में शासन के निर्देश पर रोड सेफ्टी क्लब को बनाया गया है। इस क्लब का काम स्कूल में समय समय पर ट्रैफिक वर्कशॉप कराना और रूल्स के बारे में स्टूडेंट्स को बताना था। इसके अलावा रूल्स को फॉलो करने के लिए अवेयर करना था। साथ ही घर जाकर अपने पेरेंट्स, रिलेटिव्य और पड़ोसियों को भी ट्रैफिक रूल्स फॉलो कराने के लिए प्रेरित करना था। सूत्र बताते हैैं कि कुछ स्कूलों ने तो क्लब बनाकर दिखाने के लिए वर्कशाप को करा लिया। लेकिन कुछ स्कूल ऐसे हैैं, जिन्होंने केवल कागजों में क्लब को बनाया है।
पुलिस भी करती है वर्कशॉप
स्कूलों में स्टूडेंट्स को ट्रैफिक रूल्स बताने के लिए पुलिस की ओर से स्कूलों में पाठशाला को लगाया जाता है। पुलिस के अफसर ट्रैफिक रूल्स को बताते हैैं और उसको फॉलो न करने पर पुलिस की ओर से किए जाने वाले चालान आदि के बारे में भी बताया जाता है। अमूमन स्कूलों के एक बड़े हाल में चलने वाली पुलिस की पाठशाला में स्टूडेंट्स को ट्रेनिंग दी जाती है। लेकिन शुक्र होता अगर स्टूडेंट की ओर से उनको फॉलो भी किया जाता।
हालात के लिए ये सब जिम्मेदार
1. पेरेंट्स
अखिल भारतीय अभिभावक संघ के अध्यक्ष राकेश मिश्रा का कहना है कि सबसे पहली जिम्मेदारी गार्जियन की है जो सब कुछ जानते हुए भी 18 साल से कम के बच्चे के हाथ मेें गाड़ी की चाभी थमा देते हैैं। जबकि शासन की तरफ से ये भी नियम बन गया है कि अगर नाबालिग के गाड़ी चलाते हुए पाए जाते हैं या कोई हादसा होता है तो उसकी सजा पेरेंट्स को भुगतनी होगी।
2. स्कूल एडमिनिस्ट्रेशन
स्कूल एडमिनिस्ट्रेशन पर भी बड़ी जिम्मेदारी है। क्योंकि वो स्कूल में ट्रैफिक रूल्स पढ़ा रहे हैं और स्कूल में ही ट्रैफिक रूल्स को टूटते हुए देखते हैं। क्योंकि गाड़ी से स्कूल आने वाले 70 परसेंट बच्चे नाबालिग होते हैं। स्कूल एडमिनिस्ट्रेशन को उनकी एज के बारे में सब पता होता है। बच्चे गाडिय़ां स्कूल प्रिमाइसेस में ही खड़ी करते हैं। अगर स्कूल प्रशासन सख्त हो तो 18 साल से कम उम्र में गाड़ी से आने या ट्रैफिक रुल्स तोडऩे वाले स्टूडेंट्स को रोक सकते हैं। गार्जियन को बुलाकर समझा सकते हैं।
3. ट्रैफिक पुलिस
नागालिगों को गाड़ी चलाने से रोकने में ट्रैफिक पुलिस का सबसे अहम रोल है। क्योंकि ट्रैफिक पुलिस स्कूलों में जाकर स्टूडेंट्स के बीच वर्कशॉप करती है। स्टूडेंट्स को ट्रैफिक रूल्स के बारे में जानकारी देती है। रूल्स फॉलो नहीं करने के नुकसान भी बताए जाते हैं। लेकिन, स्कूलों के बाहर जब ये नाबालिग उनकी आंखों के सामने से ट्रैफिक रूल्स तोड़ते हुए निकल जाते हैं तो कोई कार्रवाई नहीं करती है। कई बार तो उन्हें डरा कर पेरेंट्स से शिकायत के नाम पर सुविधा शुल्क भी वसूल लेती है।
प्रार्थना सभा से क्लास रूम तक
स्कूलों मेंं नियमानुसार प्रार्थना सभा से लेकर क्लास रुम तक स्टूडेंट्स को ट्रैफिक रुल्स को बताया जाता है। नई गाइड़लाइन के अïनुसार हर स्टूड़ेंट को ट्रैफिक रुल्स बताना आवश्यक भी हैैं। हालांकि कुछ स्कूल ऐसे भी हैैं जहां स्टूडेंट्स गाड़ी लेकर नहीं आते हैैं। यदि आते भी हैैं तो प्रापर रुल्स को फालो करते हैैं।